महागठबंधन की तीन बड़ी गलतियां जिसने बिहार में हार की तय (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार चुनाव में RJD और कांग्रेस समेत तमाम सहयोगी पार्टियों कामहागठबंधन न सिर्फ सत्ता से दूर रह गया, बल्कि जमीन भी खो बैठा। RJD को सिर्फ 25 सीटें मिलीं और कांग्रेस 70 में से केवल 6 सीटें जीत सकी। चुनाव विशेषज्ञ और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कुमार संजय सिंह कहते हैं कि महागठबंधन ने तीन बड़ी गलतियां कीं, जिनका सीधा असर नतीजों पर पड़ा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पहली गलती-यादवों को ज्यादा टिकट और ‘यादव राज’ की आशंका
RJD का यादव नेताओं को बहुत बड़ी संख्या में टिकट देना पहली गलती रही। पहले से ही ‘यादव राज’ की वापसी की आशंका थी, ऐसे में यह निर्णय कई वर्गों में डर और असहजता का कारण बना। दलित वोटों की उम्मीद में VIP को साथ लाया गया लेकिन यह रणनीति भी असरदार नहीं रही।
दूसरी गलती- कैंपेन की दिशा में अचानक बदलाव
दूसरी बड़ी भूल थी चुनाव प्रचार की दिशा बदल देना। शुरुआत ‘वोट चोरी’ के मुद्दे से हुई, फिर तीन हफ्ते का गैप आया और बाद में महागठबंधन पूरी तरह लोकल मुद्दों पर आ गया। इन दोनों मुद्दों को जोड़ने की कोई कोशिश नहीं हुई, जिससे मतदाता कन्फ्यूज हुए।
तीसरी गलती- ग्रामीण वोटरों की अनदेखी, शहरी युवाओं पर ज्यादा फोकस
महागठबंधन की तीसरी और सबसे बड़ी गलतीचुनावी वादों में ग्रामीण समाज के लिए कुछ खास न देना। RJD की ताकत ग्रामीण वोट है, लेकिन उनके मेनिफेस्टो में ज्यादातर वादे शहरी शिक्षित युवाओं के लिए थे। बिहार के ग्रामीण समाज की एक बड़ी मांग- फसल पर MSP की वापसीपर RJD ने एक शब्द भी नहीं कहा। इस वजह से RJD अपने पारंपरिक वोट-ब्लॉक से बाहर नहीं निकल सका।
चौथी गलती- मुस्लिम वोटों में नाराजगी और AIMIM की बढ़त
कई सीटों पर AIMIM के उम्मीदवारों को मुस्लिम युवाओं ने ज्यादा समर्थन दिया। वजहउनके मुद्दों को महागठबंधन द्वारा मजबूत तरीके से न उठाया जाना। कुछ छोटी जातियों को नौकरी का वादा दिया गया, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ अलग से नहीं कहा गया। इससे नाराजगी और बढ़ी।
‘वोट चोरी’ मुद्दे को छोड़ देना
प्रोफेसर के अनुसार, राहुल गांधी गुडविलतो बनाते हैं, पर उसे वोट में बदलने में कांग्रेस असफल रहती है क्योंकि संगठन कमजोर है। ‘वोट चोरी’ जैसे गंभीर आरोपों को बीच में छोड़ देने से महागठबंधन की विश्वसनीयता और कमजोर हुई। मुद्दे को जोर से उठाया, लेकिन फिर अचानक चुप्पी, इससे मतदाताओं में गंभीरता खत्म हो गई।
NDA की जीत क्यों हुई?
बिहार में हमेशा की तरह जातिगत वोटिंग पैटर्न साफ दिखा। EBC, OBC, दलित, महादलित- ये सभी पहले की तरह नीतीश कुमार और NDA के साथ रहे। इस बार BJP, JD(U) और चिराग पासवान के वोट एक-दूसरे को साफ ट्रांसफर हुए और यही NDA की बड़ी जीत की वजह बना।
नीतीश कुमार की भूमिका और बिहार की राजनीति में नए संदेश
इस नतीजे से साफ है कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अब भी केंद्रीय चेहरा हैं। उनकी अपील करीब 36-38% मतदाताओं में है, जो किसी भी गठबंधन को जीत दिलाने के लिए काफी है। चिराग पासवान भी अब राज्य में 4-5% ठोस वोट-बेस वाले नेता बनकर उभरे हैं, जो उन्हें NDA के लिए अहम बनाता है।
\“जनता ने जातिवाद के जहर को नकार दिया...\“, बिहार चुनाव में प्रचंड जीत के बाद सूरत में गरजे पीएम मोदी |