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प्लास्टिक मुक्त अभियान की मिसाल बनी श्रद्धा की ‘बर्तन बैंक’ मुहिम

Chikheang 5 day(s) ago views 832

  

श्रद्धा की \“बर्तन बैंक\“ मुहिम बनी मिसाल



चंद्रकांत श्रीवास्तव, भिलाई। प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती के बीच दुर्ग जिला पंचायत सदस्य श्रद्धा पुरेंद्र साहू की एक छोटी सी पहल आज जन-आंदोलन बन चुकी है। 2016 में अपने गांव में 100 स्टील थाली-गिलास दान कर निशुल्क \“बर्तन बैंक\“ की शुरुआत हुई थी। इसका संकल्प सिंगल यूज प्लास्टिक को खत्म करना है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आज यह बैंक छत्तीसगढ़ के 23 जिलों तक फैल चुका है, जिसमें 1,000 से अधिक समितियों के पास 40 हजार से अधिक बर्तन हैं। इस पहल का असर यह है कि कई गांवों में डिस्पोजेबल बर्तनों की बिक्री बंद हो चुकी है और दुर्ग प्रशासन भी इस सफल माडल को विस्तार देने की तैयारी में है।
श्रद्धा की \“बर्तन बैंक\“ मुहिम बनी मिसाल

मूल रूप से बालोद जिले की रहने वाली श्रद्धा ने अपने गांव में सिंगल यूज प्लास्टिक और डिस्पोजेबल बर्तनों के उपयोग को खत्म करने का संकल्प लिया। विवाह के बाद उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल करते हुए नौ वर्ष पहले इस मुहिम की शुरुआत की थी। आज यह बर्तन बैंक गांव के हर सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक आयोजन में प्लास्टिक की जगह स्टील बर्तनों के उपयोग को बढ़ावा देता है।

वे कहती है कि बचपन में जब पेड़ों की टहनियां कटती देखती थी, तो मन रो पड़ता था। आज मैंने बर्तन बैंक की टहनियां खोलकर वही हरियाली वापस लाने की कोशिश की है। अब वे इसे सहकारिता के माध्यम से संचालित करने की तैयारी में हैं। उन्होंने मनोविज्ञान एवं समाजकार्य में स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की है। अधिवक्ता पिता की प्रेरणा से सामाजिक दायित्वों को लेकर सक्रिय रहीं। इसी साल दुर्ग जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जीती भी। वर्तमान में वह जिला पंचायत में उद्योग व सहकारिता विभाग की प्रभारी है।
सामाजिक जागरूकता से मुहिम को लाभ

जिला पंचायत सदस्य श्रद्धा ने बताया कि शुरुआत में उनका यह प्रयास गांव तक सीमित था। इसके बाद उन्होंने इस मुहिम के प्रति समाज के लोगों को जागरूक करना शुरू किया। इस काम में गांव के लोगों का भी सहयोग लिया। सामाजिक मंच में भी उन्होंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। इसका असर यह हुआ कि शहरों क्षेत्रों के दुर्ग, बालोद, रायपुर, राजनांदगांव के अलावा दूरस्थ क्षेत्रों के बस्तर, दंतेवाड़ा, बेमेतरा, मानपुर मोहला जैसे जिले भी उनकी मुहिम में शामिल हो गए।
दान देकर बैंक को मजबूत करते हैं लोग

बर्तन बैंक की शुरुआत के लिए स्थानीय लोगों की एक समिति गठित की जाती है, जो इसका संचालन करती है। यह समिति ग्रामीणों को पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक आयोजनों के लिए बिना किसी शुल्क के थाली, गिलास व कटोरियां उपलब्ध कराती है। इस मुहिम की प्रेरक बात यह है कि सक्षम परिवार बर्तन लौटाने के साथ ही स्वेच्छा से दान देकर बैंक को मजबूत बना रहे हैं। वर्तमान में किसी गांव में 50, तो किसी में 500 तक बर्तन उपलब्ध हैं, जिससे यह पहल एक सशक्त सामुदायिक माडल बन गई है।
दो गांवों की कहानियों से समझें मुहिम को

बालोद जिले का जोरातराई श्रद्धा पुरेंद्र साहू का गृह ग्राम है। वर्तमान में गांव में 500 से अधिक बर्तनों का सेट उपलब्ध हैं। गांव में करीब छह सौ परिवार हैं। अब सभी के यहां किसी तरह के आयोजनों में डिस्पोजल बर्तन की जगह बर्तन बैंक के बर्तन ही उपयोग होते हैं। गांव के तरूण साहू, रवि साहू, लता साहू सहित अन्य इसका संचालन करते हैं। तरूण साहू ने बताया कि गांव में अब डिस्पोजल बर्तन का उपयोग पूरी तरह बंद हो गया है।

दुर्ग जिले के ग्राम कातरो में राधाकृष्ण समिति ने करीब छह वर्ष पहले बर्तन बैंक की शुरुआत की। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में तीन सौ बर्तनों का सेट उपलब्ध है। गांव के हर घर में इन्हीं बर्तनों का उपयोग किया जाता है। बड़े आयोजनों के लिए अन्य गांवों की समितियों से भी बर्तनों का आदान-प्रदान किया जाता है। आलोक साहू के अनुसार अब किसी भी आयोजन में डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग नहीं करते हैं।

आयोजनों के बाद प्लास्टिक कचरे का ढेर धरती और मवेशियों दोनों के लिए गंभीर खतरा है। लोगों और केटरर्स द्वारा डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। उनसे सहयोग की अपेक्षा है, ताकि यह प्लास्टिक प्रदूषण रुके।
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