हरियाणा में कर्ज और बर्बाद फसल से टूट चुके किसान ने की आत्महत्या, गांव में शोक की लहर_deltin51

deltin33 2025-9-29 19:36:32 views 1296
  कर्ज और बर्बाद फसल से टूटे किसान सूबे सिंह ने लगाया फंदा, मौत के बाद गांव में सन्नाटा। सांकेतिक तस्वीर





जागरण संवाददाता, झज्जर। कर्ज और जलभराव से बर्बाद फसल से टूटे मुंडाहेड़ा गांव के किसान सूबे सिंह (48 वर्ष) का रविवार को पोस्टमार्टम के बाद जब शव गांव पहुंचा, तो गमगीन माहौल में अंतिम संस्कार कर दिया गया। बीते शनिवार को भिंडावास झील के एरिया में ट्रैक्टर की छतरी पर चढ़कर पेड़ से फंदा लगाने की घटना ने पूरे इलाके को हिला दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

घटनाक्रम संज्ञान में आने के बाद से पूरे गांव में सन्नाटा छाया हुआ है। हर कोई यही सवाल करता दिखा - क्या हमारी मेहनत का यही फल है। स्वजनों के अनुसार, सूबे सिंह ने करीब 12 साल पहले अपना घर बनाना शुरू किया था, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण मकान अब तक अधूरा ही पड़ा है। उसकी इच्छा थी कि इस बार फसल अच्छी होगी तो घर में प्लास्टर करवा देगा और दरवाजे भी लगवा देगा।



लेकिन, पानी भरने और मौसम की मार से पूरी मेहनत पर पानी फिर गया। हालात यह रहे कि 10 एकड़ में बोई गई धान की फसल से मुश्किल से डेढ़ क्विंटल धान ही निकला। जब उसने यह नतीजा अपनी आंखों से देखा तो मानो उसका हौसला ही टूट गया।Trualt Bioenergy IPO,Jinkushal Industries IPO,IPO investment,primary market IPO,GMP analysis,grey market premium,IPO return comparison,share market investment,stock market IPO,investment advice   
घर में डेढ़ घंटे में लौटने की कही थी बात

शनिवार दोपहर जब वह घर से निकला तो उसने बेटे अर्पित को बताया कि वह कोसली सामान लेने जा रहा है और एक से डेढ़ घंटे में वापस आ जाएगा। बेटे को क्या पता था कि यह उसके पिता की आखिरी बातचीत होगी। कुछ घंटे बाद ही सूचना मिली कि उसने पेड़ से फंदा लगा लिया है। यह खबर मिलते ही पूरा परिवार और गांव वाले सन्न रह गए।


कर्ज का बोझ और खेती का घाटा

पिता जगदीश ने बताया, सूबे सिंह ने किसान क्रेडिट कार्ड से पांच लाख रुपये का ऋण लिया था। इसके अलावा उसने धान की फसल बोने पर करीब पौने चार लाख रुपये खर्च किए थे।

खेती के लिए उसने छह एकड़ जमीन पट्टे पर ली और चार एकड़ अपनी जमीन पर बोवाई की थी। करीब 20 से 25 हजार रुपये प्रति एकड़ की लागत लगाई थी, लेकिन जब फसल बर्बाद हो गई तो सारी मेहनत, खर्च और उम्मीदें राख हो गईं।  

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