प्रतीकात्मक तस्वीर।
गौतम कुमार मिश्रा, नई दिल्ली। अफ्रीका के इकलौते देश के हायली गुब्बी ज्वालामुखी विस्फोट से उठे राख के बादल भारत के आसमान से मंगलवार रात गुजर गए। नई दिल्ली के आसमान को इन बादलों ने सोमवार देर रात ही पार कर लिया। देर रात बादलों के नई दिल्ली के आसमान पार करने का नतीजा यह हुआ कि मंगलवार को आईजीआई एयरपोर्ट से संचालित होने वाली विमानों की समय सारिणी पर इसका सीमित असर ही रहा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
उड़ानों के विलंबित या रद होने की स्थिति
हालांकि, बादलों के गुजर जाने के बाद भी तमाम एयरलाइंस जिनके विमानों का उड़ान के दौरान राख के बादलों से सामना हुआ, उन्हें अब प्रिकाॅशनरी चेकिंग की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। इस कारण संभव है कि अभी अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर आने वाले समय में कुछ उड़ानों के विलंबित या रद होने की स्थिति बने।
आईजीआई पर असर
देश के सबसे बड़े आईजीआई एयरपोर्ट की बात करें तो ज्वालामुखी विस्फोट से उठे राख के बादल की पूर्व दिशा की ओर बढ़ रही चाल के कारण कम से कम आठ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद किया गया। इनमें सर्वाधिक उड़ानें एअर इंडिया की थी। रद उड़ानों में अधिकांश उड़ानें या तो मध्य पूर्व की थी या फिर यूरोप से आने वाली ऐसी उड़ानें जिनका उड़ान के दौरान ज्वालामुखी विस्फोट से बने बादलों से सामना हो सकता था।
रद की उड़ानों में लंदन, बहरीन, दुबई, दम्माम से आने वाली उड़ानें शामिल रहीं। बाद में जब यह स्पष्ट हुआ कि बादल भारत से पूर्व की ओर रवाना हो रही हैं तब पूर्व की ओर भारत आ रही उडानों को भी रद किया जाने लगा। चीन की राजधानी को जाने व वहां से आने वाली एयर चाइना की दो उड़ानों को रद किया गया। एअर इंडिया की टोक्यो से आने वाली उड़ान को भी रद किया गया।
अब स्वभाविक तौर पर इनके प्रस्थान से जुड़ी उड़ानों को भी रद किया जाएगा। रद उड़ानों के अलावा उड़ानों के विलंबित होना भी यात्रियों के लिए परेशानी का कारण बना। मंगलवार शाम आठ बजे तक आईजीआई एयरपोर्ट की प्रस्थान से जुड़ी करीब करीब आधी उड़ानें विलंबित रहीं। दरअसल एयरलाइंस वाले इस बात की पूरी तसल्ली करना चाहते थे कि राख के बादल अब उड़ान के रास्ते में नहीं आएंगे।
अन्य एयरपोर्ट पर भी असर
इथियोपिया से उठे बादलों की रफ्तार से केवल आईजीआई एयरपोर्ट की उड़ानें ही प्रभावित हुई, ऐसा भी नहीं है। मुंबई, जयपुर, अहमदाबाद समेत उत्तर और पश्चिम भारत के एयरपोर्ट पर उड़ानें रद्द और विलंबित हो गईं, जिससे यात्री परेशान रहे।
ज्वालामुखी राख से विमानों को क्यों होता है खतरा
विशेषज्ञों के मुताबिक, ज्वालामुखी राख सिलिका से भरपूर होती है, जो विमान इंजनों में जमकर उन्हें बंद कर सकती है। दूसरी महत्वपूर्ण समस्या है कि राख दृश्यता घटाती है और विमानों की सतह को नुकसान पहुंचाती है। इसलिए विमानों की प्रिकाशनरी चेकिंग का सिलसिला शुरु हो सकता है।
ज्वालामुखी विस्फोट से बने राख के बादल विमानन के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रहे हैं। यह चुनौती समय-समय पर परेशान करती रही हैं। ये घटनाएं न केवल स्थानीय उड़ानों को प्रभावित करती हैं, बल्कि वैश्विक नेटवर्क को ठप कर देती हैं। ज्वालामुखी राख एक स्थायी खतरा है। विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, 1982 से अब तक 60 से ज्यादा विस्फोटों ने विमानन को प्रभावित किया है।
वर्ष 2010 में आइसलैंड में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यूरोप के कई हवाई क्षेत्र बंद करने पड़े। लाखों यात्री इस दौरान फंसे रहे। यूरोप की कई एयरलाइंस को तगड़ा घाटा हुआ। इससे पहले वर्ष 1982 में इंडोनेशिया में ब्रिटिश एयरवेज की उड़ान के इंजन राख से बंद हो गए, लेकिन पायलट ने सुरक्षित लैंडिंग कराई।
इस घटना ने वैश्विक स्तर पर राख निगरानी प्रणाली विकसित करने को प्रेरित किया। वर्ष 1989 में अलास्का का रेडौबट ज्वालामुखी फटा। अमेरिका के पश्चिमी तट पर उड़ानें ठप हो गई। राख ने 50 से ज्यादा उड़ानें प्रभावित कीं।
वर्ष 2006 में अलास्का के माउंट आगस्टाइन ज्वालामुखी में कई महीनों तक चले विस्फोटों से अलास्का की व्यावसायिक उड़ानें बाधित रहीं, जिससे माल ढुलाई प्रभावित हुई।
वर्ष 2014 में चिली के कल्बुको विस्फोट ने दक्षिण अमेरिका की उड़ानें रोकी। इसी तरह कुरिल द्वीप समूह के विस्फोट रूस-जापान-उत्तरी अमेरिका के हवाई मार्ग प्रभावित करते रहते हैं।
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