संवाद सहयोगी, बिलासपुर। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से आकर क्षेत्र में बसे शरणार्थी परिवारों को नागरिकता मिलने का क्रम जारी है। बुधवार को पांच शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने पर खुशी की लहर दौड़ गई। जिसके लिए वह पिछले 61 सालों से इंतजार कर रहे थे। अब तक 60 शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल चुकी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
क्षेत्र में बिना नागरिकता के निवास कर रहे बंगाली समाज के लगभग 2500 परिवारों के 14500 हजार शरणार्थी लोग रह रहे है। यह लोग लंबे समय से नागरिकता को लेकर क़ानूनी लड़ाई लड़ते चले आ रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर देश के राजनेताओं तक नागरिकता का मुद्दा खूब उठाया गया।
निखिल भारत बंगाली समन्वय समिति के विधिक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपांकर बैरागी ने बताया कि क्षेत्र के बंगाली बाहुल्य गांव अशोकनगर उर्फ मानपुर ओझा उर्फ बंगाली कालोनी, गोकुलनगरी और दिबदिबा आदि गांवों में शरणार्थियों की आबादी लगभग साढ़े 14 हजार हैं।
इनमें कुछ को तो नागरिकता दी गई और उन्हें सरकार ने पुनर्वास के तहत प्रति परिवार पांच एकड़ भूमि पंजीकृत पट्टे के रूप में भी दी। 1964 के बाद से धीरे-धीरे बांग्लादेश से भी कुछ परिवार आकर बसे। इनकी संख्या आज हजारों में पहुंच गई है। विधिक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने बताया कि 1955 का कानून था कि माता-पिता दोनों भारतीय हों तो उन्हें नागरिकता दी जाएगी।
इसके बाद 2003 में नागरिकता कानून संशोधन हुआ, जिसमें माता-पिता में एक व्यक्ति भारत का नागरिक हो उसे भारत की नागरिकता देने का नियम लागू हुआ। बांग्लादेश से आए शरणार्थीयों ने भारतीय नागरिकता के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी। वहीं दूसरी ओर पांच और शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने पर खुशी का माहौल व्याप्त है।
नागरिकता मिलने वालों में धीरेंद्र बल्लव, विश्वजीत बल्लव, शेखर हलदर, समीर हलदर, शर्मिला हलदर शामिल हैं। इससे पहले 28 जुलाई को तपन विश्वास, 8 नवंबर को 12 तथा 21 नवंबर को 42 के अलावा अब पांच शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिली है।
पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित शरणार्थी परिवारों को बनाया था भारत का नागरिक
बिलासपुर : निखिल भारत बंगाली समन्वय समिति के विधिक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा कि विभाजन के उपरांत सरकार द्वारा केंद्रीय सहायता एवं पुनर्वास विभाग गठित कर पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिक बनाया था। तत्कालीन पुनर्वासित परिवारों को आवास, कृषि योग्य भूमि एवं अन्य सुविधाएं सन 1964 तक प्रदान की गई।
ऐसे में पुनर्वासित परिवारों को पुनः नागरिकता लेने की बाध्यता समाप्त होनी चाहिए। चूंकि 99 प्रतिशत परिवारों की वर्तमान में चौथी पीढ़ी निवासरत है। साथ ही बांग्लादेश बनने के पश्चात अर्थात सन 1971 के उपरांत प्रताड़ित होकर अपनी धर्म संस्कृति को बचाते हुए आए लोगों को बांग्लादेश के नागरिक होने का दस्तावेजी अभिलेखों की बाध्यता भी समाप्त होनी चाहिए। क्योंकि अधिकतर लोग अपनी संपत्ति, घर बार छोड़ कर आए हैं। ऐसे में इनके द्वारा अभिलेख उपलब्ध किया जाना संभव नहीं होगा। समिति सरकार से उपरोक्त दोनों बिंदुओं पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की मांग करती है।
कड़े संघर्ष के बाद जाकर अब भारत की नागरिकता मिल पाई है। जिसके लिए वह 61 सालों से इंतजार कर रहे थे। इसके लिए सरकार प्रशंसा के पात्र है। -धीरेन्द्र बल्लव
नागरिकता मिलने के बाद बहुत खुशी हो रही है। जैसे उनका वर्षों का सपना आज पूरा हो गया है। इसी तरह अन्य लोगों को भी जल्द नागरिकता मिलनी चाहिए। -शेखर हलदर |