मौसम बदलते ही बच्चों में बढ़ा वायरल फ्लू का प्रकोप। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, लुधियाना। मौसम बदलते ही जिले में बच्चे तेजी से वायरल फ्लू की चपेट में आ रहे हैं। बड़े अस्पतालों की ओपीडी में रोजाना 50 से 60 बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम में भी रोज 25 से 30 बच्चे इलाज करवा रहे हैं। सिविल अस्पताल में रोजाना 35 से अधिक मरीज आ रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। कई बच्चे फ्लू की वजह से फेफड़ों तक की समस्या से जूझ रहे हैं। दयानंद मेडिकल कालेज एंड अस्पताल के पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट के अस्थमा व एलर्जी स्पेशलिस्ट डॉ. कर्मबीर सिंह गिल ने बताया कि मौसम बदलने पर अभिभावक बच्चों की सही देखभाल नहीं कर पाते, जिससे खतरा बढ़ जाता है।
डीएमसीएच की ओपीडी में ही रोजाना 35 से 40 बच्चे वायरल फ्लू के आ रहे हैं, जिनमें से सात-आठ को भर्ती करना पड़ता है। बच्चों में खांसी, जुकाम, नाक बहना, तेज बुखार और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षण मिल रहे हैं। अभिभावक बच्चों का इलाज केमिस्ट से दवा लेकर न करवाएं और न ही अपनी मर्जी से एंटीबायोटिक दें।
एलर्जी और अस्थमा से पीड़ित बच्चों का इलाज डॉक्टर की सलाह के मुताबिक ही जारी रखें और इनहेलर बंद न करें। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों को वायरल फ्लू से बचाने के लिए हर साल अगस्त-सितंबर में फ्लू वैक्सीन लगवाना जरूरी है। बच्चों को एलर्जी हो तो इलाज जल्द शुरू करें डॉ. गिल के अनुसार अगर किसी अभिभावक को यह लगे कि उनके बच्चे को एलर्जी या अस्थमा जैसे लक्षण हैं, तो वह बिना देर किए इलाज शुरू करवाएं।
उदाहरण के तौर पर अगर किसी बच्चे को तीन वर्ष की उम्र से एलर्जी शुरू हो गई है और अभिभावक उसका इलाज छह वर्ष की उम्र तक नहीं करवाते, तो आगे जाकर बीमारी बढ़ने लगती है। एलर्जी और बढ़ जाएगी। क्योंकि, बच्चों में 12 से 14 वर्ष तक चेस्ट बन रही होती है, अगर एलर्जी को टाइमली कंट्रोल कर लेंगे, तो अस्थमा नहीं बनेगा। छह वर्ष से पहले प्रीकोशन ले लेंगे, तो आगे इनहेलर की जरूरत नहीं पड़ेगी।
फ्लू से बचाव को वैक्सीन लगवाएं डॉ. गिल कहते हैं कि छोटे बच्चों को वायरल फ्लू से बचाने के लिए वैक्सीनेशन करवाएं। फ्लू की वैक्सीन आती है, जो कि हर वर्ष अगस्त से सितंबर के दौरान लगती है। आठ वर्ष की उम्र तक के बच्चों को वैक्सीन लगवा सकते हैं। अपनी मर्जी से बच्चों को एंटीबायोटिक न दें अभिभावक यह देखने को मिला है कि बहुत से अभिभावक बच्चे को खांसी, जुकाम होने पर कैमिस्ट से कफ सिरप या एंटीबायोटिक देकर देते रहते हैं। खासकर, एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को।gorakhpur-city-crime,Gorakhpur News,Gorakhpur Latest News,Gorakhpur News in Hindi,Gorakhpur Samachar, Gorakhpur News,Gorakhpur Latest News,Gorakhpur News in Hindi,Gorakhpur Samachar,Gorakhpur Zoo,Wildlife Conservation,Zoo Development,Animal Welfare,Uttar Pradesh News,Wildlife Management,Uttar Pradesh news
कई अभिभावक खांसी, जुकाम से पीड़ित बड़े बच्चे की दवा ही डोज कम करके छोटे बच्चों को देते रहते हैं। यह गलत है, क्योंकि छोटे बच्चे में यह पता नहीं चलता कि कितनी तेजी से सांस ले रहा है।
खांसी, जुकाम होने पर क्या करें
छोटे बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी किसी भी प्रकार की समस्या आने पर तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ से दिखाएं।
खांसी, जुकाम, वायरल फ्लू से पीड़ित बच्चों को स्कूल न भेजें। इससे दूसरे बच्चों में भी संक्रमण फैल सकता है।
बच्चों को तरल पदार्थ ज्यादा दें। एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग करवाते रहें। उन्हें बोतल में दूध न दें।
छोटे बच्चों को भीड़ वाली जगहों पर लेकर न जाएं। क्योंकि ऐसी जगहों पर बैक्टीरिया, वायरस अधिक सक्रिय रहते हैं।
अस्थमा व एलर्जी के चलते जो बच्चे इनहेलर पर हैं, वह इसे जारी रखें। इससे अटैक नहीं आएगा।
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