विधि संवाददाता, लखनऊ। बीएसएनएल कंपनी को करोड़ों रूपये का आर्थिक नुकसान पहुचाने का दोषी पाकर टेलीफोन एक्सचेंज के एसडीई गुलाब चंद चौरसिया व एसडीई हरिराम शुक्ला को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश रजनीश मोहन वर्मा ने दो-दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
साथ ही प्रत्येक दोषी पर दस-दस लाख रूपये का जुर्माना भी लगाया है। दोनों ने कई पीसीओ संचालकों व टेलीफोन उपभोक्ताओ के साथ मिलकर नियम विरुद्ध तरीके से भारी मात्रा में आइएसडी कॉल करवाकर नुकसान पहुंचाया था।
न्यायालय ने इस गंभीर मामले की लचर विवेचना पर कड़ी नाराजगी जताते हुए विवेचक सुरेंद्र राय के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए सीबीआई के निदेशक को आदेश की प्रति भेजने का आदेश दिया है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि विवेचक ने कोर्ट में शपथ लेकर झूठे तथ्य पेश किए और विवेचक इस बात से संतुष्ट था कि उसका झूठ पकड़ा नहीं जाएगा। सीबीआई जैसी संस्था में कार्यरत किसी व्यक्ति से ऐसे अपराध किए जाने की कल्पना नहीं की जा सकती है। इससे सीबीआई जैसी संस्था की विश्वसनीयता धूमिल होती है।
आरोप लगाया गया कि बीएसएनएल अधिकारियों ने छह पीसीओ और 18 व्यक्तियों को बिना अधिकार के एसटीडी और आईएसडी सुविधा दी, लेकिन विवेचक ने चार्जशीट में इन सभी को आरोपित नहीं बनाया।
साथ ही विवेचक ने इन सभी को आरोपित न बनाने के लिए यह कारण दिया कि उनके नंबरों का प्रयोग अज्ञात लोगों ने किया और आइएसडी कॉल करते समय इन लोगों के फोन डेड हो जाते थे, जिससे उन्हें पता नहीं चल पाता था कि उनके फोन का इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं।
इस तथ्य के लिए विवेचक ने टेक्निकल टीम की रिपोर्ट को आधार बनाया है, लेकिन टेक्निकल टीम की रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं लिखा कि आइएसडी कॉल करते समय फोन डेड हो जाते है। विवेचक ने कोर्ट में दिए बयान में भी यही कहा कि इन सभी की किसी प्रकार की सांठगांठ का कोई सबूत नहीं मिला।
कोर्ट ने कहा कि विवेचक ने फोन के डेड होने की कोई विवेचना नहीं तथा इतने बड़े अपराध में शामिल उन 24 पीसीओ धारकों और व्यक्तियों को क्लीन चिट दे दी गई, जबकि वह सभी मुकदमे में नामजद थे।
कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि साथ ही यह भी आश्चर्यजनक है कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने भी बिना इन तथ्यों पर गौर किए चार्जशीट को कोर्ट में दाखिल करने के लिए अप्रूव कर दिया। कोर्ट ने कहा ऐसा कृत्य सीबीआई जैसी पवित्र संस्था में कार्यरत अधिकारियों से अपेक्षित नहीं है।
न्यायालय ने अपने आदेश में बताया कि पत्रावली देखने से पता चलता है कि विवेचक ने अपनी विवेचना केवल बांसगांव के एक्सचेंज तक ही सीमित रखीं, जबकि विवेचक का दायित्व था कि करोड़ों रूपये के इस घोटाले में शामिल प्रत्येक एक्सचेंज की जांच करता। न्यायालय ने मामले के एक अन्य सहअभियुक्त तत्कालीन जूनियर टेलीकाम ऑफिसर सियाराम अग्रहरि को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया।
यह था पूरा मामला
अभियोजन पक्ष द्वारा बताया गया कि सीबीआई ने 18 सितंबर 2008 को सूचना के आधार पर मुकदमा दर्ज किया था। गोरखपुर के बांसगांव एक्सचेंज से भारी मात्रा में आइएसडी कॉल की जा रही थी, जो की बांसगांव टेलीफोन एक्सचेंज के माध्यम से न होकर सीधे ट्रक आटो मेटिक एक्सचेंज (टैक्स) कार्यालय के माध्यम से होती थी, जिससे उपरोक्त टेलीफोन कनेक्शन के कॉल का न तो बिल, मीटर पर जनरेट होता था और ना ही किए गए आइएसडी कॉल के बिलों का भुगतान होता था।
तत्कालीन एसडीओ हरि राम शुक्ला, एसडीई गुलाब चंद चौरसिया व जूनियर टेलीकाम आफिसर सियाराम अग्रहरि सहित छह पीसीओ धारकों तथा 18 व्यक्तिगत टेलीफोन उपभोक्ताओ के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया।
जांच में पता चला कि सभी आरोपितों ने मिलकर सितंबर 2003 से सितंबर 2004 के बीच षड्यंत्र किया और अनाधिकृत तरीके से इन 24 लोकल टेलीफोन नंबरों द्वारा आइएसडी कॉल की गई, जिसके चलते बीएसएनएल को कुल 52,94,707 रूपयों का नुकसान हुआ है।
सीबीआई ने इस मामले में हरि राम, गुलाब चंद चौरसिया व सिया राम अग्रहरि के खिलाफ एक मई 2010 को चार्जशीट दायर की।
यह भी पढ़ें- BSNL in UP: बीएसएनएल उत्तर प्रदेश के उन 142 गांवों तक पहुंचा जहां किसी में दूरसंचार कंपनी का नेटवर्क नहीं |