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बैंक को करोड़ों का चूना लगाने वाले तीन दोषियों को कोर्ट ने सुनाई सजा, पंचकूला के प्रगति फीड्स घोटाले में फैसला

LHC0088 2 hour(s) ago views 584

  

फैसला सुनाते हुए विशेष सीबीआई अदालत ने कहा कि बैंक को भारी वित्तीय क्षति पहुंची है और यह विश्वासघात का गंभीर मामला है।



जागरण संवाददाता, पंचकूला। विशेष सीबीआई अदालत ने इंडियन ओवरसीज बैंक से करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी करने के मामले में प्रगति फीड्स फर्म के साझेदारों और एक कर्मचारी को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है।

अदालत ने मुख्य आरोपित सतीश कुमार को ढाई साल कैद और 50 हजार रुपये जुर्माना, चरण सिंह को दो साल कैद और 30 हजार रुपये जुर्माना, जबकि कार्यालय सहायक कृष्ण को एक साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई है।


यह मामला 7 दिसंबर 2020 को दर्ज हुआ था। शिकायत इंडियन ओवरसीज बैंक के तत्कालीन रीजनल मैनेजर ने दी थी। शिकायत में आरोप था कि प्रगति फीड्स नामक साझेदारी फर्म ने बैंक से विभिन्न ऋण सुविधाएं लेकर करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी की।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

फर्म में सतीश कुमार और चरण सिंह पार्टनर थे। फर्म को बैंक द्वारा 2013 से लेकर 2019 तक लगभग 10.36 करोड़ की कुल उधारी सीमा दी गई थी, जिसमें भवन निर्माण, मशीनरी खरीद, कार्यशील पूंजी और अन्य मदों के लिए ऋण शामिल थे।
झूठे दस्तावेज और फर्जी बैलेंस शीट का इस्तेमाल

जांच में सामने आया कि फर्म ने फरवरी 2017 में ऋण की नवीनीकरण और बढ़ोतरी के लिए आवेदन करते समय झूठे व जाली दस्तावेज जमा किए। उस समय फर्म ने अपना पूरा प्लांट और मशीनरी डीपी फीड्स नामक दूसरी फर्म को किराये पर दे दी थी, लेकिन बैंक को इसकी जानकारी नहीं दी गई।

सीबीआई की जांच के अनुसार, प्रगति फीड्स ने 2013-14 से लेकर 2016-17 तक की फर्जी आडिटेड बैलेंस शीट्स बैंक को जमा कराईं, जिनमें बिक्री और लाभ के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए थे। जबकि आयकर विभाग में दाखिल बैलेंस शीट्स में इससे कहीं कम आंकड़े दर्ज थे।
बैंक को हुआ 12.73 करोड़ रुपये का नुकसान

सीबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि आरोपितों ने बैंक से लिए गए ऋण का दुरुपयोग किया और उसे अपने परिजनों के खातों में या अन्य फर्जी व्यापारिक संस्थाओं के माध्यम से ट्रांसफर कर दिया।

जांच अधिकारी के अनुसार, फर्म ने बैंक की नकद ऋण सीमा में कृत्रिम रूप से उच्च जमा दर्शाने के लिए बड़े-बड़े चेक जमा किए जो बाद में बाउंस हो गए। इससे बैंक को भ्रमित कर अधिक ड्रॉइंग पावर हासिल की गई। इंडियन ओवरसीज बैंक को इस धोखाधड़ी के कारण 12.73 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जबकि आरोपितों ने इसका गलत फायदा उठाया।

जांच के दौरान सीबीआई ने कुल 32 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें बैंक अधिकारी, चार्टर्ड अकाउंटेंट और जांचकर्ता शामिल थे। चार्टर्ड अकाउंटेंट ने अदालत को बताया कि उनके नाम और फर्म की सील का जाली उपयोग किया गया। बैंक अधिकारियों ने भी दस्तावेजों के जरिए सीबीआई के आरोपों की पुष्टि की।

  



विशेष सीबीआई अदालत ने कहा कि आरोपितों ने सोची-समझी साजिश के तहत बैंक को धोखा देने, फर्जी दस्तावेज तैयार करने और उनका उपयोग करने का अपराध किया है। फैसला सुनाते हुए कहा कि दोषियों के कृत्य से बैंक को भारी वित्तीय क्षति पहुंची है और यह विश्वासघात का गंभीर मामला है।  
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