लोकसभा में गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी और राज्यसभा में राज्यसभा सदस्य महेंद्र भट्ट ने रखा विषय। प्रतीकात्मक
राज्य ब्यूरो, देहरादून। विषम भूगोल और 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन्यजीवों के निरंतर बढ़ते हमलों का मुद्दा संसद में भी गूंजा। शुक्रवार को लोकसभा में गढ़वाल सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी और राज्यसभा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य महेंद्र भट्ट ने यह विषय प्रमुखता से उठाया। बलूनी ने वन्यजीवों के हमलों की रोकथाम को त्वरित, ठोस व कारगर रणनीति लागू करने पर जोर दिया। वहीं, राज्यसभा सदस्य भट्ट ने राज्य के लिए विशेष कार्ययोजना बनाने व आर्थिक मदद का आग्रह केंद्र से किया।
सांसद बलूनी ने लोकसभा में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों विशेषकर गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि राज्य में वन्यजीवों के हमलों के कारण आमजन का घर से बाहर निकलना, बच्चों का स्कूल जाना और महिलाओं का घास के लिए जंगल जाना जोखिमपूर्ण हो गया है। अनेक लोग जान गंवा रहे हैं और घायल हो रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में दहशत का माहौल है।
बलूनी ने कहा कि कुछ दिन पहले उन्होंने यह विषय केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के समक्ष भी रखा था, ताकि तत्काल व प्रभावी कदम उठाए जा सकें। उन्होंने राज्य के वन विभाग मुखिया से भी आग्रह किया कि वन्यजीवों के हमलों की नियमित समीक्षा कर प्रतिदिन रिपोर्ट उपलब्ध कराई जाए, ताकि समस्या पर प्रभावी निगरानी व कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने देकर कहा कि जनसुरक्षा सर्वाेपरि है और इस विषय पर ठोस, त्वरित एंव परिणामोन्मुख कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए वह प्रयासरत हैं।
उधर, राज्यसभा में राज्यसभा सदस्य भट्ट ने राज्य में 25 वर्ष में वन्यजीवों के हमले में मृत व घायल व्यक्तियों के आंकड़े रखते हुए कहा कि समस्या अब बहुत गंभीर हो गई है। इन वर्षों में 1264 व्यक्तियों की जान गई, जबकि 6519 घायल हुए हैं। उन्होंने कहा कि इसी वर्ष अब तक भालू ने पांच और गुलदार ने 19 व्यक्तियों की जान ली है। 130 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। उन्होंने पौड़ी, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग समेत अन्य जिलों में हाल में हुई घटनाओं का उल्लेख भी किया।
भट्ट ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि समस्या की गंभीरता को देखते हुए इससे निबटने को विशेष कार्ययोजना बनाने के साथ ही उत्तराखंड को अधिक आर्थिक मदद मुहैया कराई जाए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र एवं राज्य से मृतकों के स्वजन को दी जाने वाली अनुग्रह राशि में अधिक से अधिक मदद को लेकर नीति बनाई जानी चाहिए। साथ ही घायलों का पूरा उपचार सरकार के माध्यम से हो, ताकि पीड़ित परिवारों को समुचित मदद मिल सके। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
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