क्या \“मोबाइल रेडिएशन\“ से सचमुच रहता है कैंसर का खतरा? (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज मोबाइल हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का सबसे जरूरी हिस्सा बन चुका है। सुबह अलार्म से लेकर रात तक स्क्रीन हमारे हाथों में रहती है। ऐसे में, एक सवाल बार-बार उठता है- क्या मोबाइल फोन सच में कैंसर का कारण बन सकता है? यह चिंता आम है, लेकिन वैज्ञानिक नजर से इसकी सच्चाई थोड़ी अलग है। आइए, डॉक्टर तरंग कृष्णा से जानते हैं इसके बारे में। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें View this post on Instagram
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कितनी खतरनाक है मोबाइल की रेडिएशन?
मोबाइल फोन रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सिग्नल छोड़ते हैं। यह वही प्रकार की गैर-आयनीकृत (non-ionizing) रेडिएशन होती है जो हमारे आस-पास मौजूद वाई-फाई या एफएम रेडियो में होती है। इस तरह की रेडिएशन में डीएनए को नुकसान पहुंचाने की क्षमता नहीं होती, यानी यह उन श्रेणियों में नहीं आती जो कैंसर के जोखिम से जुड़ी मानी जाती हैं।
इसके विपरीत, X-ray, CT Scan या UV Rays जैसी आयनीकृत (ionizing) रेडिएशन DNA में बदलाव ला सकती हैं और इनके बारे में वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं।
अब तक हुई रिसर्च में ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला कि मोबाइल फोन का सीधे-सीधे कैंसर से संबंध है। अध्ययन जरूर चल रहे हैं, लेकिन निष्कर्ष अभी तक यही है कि मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन कैंसर पैदा नहीं करती।
फिर नुकसान किस चीज का है?
हालांकि कैंसर से सीधा संबंध नहीं पाया गया है, लेकिन मोबाइल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कई अन्य समस्याएं जरूर बढ़ाता है-
- लगातार स्क्रीन देखने से सिरदर्द
- नींद में बाधा, क्योंकि स्क्रीन की नीली रोशनी नींद के हार्मोन को प्रभावित करती है
- ध्यान भंग होना, तनाव और मानसिक थकान
- फिजिकल एक्टिविटी में कमी
भले ही, मोबाइल फोन से कैंसर का खतरा साबित नहीं हुआ हो, लेकिन लंबे समय तक बिना नियंत्रण के इस्तेमाल से शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
क्या करें?
- मोबाइल के इस्तेमाल को संतुलित रखने के लिए कुछ साधारण उपाय बेहद प्रभावी हो सकते हैं:
- कॉल पर बातचीत करते समय ईयरफोन का इस्तेमाल करें ताकि फोन सीधे शरीर से दूर रहे।
- सोते समय मोबाइल को बिस्तर से दूर रखें। बेहतर होगा, इसे कमरे के बाहर ही चार्ज करें।
- स्क्रीन टाइम सीमित करें। यह आपकी मानसिक शांति और फोकस दोनों को बढ़ाता है।
- दिन में कुछ समय नो-फोन टाइम रखें- जैसे भोजन के दौरान, पढ़ते समय या सोने से एक घंटे पहले।
डर नहीं, जागरूकता जरूरी
मोबाइल फोन के कारण कैंसर होने का दावा अभी तक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि फोन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल फिजिकल और मेंटल हेल्थ पर गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए समाधान डर में नहीं, संतुलन और सजगता में है।
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