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महाबोधि स्वर्ण शिखर की 12वीं वर्षगांठ: 300 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु रहे मौजूद, मंदिर के सौंदर्यीकरण में थाईलैंड का महत्वपूर्ण योगदान

Chikheang 2025-11-17 06:37:11 views 996

  

महाबोधि मंदिर में स्वर्ण शिखर परियोजना की 12वीं वर्षगांठ में 300 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु रहे मौजूद। फोटो जागरण



संवाद सूत्र, बोधगया। महाबोधि मंदिर में स्वर्ण शिखर परियोजना की 12वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक समारोह आयोजित किया गया। थाईलैंड ने इस पवित्र मंदिर के संरक्षण और सौंदर्यीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

कार्यक्रम में तीन सौ से अधिक बौद्ध भिक्षु, श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संघों के प्रतिनिधि, स्वर्ण शिखर समिति का एक प्रतिनिधिमंडल और कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति शामिल थे।

सभी ने पहले मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध को नमन किया और अपने कार्य की सफलता की कामना की। बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति की सचिव डा. महाश्वेता महारथी ने अपने संबोधन में थाईलैंड की गोल्डन स्पायर समिति का हार्दिक स्वागत किया और उनके दीर्घकालिक योगदान के महत्व पर प्रकाश डाला। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उन्होंने 2014 में इस परियोजना की शुरुआत को याद किया, जिसमें पवित्र मंदिर के मौजूदा तांबे के शिखर को सोने की चादरों से मढ़ने का काम शुरू किया गया था। यह प्रयास थाईलैंड सहित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समर्पण, सटीकता और विशेषज्ञ मार्गदर्शन के साथ किया गया था।

सचिव ने शिखर के रखरखाव, मौसम से प्रभावित हिस्सों की सफाई और इस वर्ष जीर्णोद्धार कार्य के चौथे चरण को पूरा करने में गोल्डन स्पायर टीम के निरंतर समर्पण की भी सराहना की।

उन्होंने उन इंजीनियरों, शिल्पकारों और स्वयंसेवकों का विशेष आभार व्यक्त किया, जिनके सावधानीपूर्वक मचान निर्माण प्रयासों से दक्षिणी अग्रभाग और ऊपरी स्तूप की सफल सफाई संभव हो पाई। उन्होंने इस पवित्र कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने में सहयोग और समर्थन के लिए बोधगया के मेट्टाधाम मंदिर की भी हार्दिक सराहना की।

इस अवसर पर थाईलैंड के उप संघराजा सोमदत, थाईलैंड के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निदेशक; एक मंत्री और कोलकाता स्थित थाईलैंड के महावाणिज्य दूतावास के वरिष्ठ अधिकारी, महाबोधि महाविहार की मुख्य भिक्षु सिरीपोर्न तान्याथेप; भिक्षु चालिंदा, भिक्षु डा दीनानंद, भंते डा मनोज, बीटीएमसी के सदस्य डा. अरविंद सिंह और विभिन्न बौद्ध देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न मठों के प्रमुख भिक्षु शामिल थे।
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