दुर्लभ जेनेटिक बीमारियों की महंगी जांच से बचाएगा आरएमएल अस्पताल।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। आजकल नवजात बच्चों में ऐसी-ऐसी Genetic बीमारियां सामने आ रही हैं, जिनकी जांच कराने में हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं।
प्राइवेट अस्पतालों में इन बीमारियों का इलाज और जांच इतनी महंगी है कि सामान्य लोगों की महीने भर की तनख्वाह सिर्फ जांच कराने में ही निकल जाए।
एम्स, मौलाना आजाद और लेडी हार्डिंग को छोड़ दें तो अधिकांश सरकारी अस्पताल ऐसे हैं, जिनमें इन बीमारियों का पता लगाने के लिए न मशीनें न ही विशेषज्ञ चिकित्सक।
हालांकि ऐसे बच्चों और उनके माता-पिता के लिए आरएमएल अस्पताल बड़ी उम्मीद बनने जा रहा है। छह से अधिक Genetic बीमारियों की जांच के लिए बायोकेमिस्ट्री विभाग में सेटअप तैयार किया जा रहा है।
मशीनों के लिए प्रस्ताव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को भेजा जा चुका है। वर्ष 2026 की शुरुआत में सुविधा आरंभ होने की संभावना है।
बच्चों में होने वाली Genetic बीमारियों में से एक है, कंजेनिटल एडर्नल हाइपरप्लासिया। निजी अस्पताल या लैब में इसकी जांच कराने के लिए 20 से 50 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं।
वहीं, कई अन्य डिसऑर्डर की जांच कराने में भी एक से पांच हजार रुपये तक लगते हैं। हालांकि आरएमएल अस्पताल इन बीमारियों की जांच निशुल्क करेगा। जांच ही नहीं उपचार के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक भी उपलब्ध होंगे।
बायोकेमिस्ट्री विभाग की प्रोफेसर डाॅ. पारुल गोयल ने बताया कि मशीनों की खरीद के लिए प्रस्ताव भेजा जा चुका है। मशीनें आने के बाद स्टाफ की ट्रेनिंग होगी, जो संबंधित कंपनियों की टीमें देंगी।
कुल मिलाकर सुविधा शुरू होने में छह माह का समय लग सकता है। इसके बाद दुर्लभ Genetic बीमारियों की जांच संभव हो सकेगी।
वर्तमान में कई बच्चे जन्म से ही इन बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इनकी स्क्रीनिंग न होने के चलते बहुत सारे बच्चों को समय पर उपचार नहीं मिल पाता। आरएमएल अस्पताल में जांच सुविधा होने से बहुत सारे मरीजों को लाभ मिलेगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इन जेनेटिक बीमारियों की हो सकेगी जांच
कंजेनिटल एडर्नल हाइपरप्लासिया
यह Genetic समस्याओं का एक समूह है। ये तब पैदा होती हैं, जब किडनी के ऊपर स्थित एड्रिनल ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में कई प्रकार के हार्मोंस का उत्पादन नहीं कर पाती है।new-delhi-city-general,New Delhi City news,Delhi landfill waste management,MCD inert waste disposal,Ghazipur landfill site,Bhalswa landfill site,Okhla landfill site,Waste to energy Delhi,Delhi waste management rules,Landfill remediation Delhi,Inert material utilization,Delhi news
मरीजों में इसके लक्षण भी अलग-अलग हो सकते हैं, पर ज्यादातर में नमक और पानी का असंतुलन, समय से पहले प्यूबर्टी आना और कई मामलों में एडर्नल क्राइसिस होता है।
जिनका इलाज हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी से किया जाता है। इसकी अलग-अलग जांच में आठ से 50 हजार रुपये लग जाते हैं।
कंजेनिटल हाइपोथायरायडिज्म
यह ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चा एक कम सक्रिय थाॅयराइड ग्रंथि के साथ पैदा होता है। पर्याप्त थाॅयराइड बन नहीं पाता। स्थिति को जल्दी ठीक नहीं किया जाता तो यह बच्चे के धीमे विकास के साथ ही कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर देती हैं।
यह बौद्धिक दिव्यांग्ता का सबसे काॅमन कारण भी है। इसकी जांच के लिए प्राइवेट में करीब 500 से 1000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं।
गैलेक्टोसीमिया
यह बहुत ही दुर्लभ जेनेटिक मेटाबॉलिक डिसाऑर्डर है जो शरीर को दूध या दूध के पदार्थों से मिलने वाले शुगर गैलेक्टोज को प्रोसेस करने से रोक देता है।
इसकी वजह से नवजातों को दूध पीने में दिक्कत, लिवर डैमेज होना, पीलिया, उल्टी आदि समस्या होती है। इस बीमारी के अलग-अलग स्तर की जांच का प्राइवेट में शुल्क 700 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये निर्धारित है।
बायोटिनिडेस की कमी
इस स्थिति में शरीर बायोटिन (विटामिन बी-7) को Recycle नहीं कर पाता। इसकी वजह से स्किन पर चकत्ते, बालों का गिरना और कई न्यूरोलाजिकल समस्याएं हो जाती हैं।
इस बीमारी का पता नवजात की स्क्रीनिंग या एंजाइम एनालिसिस से ही चलता है। इसके उपचार के लिए जीवनभर बायोटिन सप्लीमेंट लेना होता है। इसकी जांच में 1900 से 3800 रुपये तक खर्च हो जाते हैं।
ग्लूकोज-6 फास्फेट डीहाइड्रोजेनेस डिफिसिएंसी
इस स्थिति में शरीर लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान से बचाने वाले जी-6पीडी एंजाइम का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं हो पाता है। इसके चलते लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से टूटने लगती हैं।
इस स्थिति को हीमोलाइटिक एनीमिया कहते हैं। इसकी जांच कराने में 500 से 1500 रुपये तक का खर्च आता है।
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