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AI ने कैसे वीडियो की दुनिया पलट दी: असली और नकली की लड़ाई

LHC0088 2025-10-23 18:27:24 views 887

  

AI ने कैसे वीडियो की दुनिया पलट दी: असली और नकली की लड़ाई



टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। बीते कुछ दिनों से फेसबुक और इंस्टाग्राम पर एक वीडियो वायरल है, जिसमें सड़क किनारे एक खूबसूरत लैंबोर्गिनी खड़ी है। अचानक दो सांड उसकी तरफ दौड़ते हैं, उनमें से एक सांड छलांग लगाकर गाड़ी की विंडशील्ड, बोनट और उसके रूफ को पूरी तरह डैमेज कर देता है। वीडियो पहली नजर में एकदम असली दिखता है, पर यह पूरी तरह से मशीनी दिमाग की कल्पना है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दरअसल, इंस्टाग्राम रील्स, फेसबुक, यूट्यूब शॉर्ट्स पर स्क्रॉल करते हुए अब ऐसे बेशुमार वीडियो मिल जाएंगे, जो सही हैं या गलत, इसका अंतर आप आसानी से नहीं कर पाएंगे। वर्षों से लोग इंटरनेट पर जुड़ाव महसूस करते रहे हैं, यह संवाद का सबसे बेहतर माध्यम बना है। लेकिन, जिस तरह AI जेनरेटेड फोटो और वीडियो की भरमार हो रही है, उससे अब किसी भी बात पर विश्वास करना मुश्किल होता जा रहा है।

चैटजीपीटी बनाने वाली कंपनी ओपनएआई ने हाल में सोरा-2 को पेश किया है, जो असली जैसा वीडियो जेनरेट कर आपको भ्रमित कर सकता है। यह इंटरनेट को ऐसी तकनीक देने जा रहा है, जिसके लिए अधिकांश लोग अभी तैयार नहीं हैं। एक तरह से कहें तो यह एआई जालसाजी का एक बेहद महत्वपूर्ण मोड़ भी है, जहां से यूजर्स अब हर वीडियो को फेक वीडियो की नजर से देखने लगेंगे। वहीं आने वाले समय में स्कैमर AI वीडियो जेनरेटर का बेलगाम प्रयोग करने लगेंगे।
कुछ ही सेकंड में बन जाते हैं वीडियो

कोई भी यूजर वास्तविक फोटो को अपलोड करके कुछ ही सेकंड में इससे वीडियो तैयार कर सकता है। इसे एप के भीतर पोस्ट किया जा सकता है या फिर डाउनलोड करके वीडियो को अन्य प्लेटफार्म जैसे इंस्टाग्राम या फेसबुक पर शेयर किया जा सकता है। इतना ही नहीं यूजर को क्रिएट करने के साथ रीमिक्स का भी ऑप्शन मिलता है। ओपनएआई के सोरा-2 के अलावा जैमिनी चैटबाट पर बना गूगल का वीओ-3 टूल और मेटा एआई ऐप का वाइब्स भी ऐसे क्रिएटिव वीडियो बना सकता है, पर सोरा द्वारा तैयार वीडियो कहीं अधिक वास्तविक प्रतीत होता है।
फेक वीडियो को पहचानें कैसे?

AI जेनरेटेड वीडियो में अक्सर वाटरमार्क या ऐप की ब्रांडिंग होती है, पर कुछ यूजर इसे एडिट करने में सक्षम होते हैं। ऐसे वीडियो बहुत छोटे, अक्सर 10 सेकंड तक के ही होते हैं। अगर किसी वीडियो की क्वालिटी बहुत अच्छी है, तो फेक हो सकती है, क्योंकि AI माडल इंटरनेट पर उपलब्ध फुटेज से ही ट्रेंड होते हैं।

