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सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर की तपस्थली था तीर्थराज प्रयाग, यहां उन्होंने गुरुग्रंथ साहिब के प्रथम अखंड पाठ का आरंभ कराया

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सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर की प्रयागराज गुरु तेगबहादुर की तपस्थली प्रयागराज रही है,।



शरद द्विवेदी, प्रयागराज। आदि न अंत, कथा अनंत। सृष्टि की रचना का केंद्र। सनातन संस्कृति का संवाहक। जप-तप की अक्षय धरा। ऋषियों-महर्षियों की तपोभूमि। पंचतत्वों को पल्लवित करने वाला है तीर्थराज प्रयाग। मां गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पावन संगम तट पर बसे प्रयागराज के कण-कण में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहमान है। महर्षि भरद्वाज द्वारा बसायी गई नगरी प्रयागराज से त्रेता युग में प्रभु श्रीराम को वनवास का मार्गदर्शन मिला। यह देवों के साथ महर्षि दुर्वासा, अत्रि सहित असंख्य ऋषि-मुनियों की तपस्थली है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
गुरु तेगबहादुर ने सबसे अधिक समय प्रयागराज में प्रवास किया

प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर केवल गंगा, यमुना तथा अदृश्य सरस्वती का मिलन ही नहीं, बल्कि अनेकानेक सम्प्रदायों, संस्कृतियों, ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का अद्भुत संगम विद्यमान है, उसमें सिख प्रमुख हैं। इस पवित्र धरा से सिखों का पवित्र व अटूट नाता है। अलग-अलग कालखंड में सिख गुरुओं में तीर्थराज प्रयाग में प्रवास कर जप-तप किया है। सिखों के प्रथम गुरु श्रीगुरुनानक देव जी हों अथवा गुरु तेगबहादुर व गुरु गोबिंद सिंह। सबने प्रयागराज में प्रवास किया है। इसमें सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर ने सबसे अधिक समय प्रयागराज में प्रवास किया।

  
शहीदी दिवस पर कल होंगे विविध आयोजन

गुरुद्वारा पक्की संगत की ओर से 25 नवंबर को गुरु तेगबहादुर का 350वां शहीदी दिवस मनाया जाएगा। उसके उपलक्ष्य में आज नगर कीर्तन (शोभा यात्रा) निकाली जाएगी। उल्लासित माहौल, भक्तिमय भाव से हजारों नर-नारी व बच्चे यात्रा का हिस्सा बनकर गुरु की महिमा का बखान करेंगे। सोमवार को गुरुद्वारा में कीर्तन दरबार सजेगा। देशभर से श्रद्धालु गुरु तेगबहादुर को नमन करने तीर्थराज प्रयाग आए हैं। श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है। हर कोई गुरु की भक्ति में रमने को आतुर है। यह विशेष स्टोरी गुरु तेगबहादुर के प्रयागराज आगमन और प्रवास पर प्रकाश डालती है।

  
आततायियों के साथ के खिलाफ किया एकजुट

श्रीगुरुतेग बहादुर तथा खालसा पंथ के संस्थापक अध्यात्म, काव्य व शौर्य पराक्रम के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह के जीवनदर्शन से जुड़ने का गौरव प्रयागराज को प्राप्त है। पूर्व विक्रमी संवत 1723 अर्थात 1666 ई. को तीर्थराज प्रयाग में गुरु तेगबहादुर का संगमनगरी में आगमन हुआ। गुरु तेगबहादुर जनता-जनार्दन में आध्यात्मिक संस्कार जागृत कर उन्हें राष्ट्रीय बोध की भावना से जोड़ने की मुहिम पर निकले थे। देश व समाज के हित में एक होकर तत्कालीन आततायी शक्तियों के विरुद्ध संगठित रूप से संघर्षरत होने का आह्वान करने के उद्देश्य से वह परिवार एवं महात्मा श्रद्धालुओं के साथ पंजाब से विचरण करते हुए देशाटन पर निकले थे।

  
गुरु तेगबहादुर का जत्था मकर संक्रांति को प्रयाग पहुंचा  

गुरु तेगबहादुर का जत्था मकर संक्रांति को प्रयाग पहुंचा। श्रीचरण रोपड़, पटियाला, पिहोवा, कैथल, रोहतक, मथुरा, आगरा, कानपुर, कड़ाधाम मानिकपुर होते हुए प्रयाग आए थे। साथ में मां नानकी, पत्‍‌नी माता गुजरी, भाई कृपालचंद्र, सेवक भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाला, भाई गुरुबख्श, बाबा गुरुदित्ता थे। मार्ग में हजारों संत व श्रद्धालु उनके साथ हो लिए। गुरु की यात्रा जिधर से निकलती उधर से लोग जुड़ते जाते। प्रयागराज आने पर गुरु तेगबहादुर ने सबके साथ मकर संक्रांति पर संगम में स्नान किया। स्नान के बाद घाट पर पूजन-अर्चन किया। इसके बाद घाट से दूर टीले नुमा एक स्थान पर रहने लगे। आस-पास के लोगों ने भक्तिभाव से गुरु तेगबहादुर व उनके साथ आए लोगों के रहने का प्रबंध किया। जहां गुरु का प्रवास था वह एक क्षत्रिय की हवेली थी।

