घाटमपुर में स्थित कूष्मांडा देवी का मंदिर।
जागरण संवाददाता, कानपुर। कानपुर के घाटमपुर स्थित कूष्मांडा देवी का मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। यहां वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है। इतिहासकारों के मुताबिक मंदिर की नींव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी। उन्हीं के नाम पर नगर का नाम घाटमपुर पड़ा। वहीं, 1890 में चंदीदीन भुर्जी नाम के एक व्यवसायी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मंदिर का इतिहास
इतिहास के जानकार बताते हैं कि मराठा शैली में बने मंदिर में स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से 10वीं शताब्दी के मध्य की हैं। भदरस गांव के एक कवि उम्मेदराय खरे ने वर्ष 1783 में फारसी में ऐश आफ्जा नाम की पांडुलिपि लिखी थी, जिसमें माता कूष्मांडा और भदरस की माता भद्रकाली का वर्णन किया है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि करीब एक हजार साल पहले कुड़हा नाम का ग्वाला यहां गाय चराता था। उसकी गाय एक जगह पर अपना दूध गिरा देती थी। जब उस जगह की खोदाई हुई तो मां की पिंडी निकली। कूष्मांडा देवी को कुड़हा देवी भी कहा जाता है। माता की पिंड रूपी मूर्ति में चढ़ाये गए जल को लेकर मान्यता है कि यदि आंखों पर लगाया जाए तो अनेक रोग दूर हो सकते हैं। इस मंदिर में माता पिंडी के रूप में विराजित हैं। यह लेटी हुई मुद्रा में प्रतीत होती हैं। पिंडी के पेट से हमेशा जल निकलता रहता है जो आप भी रहस्य है कि यह जल आता कहां से है।
इस तरह पहुंचे मंदिर
Navratri 2025, Shardiya Navratri 2025, Kalparambha, Navratri significance, Navratri ritual, Kalparambha vidhi, Navratri 2025, Hindu festival, Navratri tips
कानपुर से आने वाले भक्त नौबस्ता बाईपास से कानपुर-सागर हाईवे होते हुए सीधे मंदिर पहुंच सकते हैं। नौबस्ता से 35 किलोमीटर दूर मंदिर हाइवे के किनारे पर स्थित है।
माता के दर्शन के लिए नवरात्र में करीब 50 हजार श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंचते हैं। चतुर्थ दिन भव्य दीपदान का आयोजन होता है। मां अपने हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं।
-लल्लू सैनी, अध्यक्ष, कूष्मांडा देवी (कुढ़हा देवी) माली सेवा समिति
उत्तर भारत में कूष्मांडा माता का एकमात्र मंदिर घाटमपुर में है। मंदिर परिसर में माता की प्रतिमा लेटी मुद्रा में है। माता के दरबार में सच्चे मन से आने वाले भक्तों का कल्याण होता है।
-पूतू पांडेय, भक्त
 |