AI जेनरेटेड वीडियो में किसी साइन बोर्ड या गाड़ी के नंबर प्लेट में अक्सर गलतियां दिख जाती है। इसी तरह वीडियो में कैरेक्टर की लिप सिंकिंग में भी तालमेल का अभाव दिख सकता है। एआई वीडियो में इस तरह की गलतियों को कब तक चिह्नित किया जा सकता है, यह तेजी से बदलती तकनीक के दौर में कह पाना संभव नहीं है। इंटरनेट मीडिया पर विश्वसनीयता का संकट तेजी से बढ़ रहा है, इसका कम से कम और जरूरी कार्यों के लिए प्रयोग करना ही समझदारी होगी।

इसका मुख्य रूप से तीन कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है, पहले आपटेक्स्ट प्राम्प्ट से वीडियो बना सकते हैं, दूसरा कंटेंट को रीमिक्स कर सकते हैं और तीसरा, पर्सनलाइज्ड फीड में एआई वीडियो को खोज सकते हैं। इसका फैमियो फीचर यूजर्स को एआई जेनरेटेड सीन से जुड़ने का मौका देता है। हालांकि, यह अभी कुछ ही आइओएस यूजर्स के लिए है, व्यापक स्तर पर इसकी खूबियों खामियों को जांचना बाकी है।
शॉर्ट फार्म कंटेंट शेयरिंग प्लेटफॉर्म है सोरा

ओपनएआई का सोरा काफी हद तक शॉर्ट फार्म कंटेंट शेयरिंग प्लेटफॉर्म से मिलता जुलता है। सोरा के अलावा मेटा एआई का वाइब्स फीचर भी एआई वीडियो का शार्ट फॉर्म फीड है। इसमें यूजर वीडियो बनाकर इंस्टाग्राम और फेसबुक पर शेयर कर सकते हैं। विजुअल्स, म्यूजिक और स्टाइल आदि को एडिट किया जा सकता है। वहीं इंस्टाग्राम जैसे इंटरनेट मीडिया सामान्य उद्देश्य के लिए यूजर जेनरेटेड कटेट पर निर्भर है। हालांकि, इनमें भी एडिटिंग और रीमिक्सिंग टूल्स जैसी सुविधाएं मिलती है।
इन बातों पर नजर रखना जरूरी

हालांकि एआई प्लेटफॉर्म सेक्सुअल इमेज, सेहत के लिए गलत सुझाव और प्रोपगैंडा जैसे वीडियो को प्रतिबंधित तो करते हैं, फिर भी ऐसे वीडियो तैयार किए जा सकते है, जो चिंताजनक भी हो सकते हैं। इन बातों पर नजर रखना जरूरी है। एआई से वीडियो तैयार करने के बाद अन्य तरह के टूल्स से वीडियो में छेड़छाड़ की जा सकती है। न्यूट्रिशन टिप्स देने के नाम पर भ्रामक वीडियो बनाने या सेहत को लेकर अनावश्यक और अनुपयोगी जानकारियां दी जा सकती हैं। किसी व्यक्ति के बारे में आपत्तिजनक जानकारी वाले वीडियो बनाना संभव है। ऐसे वीडियो की भरमार है, जो तथ्यों से परे हैं।
फोटो और वीडियो दोनों को ही लेकर बरतनी होगी सतर्कता

समय के साथ मनुष्य का दिमाग यह विश्वास करने के लिए तैयार हुआ कि जो कुछ भी हम देखते हैं, ठहरकर उस पर विचार करने की जरूरत होती है। इसी तरह वीडियो को देखते हुए यह उत्सुकता होनी चाहिए कि क्या वास्तविक दुनिया में ऐसा हुआ है या नहीं।

फोटो में छेड़छाड़ की आसानी के चलते सजगता तो बढ़ी है, पर वीडियो में छेड़छाड़ के लिए अपेक्षाकृत अधिक स्किल की जरूरत होती है, इसलिए वैधता साबित करने के लिए वीडियो पर लोगों का भरोसा बना रहा, लेकिन अब एआई के जमाने में असली और नकली वीडियो के बीच भेद तेजी से मिटता जा रहा है।

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