भाई बहन के प्रेम को दर्शाता है सामा चकेवा
अजीत कुमार, फुलकाहा (अररिया)। नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में लोक आस्था का पर्व सामा चकेवा की तैयारी चल रही है। छठ पर्व के बाद ही महिलाएं इसकी तैयारी में जुट जाती है। शारदा सिन्हा के गीत जहां बजने लगे हैं वहीं महिलाएं मिट्टी की प्रतिमा को अंतिम रूप दे रही हैं। इन प्रतिमाओं में सामा चकेवा चुगला, सतभैया, वृंदावन एवं कुछ खास पक्षियां हैं। यह पर्व भाई बहन के पवित्र रिश्ते को दशार्ता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रविवार की रात प्रतिमा के विसर्जन के साथ इस पर्व की समाप्ति होगी। इस पर्व को लेकर क्षेत्र में महिलाओं एवं बच्चों में खासा उत्साह देखा जा रहा है। नरपतगंज के हाट एवं बाजारों में कुम्हार द्वारा बनाई गई मिट्टी के सामा चकेवा की खूब बिक्री हो रही है।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण की पुत्री सामा के संबंध में किसी चुगले ने पिता से सामा की शिकायत कर दी। कृष्ण गुस्से में आकर सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दिया। बहुत दिनों तक सामा इस श्राप के कारण पक्षी बनी रही, किंतु अपने भाई चकेवा ने प्रेम व त्याग के बल पर सामा को मनुष्य का रूप मिला। उसके साथ हीं चुगले को प्रताड़ित भी करवाया।
उसी की याद में भाई बहन के पवित्र रिश्ते को छठ पर्व के आठवें दिन निभाया जाता है। इस पर्व में चुगले की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगाकर उसे पीटने की भी परंपरा है। परंपरा के अनुसार धान की नई फसल का चूड़े बनाकर बहनें भाई को चूड़ा दही खिलाती हैं।
लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। फुलकाहा दुर्गा मंदिर के पुजारी मनोज झा बताते हैं कि यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा और पुत्र साम्ब के पवित्र प्रेम पर आधारित है। चुड़क नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी।
क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया। साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया। यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपनी बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया। तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है।
सात दिनों तक चलने वाले इस पर्व में बहनें भाई की खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं। इस पर्व में बहनें पारंपरिक गीत गाती हैं। सामा-चकेवा व चुगला की कथा को गीतों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंच कर गीतों के साथ उसका विसर्जन करती हैं। |
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