Patna High Court: भागलपुर दंगा के 28 पीड़ितों को पटना उच्च न्यायालय ने राहत देने का आदेश दिया है।
कौशल किशोर मिश्र, भागलपुर। Patna High Court देश के इतिहास का बदनुमा दाग बने 1989 के दंगे के 28 पीड़ितों के जख्म पर 18 साल बाद मरहम लगा है। यह मरहम उन 28 दुकानदारों के जख्मों पर लगा है, जिनकी दुकानें दंगे के दौरान लूट ली गई थीं या आग के हवाले कर दी गई थीं। उच्च न्यायालय, पटना ने दंगा पीड़ित राहत कमेटी की वर्ष 2016 में एक रिट फाइल कर न्यायालय से न्याय की गुहार लगाई थी। मामले में कमेटी के महासचिव खुर्शीद आलम ने याचिका दाखिल की थी। उसी रिट पर सुनवाई पूरी करते हुए उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव रॉय ने आदेश दिया है कि ऐसे पीड़ित अपना-अपना आवेदन भागलपुर के जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करें। ताकि डीएम पीड़ितों को राहत राशि को लेकर तार्किक निष्कर्ष पर पहुंच सकें। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
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बिहार सरकार ने 2006 में ही पीड़ितों के बैंकों के कर्ज कर दिए थे माफ
बिहार सरकार ने 2006 में ही उन दुकानदारों के बैंकों का कर्ज माफ कर दिया था जिनकी दुकानों को दंगे के दौरान या तो आग के हवाले कर दिया गया था या लूट ली गई थीं। दरअसल, भागलपुर के इन 28 दंगा पीड़ितों ने तातारपुर स्थित स्टेट बैंक की शाखा से लोन ले रखा था। लोन माफी की घोषणा के बाद भी बैंक की तरफ से एनओसी नहीं दी गई थी। जबकि ऐसे पीड़ितों में जिन्होंने मिरजान स्थित स्टेट की शाखा से लोन लिया था, बैंक से एनओसी मिलने पर उन पीड़ितों को पहले ही राहत मिल चुकी थी।
सांस्थिक वित्त निदेशालय ने एसबीआई के महाप्रबंधक को दिया था पत्र
कर्ज माफी के बाद भी राहत के लिए 18 सालों से दौड़ लगा रहे 28 दंगा पीड़ितों की पीड़ा सुन बिहार सरकार के सांस्थिक वित्त निदेशालय के उप निदेशक ने भारतीय स्टेट बैंक के महाप्रबंधक को सात दिसंबर 2022 को पत्र लिखकर कहा था कि वे आवेदक की समस्या सुन उसका त्वरित निष्पादन करें। उप निदेशक ने मुख्यमंत्री के जनता दरबार में दंगा पीड़ितों की इस समस्या को उठाए जाने के बाद मिले निर्देश पर पत्र लिखा था। यह जानकारी दी थी कि भागलपुर के तातारपुर स्थित एसबीआई की शाखा की तरफ से दंगा पीड़ितों को नो ड्यूज पत्र दें। लेकिन मामले में तब भी नो ड्यूज प्रमाण पत्र नहीं दिया जा सका था।
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