दादा-दादी, ताऊ-ताई व चाचा-चाची ने दी परीक्षा। फोटो जागरण
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद। गांव ढाणी मिया खां की 97 वर्षीय जेतना रविवार को परीक्षा केंद्र पर पहुंचीं तो हर कोई हैरान रह गया। झुर्रियों से भरा चेहरा, कांपते कदम और सिर पर ओढ़नी ओढ़े जेतना के हौंसले ने पूरे जिले को संदेश दिया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जेतना ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था। जीवन खेती-बाड़ी और परिवार की जिम्मेदारियों में निकल गया। लेकिन जब शिक्षा विभाग ने उल्लास कार्यक्रम के तहत निरक्षरों को पढ़ाने और उन्हें प्रमाण पत्र देने की पहल की, तो उन्होंने भी हिस्सा लिया। रविवार को आयोजित परीक्षा में उन्होंने बाकायदा उत्तर पुस्तिका पर हस्ताक्षर किए और अपनी पहचान दर्ज कराई।
यह सिर्फ जेतना की कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की दास्तां है, जिन्होंने उम्र के आखिरी पड़ाव में भी शिक्षा को अपनाने का संकल्प लिया। खाराखेड़ी में 89 साल का माया देवी भी लाठी के सहारे परीक्षा देने के लिए पहुंची। दादा-दादी, ताऊ-ताई और चाचा-चाची की बड़ी संख्या परीक्षा केंद्रों पर पहुंची।
हालांकि, फसली सीजन के कारण अपेक्षित भीड़ नहीं जुटी और केवल 50 प्रतिशत ही निरक्षर परीक्षा में शामिल हो पाए। फतेहाबाद में 225 परीक्षा केंद्र बनाए गए थे। करीब 10 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन परीक्षा में लगभग आधे लोग ही बैठे। इसके बावजूद शिक्षा विभाग इसे बड़ी सफलता मान रहा है, क्योंकि पहली बार इस स्तर पर निरक्षरों को साक्षरता अभियान से जोड़ा गया है।
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में दिखा उत्साह
अक्सर हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से आगे, परीक्षा के दौरान लड़कियों का परीक्षा अच्छा रहता है। अब उल्लास की आयोजित परीक्षा में भी देखने को मिला। शिक्षा विभाग ने जिले में 225 परीक्षा केंद्र बनाए गए थे जो गांव के सरकारी स्कूल थे। इसके लिए 800 कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई थी ताकि परेशानी न आए।
ऐसे में महिलाएं सुबह काम करने के बाद परीक्षा देने के लिए पहुंची। सुबह 9 से पांच बजे तक का समय रखा गया ताकि परेशानी न आए। महिलाएं घुंघट में आई लेकिन जब परीक्षा केंद्र पर पहुंची तो उनका हौसला भी देखने लायक था।
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पहले चरण में पांच हजार लोग हो चुके हैं पास
पिछले साल भी सितंबर महीेन में परीक्षा आयोजित की थी। जिसमें 12 हजार निरक्षरों ने परीक्षा दी थी। जिसमें से छह हजार पास हो गए थे। शिक्षा विभाग की तरफ से ओपन का प्रमाण पत्र भी दिया गया। दरअसल इसका मकसद ये है कि कोई भी अनपढ़ ना रहे। शब्दों का ज्ञान करवाना प्रमुख है।
वहीं जो पहले हस्ताक्षर नहीं करवाते थे वो करवाते थे। इस बार की बात ये रही कि इन निरक्षरों को किसी प्रकार की पुस्तक नहीं दी गई। इस कारण इस अभियान पर असर भी देखने को मिला है। अगर पुस्तक होती तो ये कुछ ने कुछ सीख पाते।
30 हजार का आया था डाटा
उल्लास कार्यक्रम शिक्षा विभाग द्वारा ही शुरू किया गया है। लेकिन इसका कोर्डिनेटर अलग बनाया गया है ताकि यह अभियान सही ढंग से चल सके। पिछले छह महीनों से अभियान चल रहा है। शिक्षा विभाग द्वारा कुछ साल पहले सर्वे किया गया था। सर्वे के दौरान जिले में करीब 30 हजार लोग ऐसे थे जो अनपढ़ सामने आए थे। अनपढ़ लाेग थे वहां पर टीम पहुंच पाई। जिले में अब तक 10 हजार अनपढ़ लोग मिले है जिसकी पढ़ाई शुरू की गई थी।
सभी जगह परीक्षा का आयोजन किया गया। बुजुर्गों व महिलाओं में उत्साह भी देखने को मिला। जिन लोगों ने कभी पैन तक नहीं पकड़ा था वो आज परीक्षा दे रहे थे। फसली सीजन का असर भी देखने को मिला।
- पवन सागर, नोडल अधिकारी उल्लास कार्यक्रम फतेहाबाद।
इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य अनपढ़ता दूर करना है। कम से कम हस्ताक्षर करना और शब्दों की समझ अवश्य हो जाएगी। विभाग का यह अभियान जारी रहेगा।
- संगीता बिश्नोई, जिला शिक्षा अधिकारी।
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