नीतीश कुमार। PTI
दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार में बुनियादी आधारभूत संरचना, शिक्षा, रोजगार और महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर सरकार ने कई अच्छे कदम उठाए। अब नई सरकार के सामने उन संकल्पों को पूरा करने की चुनौती होगी, जो चुनाव में जनता से किए हैं। वादों पर अमल करने के लिए रोडमैप बनाना होगा। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर मसौदे तैयार किए जा रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
नीतीश कुमार की एक बार फिर मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी बिहार की राजनीति में नई शुरुआत का शुभ संकेत भी माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि नई सरकार को बहुत कुछ ऐसा करना होगा जिससे बिहार का आर्थिक और सामाजिक विकास तेज हो सके। खासकर, पलायन, शिक्षा, रोजगार, कानून व्यवस्था व महिला सशक्तीकरण बड़ा मुद्दा रहा।
चुनाव में एनडीए ने अपने संकल्प पत्र के बारे में कहा था कि ये सिर्फ संकल्प पत्र नहीं, बिहार की नई कहानी है। वो कहानी, जहां रोजगार है, शिक्षा है, उद्योग है, सुरक्षा है, विकास का स्पष्ट रोडमैप है। इसी के मद्देनजर प्रशासन के शीर्ष पर बैठे आला अफसरों का कहना है कि बिहार के सामने जो बड़ी चुनौतियां हैं उस मोर्चे पर नई सरकार काम करेगी।
इस बार सरकार स्थिर और विकासोन्मुख माडल पर काम करेगी। बुनियादी ढांचा, नौकरी-रोजगार व कल्याणकारी योजनाओं को लेकर नए रास्ते खुलेंगे। इस आधार पर रोडमैप बनेगा।
रोजी-रोजगार और पलायन:
राज्य में रोजी-रोजगार और पलायन बड़ा मुद्दा है। यह चुनाव में भी दिखा। अब नई सरकार के लिए एक करोड़ नौकरियां/रोजगार के वादे को पूरा करना प्राथमिकता में होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में हर तीन में से दो घरों का कम से कम एक सदस्य दूसरे राज्य में काम करता है। यह इस बात का प्रमाण है कि बिहार का श्रम बल यानी श्रमिक शक्ति किस तरह राज्य से पलायन कर रहा है।
श्रम संसाधन विभाग के अनुसार बिहार का 54 प्रतिशत श्रम बल अभी भी खेती-बाड़ी से जुड़ा है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 46 प्रतिशत है। सिर्फ पांच प्रतिशत श्रम बल को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार मिला है, जबकि राष्ट्रीय औसत 11 प्रतिशत है।
शिक्षा में बड़े सुधार को उठाने होंगे कदम:
बेहतर शिक्षा और अवसर की तलाश में मेधावी युवाओं काे बिहार से बाहर जाना पड़ता है। इससे राज्य से पैसा भी बाहर जाता है। जो युवा पढ़ाई के बाद बिहार लौटना चाहते हैं, उन्हें कमाई के लिए बेहतर अवसर नहीं मिलता है। पूर्व कुलपति डॉ. रासबिहारी सिंह का कहना है कि बिहार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं में अंतर को कम करने में अच्छी तरक्की की है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में, यह भारत का सबसे गरीब राज्य बना हुआ है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 1.89 लाख रुपये को पार कर गई है, लेकिन बिहार की राष्ट्रीय औसत के एक तिहाई से भी कम, लगभग 60 हजार रुपये है। ऐसे में नई सरकार को युवाओं की अच्छी पढ़ाई और लोगों की कमाई बढ़ाने के लिए काम करना होगा।
स्कूलों में ड्रॉप आउट कम करने की चुनौती:
स्कूलों में भवनों और आधारभूत संरचनाओं व शिक्षकों की नियुक्ति पर खूब काम हुआ, किंतु शिक्षा में गुणवत्ता की कमी और ड्रॉप आउट की दर चिंताजनक बनी हुई है। छात्र-छात्राओं का एक बड़ा हिस्सा मिडिल स्कूल से आगे नहीं बढ़ पाता। नई सरकार के सामने यह चुनौती है। उम्मीदें बरकरार हैं। शिक्षा, कौशल विकास व रोजगार पैदा कर बिहार शिक्षा में बदलाव की दिशा में और बड़ी छलांग लगा सकता है।
कानून-व्यवस्था पर होगा ज्यादा फोकस:
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार में जंगलराज खत्म करने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन चुनाव में कानून-व्यवस्था भी मुद्दा रहा। कुछ हद तक सही भी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, वर्ष 2015 से 2024 के बीच बिहार में अपराध दर में भारी बढ़ोतरी हुई है।
इसी अवधि राष्ट्रीय स्तर पर अपराध बढ़ने की दर 24 प्रतिशत रही। 2022 की तुलना में 2023 में बिहार में अपराध में 1.63 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, इसलिए यह माना जा रहा है कि नई सरकार कानून-व्यवस्था को लेकर कोई रियायत नहीं बरतेगी।
गरीबों के लिए पंचामृत गारंटी और लखपति दीदी:
एनडीए ने अपनी पंचामृत गारंटी के तहत गरीबों के लिए पांच प्रमुख कल्याणकारी वादे किए हैं। मुफ्त राशन, प्रति परिवार 125 यूनिट मुफ्त बिजली, पांच लाख रुपये तक मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, 50 लाख पक्के मकानों का निर्माण और पात्र परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन।
मतदान में बड़ी भूमिका निभाने वाली आधी आबादी सरकार की प्राथमिकता में है। महिला सशक्तिकरण एनडीए के घोषणापत्र का एक मुख्य फोकस है। नई सरकार का लक्ष्य एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी (सालाना एक लाख से ज्यादा कमाने वाली महिलाएं) बनाना रहेगा।
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