सोनपुर मेले में ढोलक की ताफ
जागरण संवाददाता, हाजीपुर(वैशाली)। विश्वप्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला इस बार ढोलक की मधुर थाप से खासा जीवंत हो उठा है। मेले में घूमने वाले यात्रियों को ढोलक की ध्वनि सिर्फ आकर्षित ही नहीं कर रही, बल्कि उनमें उत्साह, उमंग और लोक-परंपरा का अद्भुत एहसास भी भर रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस वर्ष मेले में ढोलक की मात्र तीन दुकानें लगी हैं, फिर भी उनकी थाप पूरे मेला परिसर में अपनी पहचान दर्ज करा रही है।
हाजीपुर के बरई टोला चौक के युवा मोहम्मद नसीरुद्दीन अपनी मां के साथ इस बार मेले में ढोलक लेकर पहुंचे हैं। वे बताते हैं कि उनके पास 800 रुपए से शुरू होकर विभिन्न कीमतों की ढोलक उपलब्ध है।
महंगे मॉडल भी उनकी दुकान में मौजूद हैं, जिन पर कारीगरी और ध्वनि की गुणवत्ता अलग ही नज़र आती है। नसीरुद्दीन की दुकान के पास ही एक अन्य दुकानदार ढोलक बजाकर राहगीरों का ध्यान खींच रहा है।
उसकी तालबद्ध थाप सुनकर लोग अनायास कदम रोक लेते हैं।
मेले में बच्चों के लिए छोटी लघु ढोलकियां भी खूब बिक रही हैं। इन्हें छड़ी से बजाया जाता है, जबकि बड़ी ढोलक हाथ से बजाई जाती है।
ढोलक छोटे नगाड़े का एक रूप मानी जाती है और लोक संगीत तथा भक्ति संगीत में इसका उपयोग प्रमुख रूप से होता है।
उंगलियों और हथेलियों से पड़ने वाली थाप जब हवा में गूंजती है तो आसपास के दुकानदार तक कुछ पल ठहरकर इसकी देहाती लय का आनंद लेते नज़र आते हैं।
ढोलक बनाने की कला भी पारंपरिक है। आम, बीजा, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी को खोखला कर इसके दोनों सिरों पर बकरे की खाल चढ़ाई जाती है।
डोरियों से इसे कसकर रखा जाता है और डोरियों में लगे छल्लों के जरिए स्वर मिलाने का काम किया जाता है। यह वाद्य गायन, नृत्य और भक्ति अनुष्ठानों में ताल देने का मुख्य आधार रहा है।
सोनपुर मेला सदियों से लोक-संस्कृति और परंपराओं का केंद्र रहा है। ऐसे में ढोलक की गूंज इस पहचान को और गहरा करती है। फिल्म तीसरी कसम के प्रसिद्ध गीत \“लाली लाली डोलिया में लाली रे…\“ की तरह ही मेले में गूंजती ढोलक की धुनें बिहार की माटी की असली महक को महसूस कराती हैं।
इस वर्ष ढोलक की थाप ने मेले को एक बार फिर लोक-संगीत की आत्मा से जोड़ दिया है। |