पानी का छिड़काव नहीं है धूल प्रदूषण का समाधान नहीं
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली में वायु प्रदूषण की दूसरी सबसे बड़ी समस्या सड़कों पर उड़ती धूल का कोई प्रभावी समाधान नहीं होना है। नाले नालियों का कूड़ा-मिट्टी आदि सड़कों के किनारों पर अक्सर देखने को मिलती है, जिसे समय पर नहीं उठाया जाता। सड़कों पर अक्सर खुदाई चलती रहती है। कचरा तथा खुले में आग लगाना भी अहम है। कहीं ना कहीं स्थानीय निकाय एवं अन्य निगरानी एजेंसियां इसे रोकने में असफल हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक सर्दियों के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 में धूल प्रदूषण की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत और गर्मियों में 30 प्रतिशत तक रहती है। धूल प्रदूषण के मुख्य स्रोत वाहनों के चलने पर सड़कों से उठने वाली धूल, कच्चे फुटपाथ और सड़कों के किनारे पर उड़ने वाली धूल तथा निर्माण साइट से उठने वाली धूल है।
निर्माण स्थलों पर धूल हवा में सूक्ष्म कणों, पीएम 10 और पीएम 2.5 को बढ़ाकर प्रदूषण फैलाती है, जो विध्वंस, मिट्टी हटाने, भारी मशीनों और सामग्री के परिवहन से पैदा होती है। ये कण हवा में लंबे समय तक बने रहते हैं और स्थानीय क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता को खराब करते हैं। मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसमें सिलिका व अन्य जहरीले फाइबर भी हो सकते हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पूर्व अपर निदेशक डॉ दीपांकर साहा कहते हैं कि औद्योगिक व निर्माण क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र को प्रभावी रूप से क्रियान्वयन लागू करने से धूल को कम करने में मदद मिल सकती है।
हर हाल में कचरे के सही प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाना चाहिए, जिसमें स्थानीय निकायों कारपोरेशन तथा अन्य सभी स्तरों पर भागीदारों की सार्थक जिम्मेदारी की बहुत अधिक आवश्यकता है। औद्योगिक एवं निर्माण क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र को प्रभावी रूप से क्रियान्वयन करने से धूल को कम करने में मदद मिल सकती है।
एन्वायरोकैटेलिस्ट के संस्थापक एवं मुख्य विश्लेषक सुनील दहिया दिल्ली में वैसे हो तो 40 से अधिक वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन है, किंतु उनकी परफार्मेंस एवं डाटा की गुणवत्ता में और सुधार की आवश्यकता है, इतने अधिक निगरानी स्टेशन के बावजूद टाक्सिक एवं कार्सिनोजेनिक वायु प्रदूषण पैरामीटर जैसे वालेटाइल आर्गेनिक कंपाउड (शीघ्र वाष्प रूप कार्बनिक रसायन), पाली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं टाक्सिक धातु जैसे सीसा, आर्सेनिक, निकिल आदि काे मापने का कोई नेटवर्क स्थापित नहीं किया गया, जिससे कि वायु में धूल कणों की सघनता का सही अनुमान लगाया जा सके। इस पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए।
धूल प्रदूषण के मुख्य कारण
विध्वंस और मिट्टी हटाना: इमारतों के विध्वंस और बड़े पैमाने पर मिट्टी को हटाने से बड़ी मात्रा में धूल हवा में फैल जाती है।
भारी मशीनरी का उपयोग: बुलडोज़र, डंपर और उत्खनन मशीनें जैसी भारी मशीनें चलती हैं और मिट्टी या कंक्रीट पर काम करती हैं, जिससे धूल के कण हवा में उठते हैं।
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सामग्री का परिवहन: रेत, बजरी और सीमेंट जैसी निर्माण सामग्री को साइट पर लाने और ले जाने के दौरान धूल उड़ती है।
निर्माण सामग्री : सीमेंट, कंक्रीट व सिलिका से निकलने वाले कण हवा में शामिल हो जाते हैं।
वाहन और डीज़ल इंजन : निर्माण स्थलों पर चलने वाले वाहनों के डीज़ल इंजन ज़हरीली गैसों के साथ-साथ कण भी छोड़ते हैं।
विगत वर्षों में उठाए गए कदम और क्यों नहीं हुए कारगर
दिल्ली में धूल प्रदूषण रोकने के लिए मुख्यतया सर्दियों में मैकेनिकल रोड स्वीपिंग (एमआरएस) मशीनें, वाटर स्प्रिंकलर और मोबाइल एंटी-स्माग गन की तैनाती की जाती है। लेकिन आबादी के अनुपात में इनकी अपर्याप्त संख्या, निगरानी व सख्ती के अभाव में कोई सकारात्मक परिणाम सामने आते नहीं हैं। इस बार ऊंची बिल्डिंगों पर भी एंटी स्माग गन तैनात करने के निर्देश जारी किए गए हैं। हालांकि इसके परिणाम समय आने पर ही सामने आ पाएंगे।
इस साल धूल प्रदूषण की रोकथाम के लिए नियमों में किए गए बदलाव
दिल्ली में निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए इस साल सेंसर और विंड बैरियर या ब्रेकर की मदद भी ली जाएगी। एंटी स्माग गन और वाटर स्प्रिंकलर तो रहेंगे ही। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए पूर्व निर्धारित 27 मानकों में बदलाव किया है। मिलते-जुलते, अव्यवहारिक और निर्माण परियोजनाओं के समय पर पूरा होने में बाधा बनने वाले मानकों को हटा दिया गया है। अब केवल 12 मानकों का पालन करना होगा।
इन मानकों का करना होगा पालन
-निर्माण स्थल पर लो कास्ट पीएम 2.5 और पीएम 10 सेंसर लगाकर उन्हें डीपीसीसी पोर्टल पर क्लाउड स्टोरेज प्लेटफार्म पर लाइव डेशबोर्ड के साथ जोड़ना होगा।
-रिमोट कनेक्टिविटी के साथ निर्माण स्थल पर वीडियो कैमरा लगाकर पोर्टल से जोड़ना होगा।
-स्वयं की ओर से धूल नियंत्रण के लिए किए गए उपायों की जानकारी देनी होगी।
-अधिकतम 10 मीटर ऊंचाई वाले विंड बैरियर या ब्रेकर लगाने होंगे।
-निर्माण स्थल के आकार के अनुपात में एंटी स्माग गन तैनात करनी होंगी। यह भी बताना होगा।
-निर्माण स्थल को साइडों से ग्रीन नेट से ढका गया है या नहीं।
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