फावड़ा चलाना और चूना ढोना...रतन टाटा ने यहां से की थी करियर की शुरुआत।
नई दिल्ली| रतन टाटा भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमारे दिलों में वो हमेशा जिंदा रहेंगे। उनकी पहचान ग्लोबल बिजनेस लीडर और शानदार व्यक्तित्व वाली रही। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपने करियर (Ratan Tata Career) की शुरुआत फावड़ा चलाने और चूना ढोने से की थी? जी हां, ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, साल 1962 में जब उन्होंने टाटा स्टील जॉइन किया, तो उन्हें दफ्तर में आरामदायक कुर्सी नहीं मिली। उनकी पहली जिम्मेदारी थी- जमशेदपुर प्लांट में मजदूरों के साथ खड़े होकर फावड़ा चलाना और चूना ढोना। यानी वही रतन टाटा, जिनके नाम पर आज अरबों डॉलर की डील होती है, करियर की शुरुआत में एक आम मजदूर की तरह काम करते थे।
वो सीख, जिसने दिशा बदल दी
शॉप फ्लोर पर काम करते हुए उन्होंने समझा कि कंपनी की असली ताकत उसके मजदूर और कर्मचारी होते हैं। यही कारण है कि आगे चलकर जब वे चेयरमैन बने, तो हमेशा कर्मचारियों की भलाई को पहली प्राथमिकता दी। कई बार घाटे में भी मजदूरों की तनख्वाह बढ़ाई गई।
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असफलताओं का दौर भी देखा
करियर के शुरुआती साल आसान नहीं थे। NELCO और एम्प्रेस मिल्स जैसी कंपनियों का जिम्मा उन्हें दिया गया, लेकिन दोनों जगह हालात इतने खराब थे कि कंपनी को बचाना मुश्किल हो गया। आलोचना भी हुई। कई लोगों ने कहा कि रतन टाटा में लीडरशिप की क्षमता नहीं है। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
एक बड़ा मौका और पहचान
1981 में JRD टाटा ने उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज की कमान सौंपी और 1991 में पूरे टाटा समूह का चेयरमैन बना दिया। यहीं से उनकी असली यात्रा शुरू हुई। रतन टाटा ने नई सोच के साथ काम किया। गैर-जरूरी कारोबार बेचे और आईटी, ऑटोमोबाइल और रिटेल जैसे भविष्य के क्षेत्रों में निवेश किया।
इसी दौरान उन्होंने भारत की पहली स्वदेशी कार इंडिका बनाई। इसके बाद दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो लाने का सपना देखा। नैनो भले ही बाजार में ज्यादा नहीं चली, लेकिन इसने दिखा दिया कि भारत का इंजीनियर भी बड़े सपने सच कर सकता है।
TATA को बना दिया भरोसे का ब्रांड
रतन टाटा, जिसने करियर की शुरुआत मजदूर की तरह की थी, बाद में टाटा समूह (TATA Group) को 100 बिलियन डॉलर की कंपनी बना गया। आज टाटा ग्रुप की मार्केट कैप 435 बिलियन डॉलर से ज्यादा है। उन्होंने टाटा को सिर्फ एक ब्रांड नहीं, बल्कि भरोसे का नाम बना दिया। रतन टाटा की कहानी बताती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। अगर मेहनत और ईमानदारी हो, तो फावड़ा चलाने वाला भी एक दिन दुनिया का सम्मानित लीडर बन सकता है।
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