उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे
मनोज त्रिपाठी, जागरण, लखनऊः सर्वाधिक एक्सप्रेसवे वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सौर ऊर्जा संचालित एक्सप्रेसवे परियोजना पर ग्रहण लग गया है। राज्य सरकार ने 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर मुख्य मार्ग और सर्विस लेन के बीच खाली पड़ी 15 से 20 मीटर की पट्टी पर 500 मेगावाट की क्षमता वाले सौर ऊर्जा पैनलों को लगाने लक्ष्य रखा था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
योगी आदित्यनाथ सरकार की योजना अगर फलीफूत होती तो यह सौर ऊर्जा का उत्पादन शुरू होने के बाद यह एक्सप्रेसवे सौर ऊर्जा संचालित देश का पहला एक्सप्रेसवे बन जाता। निवेशकों के रुचि न लेने के कारण यह परियोजना फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।
राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे की सौर ऊर्जा परियोजना की जिम्मेदारी सौंपी थी। यूपीडा ने सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत 1,800 करोड़ रुपये की इस परियोजना पर काम भी शुरू किया था।
यूपीडा ने इसके लिए ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन के लिए वैश्विक गठबंधन जीईएपीपी (ग्लोबल एनर्जी अलायंस फार पीपल एंड प्लेनेट) से अध्ययन कराया था। जीईएपीपी ने अपने अध्ययन में यह बताया था कि एक्सप्रेसवे के किनारे दोनों ओर 450 से 500 मेगावाट के सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाए जा सकते हैं। इससे संबंधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को राज्य सरकार ने मंजूरी भी दे दी थी।
इस परियोजना की लागत करीब 1,800 करोड़ रुपये निकाली गई थी। इसके साथ ही इससे उत्पादित बिजली की दर चार से 4.50 रुपये प्रति यूनिट रखने का प्रस्ताव भी तैयार किया गया था। इसके बाद से यूपीडा दो बार निविदा आमंत्रित कर चुका है, लेकिन कंपनियां इस परियोजना में रुचि नहीं ले रही हैं।
कंपनियों का तर्क है कि उत्पादित बिजली की खरीद सरकार करे, तभी वे इस परियोजना पर काम शुरू करेंगी। यह एक्सप्रेसवे चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा, जालौन, औरैया व इटावा से होकर गुजरता है। इन जिलों के एक लाख घरों को इस परियोजना से बिजली उपलब्ध कराई जानी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 16 जुलाई 2022 को इसका उद्घाटन किया था। फिलहाल कंपनियों के रुख के चलते अगर सरकार बिजली लेने को तैयार हो गई तो ही इस परियोजना पर काम शुरू किया जा सकेगा। |