एंटरटेनमेंट डेस्क, मुंबई। हर फिल्म को सबक की तरह ले रहे हैं अभिनेता ईशान खट्टर। ‘बियांड द क्लाउड’ से ‘होमबाउंड’ तक के सफर में उन्हें तमाम सीखें मिलीं। अब वेब सीरीज ‘द रॉयल्स’ के दूसरे सीजन की तैयारी में जुटे हैं ईशान... विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
आगे बढ़ने की रहेगी भूख
यह साल अभिनेता ईशान खट्टर के लिए काफी अच्छा रहा। एक तरफ उनकी फिल्म ‘होमबाउंड’ को तमाम प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिली, तो वहीं उनकी वेब सीरीज ‘द रायल्स’ का दूसरा सीजन बन रहा है। ‘बियांड द क्लाउड’ से ‘होमबाउंड’ तक कलाकार के तौर पर अपने विकास को लेकर ईशान कहते हैं, ‘किसी भी कलाकार की जिंदगी में ‘होमबाउंड’ जैसी फिल्म बहुत मुश्किल से आती है। मुझे इस फिल्म पर गर्व है।
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अच्छी बात यह है कि आज तक मैंने जितनी फिल्में चुनी हैं, वो मेरी पसंद रही हैं। मैं अपनी असफलता के लिए किसी पर अंगुली नहीं उठा सकता, ठीक वैसे ही इसका श्रेय किसी और को नहीं दे सकता। हमेशा से मेरी कोशिश रही है कि बतौर कलाकार आगे बढ़ता रहूं क्योंकि यह मेरे अंदर की भूख है और रहेगी। ऐसी कहानियों का हिस्सा बनूं, जो मुझे भी सिखाएं और दूसरों पर भी प्रभाव छोड़ें। प्रयास है कि मैं विविध भूमिकाएं निभा पाऊं और बतौर कलाकार खुद को चुनौती दे पाऊं।’
सिनेमा से मिली सीख
वे आगे कहते हैं, ‘कई सीख मुझे सिनेमा से मिली हैं, चाहे लोगों के बारे में हो, परिस्थितियों या व्यवहार के बारे में या फिर खुद के बारे में हो। भावनाओं या किसी और को समझने की ताकत मुझे काफी हद तक सिनेमा से मिली हैं। कुछ फिल्में निश्चित रूप से मनोरंजन के लिए होती हैं, लेकिन कुछ ऐसी फिल्में होती हैं जो उससे आगे चली जाती हैं। ‘होमबाउंड’ मेरे लिए वैसी ही फिल्म रही।’ आभारी रहूंगा उनका माजिद मजिदी, मीरा नायर और नीरज घेवन जैसे मंझे निर्देशकों ने ईशान के कलात्मक दृष्टिकोण को भी आकार दिया है।
इस बारे में ईशान कहते हैं, ‘माजिद मजिदी सेट पर पितातुल्य रहे हैं। उन्होंने जिस तरह से मेरे लिए नींव सेट की, उसके लिए मैं जिंदगीभर आभारी रहूंगा। जैसा कलाकार मैं बनना चाहता था, उसे उन्होंने न सिर्फ पहचाना, बल्कि निखारा भी। उन्होंने मुझे मेरी सीमाओं से आगे जाकर परफार्म करने के लिए प्रेरित किया। जैसा रोल उन्होंने मुझे 21 साल की उम्र में दिया, वैसा बड़े-बड़े कलाकारों को बहुत कम मिलता है। वे जिंदगी की साधारण कहानी में आसाधरण चीजें ढूंढ लेते हैं। बतौर फिल्ममेकर यही उनकी ताकत है।
‘ए सूटेबल ब्वाय’ के जरिए मीरा नायर मेरी पहली महिला निर्देशक रहीं। वह जिस तरह से अपने विषय को विजुलाइज करती हैं, जिस प्रकार तब्बू मैम को डायरेक्ट करती थीं, वो मैं कभी नहीं भूलूंगा। फिल्म में मेरा किरदार 24 साल का और तब्बू 48 साल की भूमिका में थीं। मीरा मैम ने तब्बू मैम से कहा था कि तुम मेरे पात्र के साथ 16 साल की लड़की हो जाओ। उस किरदार के लिए उस तरह से उनका सुझाव देना मजेदार था, उसकी वजह से तब्बू मैम के रोल में मैंने तत्काल परिवर्तन देखा। इस तरह के निर्देशक कलाकार के लिए मूल्यवान होते हैं।
इस डायरेक्टर ने किया प्रभावित
कम शब्दों में ज्यादा बोलना ज्यादा अहम होता है। चाहे वो स्क्रिप्ट राइटिंग में हो या निर्देशन में। मीरा मैम से एक और चीज सीखी। उनके सेट पर 115 कलाकार थे। वो पूरी तरह से किसी एक एक्टर पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकती थीं। ऐसे में काफी हद तक अपने पात्र की जिम्मेदारी लेना, यह मैंने उनके सेट पर सीखा।
वो सेट करते हैं माहौल नीरज घेवन एक ऐसे निर्देशक हैं जो सेट पर एक असाधारण और समावेशी माहौल बनाते हैं। उनका सेट अभिनेताओं के लिए बहुत सहायक होता है। उनके सेट पर किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझा जाता है। वह हर व्यक्ति को उनके नाम से संबोधित करते हैं, न कि ‘स्पाट दादा’ या ‘लाइट दादा’ जैसे पदनामों से।
वह सबकी बात सुनते हैं और हर किसी के योगदान को महत्व देते हैं। वह सीन की जरूरत के हिसाब से सेट का माहौल बनाते हैं। अगर इमोशनल सीन है तो हर कोई दबी आवाज में बात करता है। अभिनेता को कोई परेशान नहीं करता या उससे बात नहीं करता। क्लैप असिस्टेंट भी धीरे से क्लैप देता है। तो वहीं गुस्से वाले सीन के लिए हर कोई उसी जोश में रहता है। मैंने उनसे यही सीखा कि इस पेशे में सबसे महत्वपूर्ण है कि आप अपनी बात दूसरों तक बिना किसी को चोट पहुंचा दें, जो मनोरंजन से भी ऊपर की बात है।
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