  
छह महीने नौ दिन प्रवास कर उपदेश दिया

उन्होंने गुरु से उसमें रुकने की विनती की थी। भक्त के भाव व समर्पण से गुरु तेगबहादुर बहादुर प्रभावित हो गए। फिर उसमें छह महीने नौ दिन प्रवास करके अकाल पुरुष की तथा संगतों को उपदेश दिया। उसी स्थल पर श्रीगुरुद्वारा पक्की संगत बना है। वहीं, मुहल्ला अहियापुर (मालवीयनगर) के नाम से विख्यात है। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल गुरुद्वारा पक्की संगत का संचालन करता है।

  
प्रकाश में आए गुरु गोबिंद सिंह

प्रयाग में श्रीगुरु तेग बहादुर के प्रवासकाल में माता गुजरी के गर्भ में अमित तेजस्वी आत्मा का प्रकाश हुआ। जो बाद में पटना में प्रकाशित होकर मात्र नौ वर्ष की आयु में सिखों के गुरु श्रीगुरु गोबिंद सिंह के रूप में प्रतिष्ठित हुए। यह भी संयोग है कि गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी बाल्यावस्था में पटना से चलकर पंजाब जाते हुए बक्सर, छपरा, आरा, डमरा, वाराणसी, मीरजापुर होते हुए प्रयाग आए और पांच दिनों तक प्रवास किया। गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी वाणी विचित्र नाटक में लिखा है कि जब हमारे पिता गुरु जी पूर्व भारत की यात्रा में अनेक तीर्थ स्थलों में होते हुए प्रयागराज पहुंचे तो पुण्यदान, तप करते हुए कुछ दिन व्यतीत किए। वहां पर ही हमारा माता के गर्भ में प्रकाश हुआ।
प्रथम अखंड पाठ साहिब की हुई शुरुआत

प्रयाग में गुरुतेग बहादुर ने गुरुग्रंथ साहिब का प्रथम अखंड पाठ की शुरुआत कराई। मां नानकी के लिए उन्होंने यह पाठ करवाया था। इसके बाद यह पवित्र परंपरा निरंतर बढ़ती गई। अब हर गुरुद्वारा में खास मौकों पर श्री अखंड पाठ साहिब कराया जाता है। गुरु तेगबहादुर ने एक शब्द का उच्चारण भी किया जिसका श्रीगुरुग्रंथ साहिब के सोरठि राग में उल्लेख है।
प्रकट किया त्रिवेणी का जल : देवेंद्र सिंह

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री के अनुसार गुरु तेगबहादुर की मां नानकी जी वृद्ध थीं। प्रयागराज प्रवास के दौरान उन्होंने त्रिवेणी के पवित्र जल में स्नान करने की इच्छा प्रकट की। मां की भावनाओं का सम्मान करते हुए गुरु तेगबहादुर ने अपनी तपस्या से त्रिवेणी का जल कुआं में प्रकट कर लिया। उस जल से मां नानकी ने स्नान किया। गुरुद्वारा पक्की संगत में आज भी कुआं (खूह साहिब) सबकी आस्था का केंद्र है। भक्तिभाव से ओतप्रोत होकर लोग कुआं का दर्शन करते हैं। उसके पवित्र जल का पान व स्नान करने से शारीरिक व मानसिक कष्ट दूर होते हैं।
मौजूद है शंख व चौकी

गुरुतेग बहादुर जिस चौकी में बैठकर धर्मचर्चा करने के साथ उपदेश देते थे उसका पाया श्रीगुरुद्वारा पक्की संगत में मौजूद है। इसके अलावा उनका शंख, कृपाण एवं एतिहासिक कुआं भी है। जो हर किसी की श्रद्धा का केंद्र है। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल गुरुद्वारा पक्की संगत का संचालन करता है।
दूर होते हैं समस्त कष्ट : ज्ञान सिंह

गुरुद्वारा पक्की संगत के प्रबंधक (मुख्य सेवादार) संत ज्ञान सिंह के अनुसार गुरुद्वारा पक्की संगत में खूह साहिब के जल से स्नान व उसे पीना अत्यंत पुण्यकारी होता है। गुरुद्वारा में लगातार 40 दिनों तक हाजिरी भरने (दर्शन-ध्यान करने) वाले भक्त के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। संतानहीन लोगों की समस्त कामना पूर्ण होती हैं। उन्हें संतान का सुख प्राप्त होता है।

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