सोनीपत में यमुना नदी में प्रदूषण की समस्या गंभीर बनी हुई है। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, सोनीपत/राई। यमुना को प्रदूषण से बचाने के प्रशासनिक दावे कागजों तक ही सीमित नजर आ रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला दूषित और रसायन युक्त पानी ड्रेन नंबर 8 में लगातार गिर रहा है, जो यमुना में मिल जाता है। बारिश का पानी कम होते ही यमुना की गंदगी साफ दिखाई देने लगती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सिंचाई विभाग ने ड्रेन नंबर 6 और 8 के जंक्शन पर दीवार बनाकर प्रदूषित पानी को रोकने का दावा किया था, लेकिन यह दीवार इतनी छोटी है कि बहाव को नियंत्रित करने में पूरी तरह से नाकाम है। नतीजतन, ड्रेन नंबर 6 का जहरीला पानी ड्रेन नंबर 8 के जरिए सीधे यमुना में जा रहा है।
यमुना को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सरकार सख्त कदम उठा रही है। यमुना में बिना उपचारित पानी जाने से रोकने के निर्देश जारी किए गए थे। इसके बावजूद इन नियमों की धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं।
ड्रेन नंबर 6 से निकलने वाले प्रदूषित पानी को ड्रेन नंबर 8 में जाने से रोकने के लिए, सिंचाई विभाग ड्रेन नंबर 8 के समानांतर लगभग सात किलोमीटर लंबा एक सीमेंटेड नाला बना रहा है।
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दावा किया जा रहा है कि इससे दूषित पानी का बहाव डायवर्ट हो जाएगा, लेकिन नाले को ढकने का कोई प्रावधान नहीं है। नतीजतन, अगर ड्रेन नंबर 8 का जलस्तर बढ़ता है, तो दूषित और साफ पानी फिर से मिल जाएगा।
आधा-अधूरा काम
अकबरपुर-बरोटा क्षेत्र में, जहाँ ड्रेन नंबर 6 का रासायनिक पानी ड्रेन नंबर 8 में जाता है, वहाँ से यमुना तक एक नाला बनाने का प्रस्ताव है। फिलहाल, सात किलोमीटर लंबे इस नाले का आधा ही काम पूरा हुआ है। अधिकारी बारिश को इस रुकावट का कारण बता रहे हैं।
इस बीच, प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अधिकारियों का दावा है कि वे नियमों का उल्लंघन करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ नियमित रूप से कार्रवाई करते हैं। पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूल की जाती है और नोटिस जारी किए जाते हैं। हालाँकि, वास्तविकता यह है कि यमुना में प्रदूषित पानी का प्रवाह बेरोकटोक जारी है।
बरसात के मौसम के कारण, ड्रेन संख्या 6 के समानांतर लगभग आठ किलोमीटर लंबे कंक्रीट के नाले का निर्माण कार्य प्रभावित हुआ है। इसका लगभग आधा काम पूरा हो चुका है। इस कार्य के पूरा होने पर समस्या का स्थायी समाधान हो जाएगा। प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है और परिस्थितियों के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति भी वसूली जाती है।
-निर्मल कश्यप, आरओ, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
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