अंधेपन के करीब ले जा सकती हैं रेटिना से जुड़ी 6 बीमारियां (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। World Retina Day 2025: आंखें हमारी सबसे कीमती संपत्ति हैं, लेकिन कई बार बड़ी बीमारियां चुपचाप इन्हें नुकसान पहुंचाती रहती हैं। खासकर रेटिना से जुड़ी कुछ समस्याएं धीरे-धीरे नजर को कमजोर कर देती हैं और समय पर इलाज न मिलने पर स्थायी अंधापन भी हो सकता है। यही वजह है कि इन बीमारियों को समझना और इनके शुरुआती संकेतों को पहचानना बेहद जरूरी है। आइए, डॉ. अभिषेक दवे (प्रधान सलाहकार, नेत्र विज्ञान, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, नोएडा) से जानते हैं इस विषय के बारे में। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रेटिना क्या है?
रेटिना आंख के पिछले हिस्से में मौजूद पतली झिल्ली है, जो प्रकाश को पहचानकर दिमाग तक संदेश पहुंचाती है। यही कारण है कि जब रेटिना प्रभावित होती है तो साफ देखने की क्षमता कम होने लगती है और धुंधली या विकृत नजर की समस्या आती है।
रेटिना से जुड़ी बीमारियां
रेटिनल टियर और डिटैचमेंट
जब आंख के अंदर मौजूद जैल जैसा पदार्थ (विट्रियस) रेटिना को खींचता है तो उसमें दरार पड़ सकती है। अगर इस दरार से तरल पदार्थ भीतर चला जाए, तो रेटिना अपनी जगह से हट सकती है। इसे रेटिनल डिटैचमेंट कहते हैं, जो समय रहते इलाज न मिलने पर स्थायी अंधेपन का कारण बन सकता है।
उम्र से जुड़ा मैक्युलर डिजेनरेशन (AMD)
यह डिजीज रेटिना के बीच वाले हिस्से यानी मैक्युला को प्रभावित करता है। मैक्युला ही हमें बारीक और स्पष्ट देखने की क्षमता देता है। इसके दो प्रकार होते हैं:
- ड्राई एएमडी: धीरे-धीरे रेटिना की कोशिकाएं कमजोर होती जाती हैं।
- वेट एएमडी: आंख में असामान्य रक्त नलिकाएं बनने लगती हैं, जिससे नजर तेजी से खराब होती है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी
लंबे समय तक उच्च शुगर लेवल रेटिना की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। इनमें से खून या तरल पदार्थ लीक होने लगता है और नजर धुंधली होने लगती है। अगर यह समस्या मैक्युला तक पहुंच जाए तो उसे डायबिटिक मैक्युलर एडिमा कहा जाता है।
एपिरेटिनल मेम्ब्रेन
कभी-कभी रेटिना की सतह पर पतली झिल्ली या दागदार ऊतक बन जाते हैं। इससे रेटिना खिंचने लगती है और देखने का अनुभव वैसा हो जाता है जैसे झुर्रीदार शीशे से देख रहे हों।
मैक्युलर होल
रेटिना के बीच वाले हिस्से यानी मैक्युला में एक छोटा छेद बन जाता है। इसकी वजह से साफ और सीधा देखने में कठिनाई होती है।bhojpur-general,Bihar news, Patna news, Para Military Force, toilet construction, election duty, Bihar elections 2025, quality control, infrastructure development, police administration, RAF officials, public health engineering department, accommodation facilities,Bihar news
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा
यह एक आनुवंशिक रोग है, जिसमें रेटिना की कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं। पहले नाइट ब्लाइंडनेस यानी रात में देखने की दिक्कत होती है और बाद में साइड विजन भी प्रभावित होने लगता है।
शुरुआती लक्षण न करें नजरअंदाज
रेटिना डिजीज अक्सर बिना दर्द के बढ़ती हैं, लेकिन कुछ शुरुआती संकेतों के जरिए खतरे का पता लगाया जा सकता है:
- आंखों के सामने तैरते धब्बे या रोशनी की चमक दिखना
- नजर धुंधली या विकृत लगना
- अचानक किसी हिस्से में अंधेरा या साया पड़ना
- रात में देखने में परेशानी
ऐसे लक्षण दिखते ही तुरंत आई स्पेशलिस्ट से संपर्क करना चाहिए, वरना देर होने पर नजर वापस पाना मुश्किल हो सकता है।
ट्रीटमेंट के मॉडर्न ऑप्शन्स
आज के दौर में रेटिना रोगों के इलाज के कई प्रभावी तरीके मौजूद हैं:
- एंटी-वीईजीएफ इंजेक्शन: असामान्य रक्त नलिकाओं की बढ़त को रोकते हैं।
- लेजर उपचार: लीक हो रही रक्त वाहिकाओं को सील करने और रेटिनल टियर को रोकने में मदद करता है।
- क्रायोथेरेपी: ठंडे तापमान से रेटिनल टियर को स्थिर किया जाता है।
- विट्रेक्टॉमी सर्जरी: आंख के जैल जैसे पदार्थ को निकालकर रक्तस्राव या झिल्ली हटाई जाती है।
- मैक्युलर होल सर्जरी: छेद को बंद कर रेटिना को सामान्य स्थिति में लाया जाता है।
रेटिना डिजीज आंखों के लिए एक खामोश खतरा हैं, जो बिना दर्द दिए नजर छीन सकते हैं। इसलिए नियमित आंखों की जांच कराना, शुरुआती लक्षणों को पहचानना और समय पर इलाज कराना बेहद जरूरी है। ध्यान रहे, जागरूकता और सतर्कता ही दृष्टि को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकती है।
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