प्रतीकात्मक तस्वीर।  
 
  
 
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। एक दोषी की पैरोल से जुड़े मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि पैरोल आवेदन पर निर्णय लेने में अधिकारियों द्वारा की गई प्रशासनिक देरी से दोषी के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाला जा सकता। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि पैरोल एक रियायत के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक सुधारात्मक उपाय भी है, जो कारावास के दौरान भी सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।  
 
पीठ ने कहा कि पैरोल पारिवारिक संबंधों को बनाए रखते हुए और पुनर्वास में सहायता प्रदान करके एक सुधारात्मक और मानवीय उद्देश्य पूरा करता है।  
 
अदालत ने उक्त टिप्पणी आजीवन कारावास की सजा पाए एक हत्या के दोषी द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए की। याची ने आठ सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहाई की मांग की गई थी।  
 
याची ने विभिन्न बीमारियों से पीड़ित अपने बीमार पिता के साथ रहने और आस्ट्रेलिया में बसी अपनी बेटी के साथ सामाजिक संबंध बनाए रखने के लिए मांगी गई थी।  
 
दोषी का तर्क था कि सजा समीक्षा बोर्ड का आदेश पूरी तरह से गलत जेल की सजाओं के आधार पर यंत्रवत् पारित कर दिया गया था।  
 
दोषी को राहत देते हुए, पीठ ने कहा कि विशिष्ट न्यायिक निर्देशों के बावजूद याची के मामले में प्रशासनिक स्तर पर विचार नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि सामान्य देरी को अनुपालन न करने का बहाना बनाया जा रहा है।  
 
पीठ ने दोषी को पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही चार सप्ताह में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।  
 
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