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Tere Ishk Mein Review: दिलजले आशिकों के एंबेसडर निकले धनुष, क्या रांझणा को टक्कर दे पाई मूवी, पढ़ें रिव्यू:

cy520520 2025-11-28 22:42:57 views 81

  

तेरे इश्क में रिव्यू/ फोटो- Instagram  



प्रियंका सिंह, मुंबई। इन दिनों सैयारा से लेकर एक दीवाने की दीवानियत तक जुनूनी इश्क की कहानी दर्शकों को लुभा रही है। अब उसमें तेरे इश्क में भी जुड़ गई है। साल 2013 में रिलीज हुई रांझणा की ही दुनिया की यह कहानी है, जो फिर आशिक को इश्क में फनाह कर देती है। इस बार इश्क में अकेला लड़का नहीं पड़ेगा, लड़की की भी बारी आ गई है। इश्क में पड़ने से पहले शंकर वार्निंग दे देता है कि मैं इश्क में पड़ा, तो दिल्ली जला दूंगा, वहां से कहानी का रुख समझ आ जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
क्या है तेरे इश्क में की कहानी?

कहानी शुरू होती है लद्दाख से, एयरफोर्स पायलट शंकर गुरुक्कल (धनुष) अपने सीनियर की बात नहीं मानता है। वह मानसिक तनाव से गुजर रहा है। उसे कांउसलिंग के लिए इंडियन डेफेंस की सीनियर काउंसलर मुक्ति (कृति सेनन) के पास भेजा जाता है। दोनों का आमना-सामना होता है और कहानी सात साल पीछे दिल्ली आती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में मुक्ति पीएचडी कर रही है। उसे लगता है कि हिंसक व्यक्ति को शांत इंसान बनाया जा सकता है। अपनी जमा की गई थिसेस को प्रोफेसर के सामने सही साबित करने के लिए वह हिंसक प्रवृति के शंकर (धनुष) को चुनती है। वकालत की पढ़ाई कर रहा शंकर दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष भी बनना चाहता है। मुक्ति की बात मानकर शंकर उसकी बताई बातें मानने लगता है। इस बीच उसे मुक्ति से प्यार हो जाता है। लेकिन मुक्ति को उससे प्यार नहीं होता।

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किन सींस में मात खा गए मेकर्स?

रांझणा की कहानी लिखने वाले हिंमाशु शर्मा को इस बार नीरज यादव का भी साथ मिला है। दोनों ने रांझणा की दुनिया के करीब रखने के लिए एक तरफा प्यार, सब खत्म हो जाने के बाद प्यार का अहसास, इश्क में फनाह हो जाने का जुनून सब कुछ रखा है। बस कई जगहों पर नहीं है, तो वह है लॉजिक। युद्ध के मैदान में एक अधूरी प्रेम कहानी का मुक्कमल होते-होते रह जाना पेपर पर अच्छा लगता है, लेकिन उसे फिल्माने के लिए तर्क का ध्यान रखता है। खासकर तब जब उसमें भारतीय वायुसेना, जलसेना का जिक्र हो रहा हो।

शंकर का पहले वकालत करना, फिर उसे छोड़कर यूपीएससी की परीक्षा देना फिर एयरफोर्स में तेजस उड़ाने का सफर भी हजम नहीं होता है। दूसरों की काउंसलिंग करने वाली मुक्ति का खुद को न संभाल पाना भी अटपटा है। इन सबके बावजूद इसे सिनेमाई लिबर्टी का नाम देते हुए आनंद एल राय का निर्देशन, फिल्म के कलाकारों का अभिनय और जुनूनी इश्क की कहानी को देखने का मन करेगा। इस बार इश्क में अकेले जलने वालों में लड़का ही नहीं, बल्कि लड़की भी शामिल है।

  

मुक्ति और शंकर का सात साल बाद मिलने वाला पहला सीन, मुक्ति के पिता का शंकर को कहना घर के बाहर लगा बोर्ड फिर पढ़कर आ, पिता (प्रकाश राज) के शव के सामने बैठे शंकर का अपने पिता के गाल पर हाथ फेरकर चेक करना की कहीं वो जिंदा तो नहीं जैसे कई सीन फिल्म में हैं, जिसे दोबारा देखने का मन करेगा। रांझणा से जोड़ने के लिए आनंद एल राय उस फिल्म से मुरारी (मोहम्मद जीशान अयूब) को ले आए हैं।
मुरारी के रोल में खूब जमे मोहम्मद आयूब

छोटे से रोल में मुरारी जैसे ही कहता है कि मर जाओगे पंडित, तालियां बजती हैं। कुछ लोगों के हिस्से में मुहब्बत आती है और कुछ लोगों के वाइलेंस, आई एम द सेकेंड वन, मुहब्बत कर पाने की औकात रखने वाली हम आखिरी नस्ल हैं... ऐसे तमाम दमदार संवादों से फिल्म भरी हुई है। फिल्म का गाना जिगर ठंडा रे... सुनने में अच्छा लगता है। हालांकि ए आर रहमान और इरशाद कामिल की जोड़ी रांझणा वाला संगीत दोहरा नहीं पाई है।

  
धनुष और कृति की जोड़ी हुई सुपरहिट

अभिनय ही बात करें, तो पूरी फिल्म कलाकारों के कंधों पर टिकी हुई है। धनुष का तीर एक्टिंग के मामले में एक बार सही लगता है। जुनूनी और दिलजले आशिक, पिता के आखरी सपने को पूरा करने वाले बेटे हर सीन में वह दमदार लगे हैं। जब वह डायलाग्स बोलते हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कृति सेनन न केवल सुंदर लगी हैं, बल्कि अभिनय में एक कदम आगे बढ़ गई हैं। देर से प्यार का अहसास होने की सजा भुगतने वाली लड़की के दृश्यों में वह प्रभावित करती हैं। बेटे के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले पिता की भूमिका में प्रकाश राज ने जान डाल दी है। सख्त लेकिन बेटी के लिए सही फैसला लेने वाले पिता की भूमिका में टोटा राय चौधरी याद रह जाते हैं। मोहम्मद जीशान अयूब मुरारी के रोल से रांझणा की दुनिया में ले जाते हैं। विनीत कुमार सिंह छोटे, लेकिन महत्वपूर्ण रोल में यादगार परफार्मेंस देते हैं।

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