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बढ़ता वायु प्रदूषण ब्रेन के लिए गंभीर खतरा, इस रिपोर्ट ने लोगों को टेंशन में डाला

cy520520 6 day(s) ago views 240

  



अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी की गिरती वायु गुणवत्ता अब केवल फेफड़ों के लिए ही नहीं, बल्कि मस्तिष्क के लिए भी गंभीर खतरा बनती जा रह है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यही तस्वीर दिखी है।

द लैंसेट व ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) रिपोर्ट में प्रकाशित हालिया वैश्विक अध्ययन ने पाया कि वायु प्रदूषण, विशेषकर पीएम2.5, अब विश्वभर में स्ट्रोक से होने वाली कुल मौतों का लगभग 15 प्रतिशत तक जिम्मेदार है।

इस रिपोर्ट में भारत को ‘अत्यधिक जोखिम वाले देशों’ की श्रेणी में रखा गया है। दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, लोक नायक अस्पताल और जीबी पंत अस्पताल में वर्ष 2018 से 2020 तक ‘इम्पैक्ट आन एयर पाल्यूशन इन दिल्ली ऐंड इनसिडेंस ऑफ स्ट्रोक इन ए टर्शियरी हास्पिटल: ए रेट्रोस्पेक्टिव एनालिसिस’ विषयक अध्ययन में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों के समूह पाया कि वायु में सूक्ष्म कणों पीएम 2.5 की अधिकता और मस्तिष्क आघात (ब्रेन स्ट्रोक) की घटनाओं के बीच प्रत्यक्ष और सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण संबंध है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह अध्ययन ‘जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर’ में वर्ष 2021 में प्रकाशित हुआ था। इसमें जनवरी 2018 से दिसंबर 2020 के बीच के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था। जो मौलाना आज़ाद मेडिकल कालेज, लोक नायक अस्पताल और जीबी पंत संस्थान से एकत्रित किए गए थे।

इस अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया कि जिन दिनों दिल्ली की वायु में पीएम2.5 का स्तर अधिक था, उन दिनों मस्तिष्क आघात के मामलों में औसतन 15 से 20 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई। यानी हवा में जितना अधिक प्रदूषण, मस्तिष्क आघात का उतना अधिक खतरा।

द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हालिया वैश्विक अध्ययन में बताया गया है कि अब विश्वभर में मस्तिष्क आघात से होने वाली कुल मौत का बड़ा कारण वायु प्रदूषण, विशेषकर पीएम2.5 है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का भी यही कहना है कि वायु प्रदूषण अब केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि स्नायविक स्वास्थ्य संकट का भी रूप ले चुका है।
दिल्ली में चिंताजनक स्थिति

दिल्ली की आबादी करीब ढाई करोड़ है और यहां प्रतिवर्ष लगभग 30 हजार लोग मस्तिष्क आघात से प्रभावित होते हैं। इनमें से औसतन 35 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है यानी औसतन हर तीन में से एक मरीज की जान चली जाती है। विशेष रूप से प्रदूषण वाले क्षेत्रों जैसे आनंद विहार, वज़ीरपुर, आईटीओ, पंजाबी बाग और आर.के. पुरम में स्ट्रोक की घटनाएं अपेक्षाकृत अधिक दर्ज की गई हैं।

श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के निदेशक डा. राजुल अग्रवाल जो लंबे समय से इस तरह के मामले देख रहे हैं, उनका कहना है कि स्ट्रोक में हर मिनट लाखों न्यूरान्स नष्ट होते हैं। इस मामले में इलाज में देरी का अर्थ है स्थायी दिव्यांगता या मौत।

यह भी पढ़ें- दिल्ली से भी ज्यादा यूपी के इस शहर की हवा हुई खराब, सांस लेने पर फेफड़ों तक पहुंच रहे प्रदूषण के बारीक कण

न्यूरोलाजिस्ट डॉ. एस. शर्मा का कहना है, प्रदूषण अब केवल सांस की बीमारी नहीं रहा। यह मस्तिष्क के रक्तप्रवाह और स्नायु कोशिकाओं को भी प्रभावित कर रहा है। इससे जिन लोगों को पहले से मधुमेह, उच्च रक्तचाप या हृदय रोग है, वे विशेष जोखिम में हैं।
देश के अन्य प्रदूषित शहरों की स्थिति

मुंबई में प्रतिवर्ष लगभग 22 हजार ब्रेन स्ट्रोक के मामले

चेन्नई में 15 हजार

कोलकाता में 18 हजार

लखनऊ में 10 हजार

इनमें से औसतन 40 से 45 प्रतिशत मामलों में मृत्यु या स्थायी शारीरिक अक्षमता देखी जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण से उत्पन्न सूक्ष्म कण मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों में सूजन और थक्का (ब्लड क्लाट) बनने का खतरा बढ़ा देते हैं, जिससे अचानक मस्तिष्काघात हो सकता है।
चिकित्सीय सलाह-आम लोगों के लिए सुझाव

चिकित्सकों ने मस्तिष्काघात के खतरे से बचने के लिए निम्न सावधानियां सुझाई हैं-

  • सुबह और शाम के समय, जब वायु प्रदूषण अधिक होता है, बाहर व्यायाम से बचें।
  • घर में स्वच्छ हवा का पूरा इंतजाम करेन, बंद कमरों में धुंआ इत्यादि न करें, कमरे हवादार रखें।
  • रोजाना कम से कम आठ गिलास पानी पिएं ताकि रक्त गाढ़ा न हो।
  • उच्च रक्तचाप, शुगर और कोलेस्ट्राल की नियमित जांच कराते रहें।
  • तले या अत्यधिक नमकीन भोजन से बचें, फल-सब्ज़ियां अधिक खाएं।
  • सिरदर्द, बोलने में कठिनाई, हाथ-पैर में अचानक कमजोरी जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत अस्पताल पहुंचें- स्ट्रोक के इलाज में हर मिनट कीमती होता है।
  • मुख्य तथ्य (जीबीडी 2021 के अनुसार)
  • भारत में हर साल लगभग 18 लाख लोग ब्रेन स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) से प्रभावित होते हैं।
  • इनमें से लगभग 9.4 लाख लोगों की मृत्यु स्ट्रोक से होती है।
  • ब्रेन स्ट्रोक भारत में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण बन चुका है।
  • देश में प्रति एक लाख आबादी पर 152 नए स्ट्रोक मामले दर्ज किए जाते हैं।
  • प्रदूषण (बाहरी और घरेलू) से होने वाली स्ट्रोक से मौतों का हिस्सा 41 प्रतिशत है।
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