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ना फिटनेस सर्टिफिकेट और ना ही बीमा, बठिंडा में मौत बनकर दौड़ रहे हजारों अनफिट वाहन; कहां सोया RTA?

cy520520 3 day(s) ago views 164

  

सड़कों पर दौड़ रहे अनफिट वाहनों पर नहीं हो रही कोई कार्रवाई (फोटो: जागरण)



जागरण संवाददाता, बठिंडा। सड़कों पर होने वाले हादसों को रोकने के लिए विभाग के अधिकारी कितने जिम्मेवार हैं या फिर लोग कितने जागरूक हैं। इस बात का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि सड़कों पर चलने वाले वाहनों पर कितनी कार्रवाई की जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

अगर खस्ताहाल वाहनों की बात की जाए तो इसका विभाग के पास रिकार्ड ही नहीं है। जबकि बीते कई साल से तो सर्वे ही नहीं करवाया गया। इसके अलावा गाड़ी चलाने वाले लोग भी बिना सीट बैल्ट के कार चलाकर अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं।

बठिंडा आरटीए के अधीन बठिंडा व मानसा दोनों जिले आते हैं। जिनकी पासिंग भी यहीं से होती है। अगर हम बिना फिटनेस के चल रहे वाहनों की बात करें तो जिले की सड़काें पर सरपट दौड़ लगा रहे वाहन कब और किस समय लोगों की जिंदगी के लिए काल बनकर सामने आए जाए यह कहना बहुत मुश्किल है।

दरअसल, सड़क पर चल रहे वाहनों को फिटनेस देने का काम परिवहन विभाग है। विभाग के अफसर न तो सड़क पर चलने वाले वाहनों की नियमित रूप से जांच करते हैं और न ही जर्जर पुराने वाहनों को फिटनेस का सर्टिफिकेट देने में सख्ती बरतते हैं।

नतीजा सड़क हादसों में वृद्धि होती है। आरटीए दफ्तर में अनफिट वाहनों को लेकर पड़ताल की गई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। आरटीए दफ्तर की सबसे बड़ी लापरवाही तो यह रही कि बीते कई सालों से कभी भी सड़कों पर चलने वाले अनफिट वाहनों की जांच ही नहीं की गई और न ही अभी तक ऐसे किसी वाहन को सड़क से हटाया गया है। इसके अलावा जिले की सड़कों पर चलने वाले जुगाड़ू वाहनों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

नियमों के अनुसार अगर कोई वाहन 8 साल पुराना है तो उसको हर साल फिटनेस सर्टिफिकेट लेना पड़ता है। अगर कोई वाहन 8 साल से कम पुराना है तो उसको दो साल बाद फिटनेस सर्टिफिकेट लेना पड़ता है।

मगर विभाग के पास अभी तक यह आंकड़ा नहीं है कि बठिंडा व मानसा में कितने वाहनों को हर साल फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाता है। अब ऐसे में जब यह आंकड़ा ही नहीं है कि पुराने कितने वाहनों को फिटनेस प्रमाण पत्र लेना है तो जाहिर है कि जिले में अब भी बीमा और फिटनेस फेल वाहन खुले तौर पर चलाए जा रहे है, जो कहीं ना कहीं से लोग के जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।

वाहन चलाते समय सीट बेल्ट का इस्तेमाल अनिवार्य है। चंडीगढ़ में तो पिछली सीट पर बैठे लोगों के लिए भी सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है। लेकिन बठिंडा में सड़कों पर वाहन चलाने पर कोई 5 फीसद लोग ही ऐसे होंगे कि उनके सीट बेल्ट लगी हो।

हालांकि शहर में जगह जगह पर ट्रैफिक पुलिस के नाके भी होते हैं। लेकिन कहीं पर भी बिना सीट बेल्ट के गाड़ी चलाने वालों पर कार्रवाई नहीं की जाती। अगर कोई व्यक्ति ट्रैफिक रूल तोड़ने हुए पकड़ा भी जाता है तो पहले वह किसी से बात करवाने की कोशिश करता है।

अगर ऐसे में बात नहीं बनती तो वह पुलिस वालों से बात कर ऐसा चालान करने को कहते हैं, जिसका जुर्माना कम हो। ऐसे में ट्रैफिक पुलिस वाले भी नियम तोड़ने वालों का सीट बेल्ट का चालान काट देते हैं, जिसका जुर्माना केवल एक हजार रुपये है। इसी कारण बीते तीन महीनों में आरटीए दफ्तर में करीब 18 चालान सीट बैल्ट न लगे होने के आए हैं। इसी प्रकार मानसा में 7 चालान काटे गए हैं।

आरटीओ में काम करने वाले पुनीत शर्मा का कहना है कि सड़कों पर कितने वाहन अनफिट दौड़ रहे हैं, इसका विभाग के पास कोई डाटा नहीं है। जबकि सर्वे हुआ है या नहीं इसके बारे में तो वह कुछ नहीं कह सकते। लेकिन अनफिट वाहन के पकड़े जाने पर कार्रवाई करते हुए चालान जरूर काटा जाता है। जबकि धीरे धीरे इसमें सुधार लाया जाएगा।
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