2002 में अपनी मां की आग से हत्या करने के पुत्र व उसके पिता की सजा को दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 2002 में अपनी मां की आग से हत्या करने के पुत्र व उसके पिता की सजा को दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है। ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली दोषी दीदार सिंह एवं अन्य की याचिका खारिज करते हुए अदालत ने मां व बेटे के रिश्ते को लेकर भावनात्मक टिप्पणियां की। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति विमल कुमार यादव की पीठ ने इस फैसले की शुरुआत मातृत्व पर मार्मिक पंक्तियों से होती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अदालत ने कहा कि एक मां ही एक इंसान को नौ महीने अपने गर्भ में, तीन साल अपनी बाहों में और हमेशा अपने दिल में रखती है। मां और बच्चों के बीच का रिश्ता इतना मजबूत, पवित्र और ईमानदार होता है कि उसमें किसी भी तरह के स्वार्थ की कोई गुंजाइश नहीं होती, लेकिन वर्तमान मामले में महिला ने मृत्युपूर्व बायान में बार-बार कहा था कि उसके बेटे व पति ने ही उस पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी।
2002 में बेटे और पिता को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था और दोनों ने उक्त निर्णय को चुनौती दी थी। अदालत ने कहा कि मृत मां द्वारा बेटे और उसके पिता पर लगाए गए आरोप गंभीर थे। पीठ ने कहा कि अगर मां के साथ उसके बेटे से जुड़ी कोई अप्रिय घटना घटती है, तो उसके पीछे कोई बहुत गंभीर कारण जरूर होगा। अगर वह घटना मां की मृत्यु या हत्या की हो, और पति के अलावा बेटे पर भी इसमें शामिल होने के आरोप हों, तो कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि कारण कितना गंभीर होगा। यह वाकई गंभीर है जहां बेटे और पति पर हत्या और सुबूत नष्ट करने के आरोप लगाए गए हों।
2000 में महिला की बेटी ने अपनी मां को आग में जलते हुए पाया। बेटी और बेटा उसे अस्पताल ले गए, जहां वह 100 प्रतिशत जली हुई पाई गई। मृतक महिला ने जांच अधिकारी के समक्ष दो बार अपना मृत्यु-पूर्व बयान दर्ज कराया। उसने सीधे तौर पर अपने बेटे और पति को घटना का दोषी बताया। अदालत ने कहा कि मृत्यु-पूर्व बयान विश्वसनीय साक्ष्य है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि उसके बेटे और पति ने उसे आग लगाने का दोषी ठहराया था। अदालत ने कहा कि मृतका के पास अपने वयस्क बेटे या पति का नाम लेकर उन्हें झूठा फंसाने का कोई कारण नहीं था। |