deltin51
Start Free Roulette 200Rs पहली जमा राशि आपको 477 रुपये देगी मुफ़्त बोनस प्राप्त करें,क्लिकtelegram:@deltin55com

रोहतास में ब्रिटिश काल का कंबल उद्योग लुप्तप्राय, 80 वर्षीय बुनकर संभाले परंपरा की आख़िरी डोर

cy520520 2025-11-21 14:07:34 views 923

  

हुचर्चित स्माल स्केल इंडस्ट्री कंबल उद्योग बंद होने के कगार पर



हुमायूं हुसैन, नासरीगंज (रोहतास)। रोहतास जिले के नासरीगंज नगर पंचायत के वार्ड संख्या 10 हरिहरगंज में स्थित ब्रिटीश कालीन बहुचर्चित स्माल स्केल इंडस्ट्री कंबल उद्योग के लूम की धड़कन सरकार की उदासीनता से आज थम सी गई। 80 के दशक में इस उद्योग की तूती बोलती थी। सैकड़ों लोगों के रोजगार का केंद्र हुआ करता था। दो दर्जन से अधिक करघा चला करते थे।

प्रत्येक घरों की महिलाएं सूत अपने चरखा पर काटती थीं। उद्योग प्रबंधन द्वारा महिलाओं को चरखा समेत कच्चा माल दिया जाता था। जिसे काटकर वह रोजगार के साधन प्राप्त करती थीं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

प्रत्येक दिन सैंकडों कंबल तैयार होते थे। देश विदेशों में इनका डिमांड था, जहां इनका निर्यात किया जाता था। देश की आजादी से पहले खासकर यहां के बने कंबल की आपूर्ति ब्रिटीश आर्मी को की जाती थी, परंतु अब यह लुप्त होने के कगार पर है।

अब महज एक परिवार तक ही यह उद्योग जैसे तैसे चल रहा है। एक करघा पर 80 वर्षीय बुनकर दुलार चंद अपनी कमजोर उंगलियों से कंबल बुनते हुए बताते हैं कि इन हड्डियों में जब तक जान है वे यह कार्य करते रहेंगें।

200 रुपये दिहाड़ी पर यहां काम करते हैं। उन्होंने बताया कि 70 के दशक में जब वे नवम वर्ग में थे, तब से यह कार्य कर रहे हैं।

90 के दशक के बाद इस उद्योग का पतन शुरू हो गया। इस उद्योग के पतन का कारण पानीपत से आयात होने वाला मशीन से बनाया हुआ फैंसी कंबल है। जिसमें आधुनिकता की चकाचौंध है।

कहते हैं लोग

यहां 200 रुपये दिहाड़ी पर काम कर रहा हूं। 70 के दशक में नवम वर्ग में पढ़ाई के साथ साथ कंबल बुनने के कार्य से जुड़ा हूं। जब तक इन बुढ़ी हड्डियों में जान है, यह कार्य करते रहेंगे।

दुलारचंद पाल, 70 वर्षीय बुनकर



उक्त उद्योग कभी इतना समृद्ध था कि सीजन में हाउसफुल का बोर्ड लग जाता था। यहां के कंबल देश के विभिन्न शहरों के साथ साथ नेपाल समेत विदेशों में भी निर्यात होता था। महिलाओं को चरखा पर सूत काटने का रोजगार मिलता था
उषा देवी

कंबल उद्योग के विलुप्त होने से रोजगार के लाले पड़ गए हैं। इस उद्योग से जुड़े मजदूर पलायन कर गए हैं। लोगों में बेरोजगारी बढ़ी है। यदि यह उद्योग पूर्व की भांति सक्रिय रहता, तो युवाओं को यहीं रोजगार मिलता है। सरकार के उदासीन रवैये से यह हाशिये पर चला गया है।
प्रहलाद भगत


यहां का कंबल उद्योग बस नाम का रह गया है। मजदूर का अभाव है। कम मजदूरी पर कोई काम करने को तैयार नहीं है। कंबल तैयार करने की लंबी प्रक्रिया में अधिक लागत आती है। कंबल बुनकर समिति की भूमि फंड के अभाव में परती पड़ी है।
सुरेश पाल, अध्यक्ष

like (0)
cy520520Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments

Explore interesting content

No related threads available.

cy520520

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1210K

Credits

Forum Veteran

Credits
121848