जेएनयू छात्र संघ चुनाव 2025 के नतीजों में वाम गठबंधन ने एक बार फिर अपना दबदबा कायम रखा।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ चुनाव 2025 के नतीजों में वाम गठबंधन ने एक बार फिर अपना दबदबा कायम रखते हुए चारों केंद्रीय पदों पर जीत दर्ज की है। जेएनयू की छात्र राजनीति में वाम परंपरा की वापसी और भी मजबूत हो गई है जबकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को बड़ा झटका लगा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस बार वामपंथी संगठनों आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) के संयुक्त मोर्चे वाम गठबंधन ने चुनावी मैदान में क्लीन स्वीप करते हुए चारों शीर्ष पद अपने नाम किए।
चारों पदों पर वाम का कब्जा
अध्यक्ष पद पर अदिति मिश्रा (वाम गठबंधन) ने विकास पटेल (एबीवीपी) को 449 वोटों के अंतर से हराया। उपाध्यक्ष पद पर के. गोपिका बाबू ने तान्या कुमारी (एबीवीपी) को भारी मतों से पराजित किया। इसी तरह, महासचिव पद पर सुनील यादव ने राजेश्वर कांत दुबे (एबीवीपी) को हराते हुए जीत दर्ज की, जबकि संयुक्त सचिव पद पर दानिश अली ने अनुज दमारा (एबीवीपी) को शिकस्त दी।
इस बार चुनाव में लगभग 9,043 छात्र मतदाता के रूप में पंजीकृत थे, जिनमें से करीब 67 प्रतिशत छात्रों ने मतदान किया। हालांकि यह आंकड़ा पिछले चुनाव के मुकाबले (70 प्रतिशत पिछले वर्ष) तीन प्रतिशत कम रहा, लेकिन मतदान के दिन कैंपस में उत्साह और राजनीतिक जोश चरम पर नजर आया। छात्र अपने-अपने छात्रावासों और स्कूलों के बाहर नारों, ढोल और गीतों के बीच वोट डालने पहुंचे।
एबीवीपी का 27.48 वोट प्रतिशत बढ़ा
जेएनयू छात्र संघ चुनाव में भले ही वाम गठबंधन ने चारों पदों पर जीत दर्ज की हो, लेकिन एबीवीपी का वोट प्रतिशत इस बार बढ़ा है। पिछले वर्ष एबीवीपी को केंद्रीय पैनल के लिए 5470 वोट मिले थे, जबकि इस बार उसका मत प्रतिशत 27.48 प्रतिशत बढ़कर कुल 6973 वोट तक पहुंच गया। यह परिणाम बताता है कि एबीवीपी की छात्र राजनीति में पकड़ मजबूत हो रही है।
इस परिणाम को एबीवीपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। पिछले वर्ष एबीवीपी ने संयुक्त सचिव पद पर वैभव मीणा की जीत के साथ 10 साल बाद जेएनयू छात्र संघ के केंद्रीय पैनल में वापसी की थी। उससे पहले 2015 में सौरभ शर्मा की जीत ने संगठन के लिए 14 साल का सूखा खत्म किया था। जबकि अध्यक्ष पद पर एबीवीपी को आखिरी सफलता 2000–01 में संदीप महापात्रा की जीत के रूप में मिली थी।
कैंपस में फिर गूंजे वाम नारे
इस साल के नतीजों ने एक बार फिर यह साफ कर दिया कि जेएनयू की छात्र राजनीति पर वाम विचारधारा का गहरा प्रभाव अब भी कायम है। बहस, असहमति और लोकतंत्र के प्रतीक माने जाने वाले इस कैंपस में वाम गठबंधन ने न सिर्फ अपनी परंपरागत बढ़त बरकरार रखी, बल्कि यह भी संदेश दिया कि विचारों की राजनीति अब भी जेएनयू की पहचान है। |