आगरा मूवी देखने से पढ़ें हमारा ये रिव्यू
फिल्म रिव्यू : आगरा
प्रमुख कलाकार : मोहित अग्रवाल, राहुल रॉय, प्रियंका बोस, विभा छिब्बर
निर्देशक : कनु बहल
अवधि : 115 मिनट
स्टार : ढाई
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई. आगरा शहर मुहब्बत का प्रतीक माने कहे जाने वाले ताजमहल के साथ वहां स्थित पागलखाने के लिए मशहूर है। निर्देशक कनु बहल का कहना है कि उनकी फिल्मों के पात्र जुनूनी हैं, इसलिए कहानी का नाम आगरा (Agra) रखा। हालांकि बेहतर होता कि वह इस फिल्म का नाम कमरा रखते। साल 2023 में प्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल समेत कई अन्य राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी फिल्म अब सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो चुकी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कहानी 24 साल के लड़के गुरु (मोहित अग्रवाल) की है। वह मानसिक रोगी है। उसने अपनी मनगढ़त गर्लफ्रेंड बना रखी है। अपने खाली समय में एप्स पर सेक्स चैट करता है। वह अपने परिवार के साथ एक जीर्ण-शीर्ण घर में रहता है। गुरु की मां (विभा छिब्बर) उसके बुरे व्यवहार से हमेशा परेशान रहती है। पिता (राहुल राय) ने घर की दूसरी मंजिल पर अपनी दूसरी पत्नी (सोनल झा) को भी रखा हुआ है। छत पर गुरू अपना कमरा बनवाना चाहता है ताकि शादी के बाद वहां रह सके। उसकी मां अपनी डेंटिस्ट बेटी छवि (आंचल गोस्वामी) के लिए क्लीनिक बनवाना चाहती है।
एक मोड़ पर सेक्स के प्रति आसक्त गुरु अपनी बहन को ही निशाना बनाने की कोशिश करता है। डॉक्टर उसे दवा के साथ चेतावनी देते हैं। गुरु साइबर कैफे चलाने वाली विधवा और शारीरिक रूप से अक्षम प्रीति (प्रियंका बोस) से मिलता है। दोनों के संबंध बनते हैं और शादी करना चाहते हैं। उधर गुरु के पिता का एक अन्य महिला के साथ गुपचुप तरीके से प्रेम प्रसंग चल रहा है। वह घर बेचने की तैयारी में हैं। इससे सब सड़क पर आ जाएंगे। आगे गुरू किस प्रकार परिवार को बेघर होने से बचाता है और शादी करता है कहानी इस संबंध में हैं।
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कनु बहल और अतिका चौहान (छपाक) लिखी कहानी की शुरुआत पारिवारिक ड्रामा से करते हैं। वह बेचैनी के भाव से ग्रस्त गुरु के मन के रसातल में जाने की बेचैन कर देने वाली यात्रा पर ले जाते हैं। यही मायने में आगरा उन विषयों का विस्तार है जिन्हें कनु बहल ने अपनी पहली फ़िल्म तितली और अपनी लघु फिल्म बिन्नू का सपना में पहले ही तलाश लिया था। आगरा इन फिल्मों से कहीं आगे जाती है। यह गुरु की मानसिक दुर्दशा के जरिए भारत में पितृसत्ता और स्त्री-द्वेष की व्यापक वास्तविकता को प्रतिबिंबित करती है, जिसे पुरुष यौन विकृति के चश्मे से देखा जाता है।
वहीं कुछ खामियां भी हैं। गुरू को मानसिक रोगी बताया है लेकिन बाद में लगता है कि लेखक और निर्देशक उसकी बीमारी के बारे में भूल गए हैं। गुरु की गिरती मानसिक हालत को कुछ बोल्ड दृश्यों के ज़रिए दिखाया गया हैं। हालांकि सेक्स पर आधारित इस फिल्म में कुछ भी सेक्सी नहीं है। फिल्म में कई अंतरंग दृश्य हैं। सिनेमा में इनकी बढ़ती उपयोगिता चर्चा का विषय है। पात्रों का चित्रण भी अधूरा लगता है। गुरू जो वास्तविकता और कल्पना में अंतर नहीं कर पाता, अचानक से सामान्य कैसे हो जाता है। कभी उसे पीटने वाला पिता अब घर बेचने में उसके साथ चुपचाप खड़ा है। उसकी वजह स्पष्ट नहीं है। गुरु की बहन का अचानक से प्रेमी का आना भी खटकता है। बहरहाल पारुल सोंध की प्रोडक्शन डिज़ाइन और सौरभ मोंगा की सिनेमैटोग्राफी घर की टेढ़ी-मेढ़ी वास्तुकला को उजागर करती है जो गुरु के खंडित मन का विस्तार है।
नवोदित मोहित अग्रवाल का अभिनय विश्वसनीय और शानदार है। प्रियंका बोस चतुर प्रीति के रूप में अपने किरदार को निडरता से निभाती हैं। आशिकी फेम अभिनेता राहुल राय ने इस फिल्म से वापसी की है। उनका पात्र एक ऐसे समाज से प्रभावित है जो पुरुष अधिकारों को सामान्य मानता है। उन्हें पहचानना मुश्किल होगा। अभिनेत्री विभा छिब्बर अपनी भूमिका में प्रभावी लगी है। उनका पात्र अपने पति पर आर्थिक निर्भरता, अपने बेटे की लत और भावनात्मक आघात के बीच फंसी हुई महिला का है। रूहानी शर्मा, सोनल झा, आंचल गोस्वामी, राजेश अग्रवाल और देवास दीक्षित अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं।
आगरा में यौन कुंठा, आर्थिक विभाजन, टूटे हुए सपने, बेवफाई, पिृतसत्तामकता जैसे कई पहलू हैं लेकिन स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ते।
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