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नफरत ही खाना, नफरत ही पीना, नफरत रोज बढ़ाना: जय ...

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— शकील अख्तर
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री की दिल्ली में हुई प्रेस कान्फ्रेंस में केवल पुरुष पत्रकार जाएंगे इस पर मोदी सरकार को कोई आपत्ति नहीं हुई। उल्टा जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसमें महिला पत्रकारों को नहीं जाने दिए जाने का सवाल उठाया तो विदेश मंत्री एस जयशंकर गोदी मीडिया और भक्तों, ट्रोलों वाला यह बचकाना तर्क देने लगे कि अपने दूतावास में वे किसे बुलाएं किसे नहीं यह उनका अधिकार है।   




  
दलितों के खिलाफ मन में इतना जहर! उन्हें नीचा दिखाने के लिए वे जिन्हें अपना सबसे बड़े नेता मानते हैं उन डॉ. अम्बेडकर को रैलियां निकाल कर अंग्रेजों का गुलाम कहा जा रहा है।  
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थिति विस्फोटक हो गई है। यहां दिल्ली की तरह एक सामान्य वकील नहीं बल्कि ग्वालियर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे अनिल मिश्रा लगातार डॉ. अम्बेडकर को गालियां दे रहे हैं। उनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर भी दर्ज की गई है मगर इसके बावजूद वे न केवल अम्बेडकर के खिलाफ बोल रहे हैं बल्कि उनके समर्थन में बड़ी तादाद में आ गए उनकी विचारधारा के वकील और राजनीतिक लोग भी अब इसे बढ़ाकर संविधान निर्माता के तौर पर उनका नाम हटाकर वी एन राव का नाम लिखने की मांग कर रहे हैं। साथ ही आरक्षण खत्म करने की।  




  
देश में नफरत और विभाजन को कहां तक ले आया गया है यह ग्वालियर में अम्बेडकर के खिलाफ दिए जा रहे बयानों से मालूम पड़ता है। जिन वकीलों ने अम्बेडकर के खिलाफ मुहिम शुरू की है वे अब खुलेआम पुलिस को चैलेंज कर रहे हैं कि अम्बेडकर के खिलाफ बोलने वाले वकील अनिल मिश्रा को गिरफ्तार करके दिखाओ!  
  
राज्य सरकार की हिम्मत नहीं पड़ रही है। प्रशासन ने केवल अभी धारा 144 लगाकर जुलूस प्रदर्शनों पर रोक का इंतजाम किया है। अम्बेडकर देश में हमेशा से दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहे हैं। देश में सबसे ज्यादा प्रतिमाएं अम्बेडकर की तोड़ी गई हैं। कारण स्पष्ट है अम्बेडकर ने मनुवाद को सीधे चैलेंज किया था। सौ साल होने वाले हैं जब उन्होंने मनुस्मृति को जलाया था। 1927 में। और इसके बाद संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने संविधान में एससी एसटी के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी।  




  
बीजेपी आरएसएस जो कभी सामाजिक समानता के सिद्धांत को स्वीकार नहीं कर पाई वह दलित पिछड़े आदिवासियों में पैठ बनाने के लिए तो अम्बेडकर की बात करती है मगर मन से कभी उन्हें स्वीकार नहीं कर पाती। इसलिए संघ ने उस समय संविधान का विरोध किया था। उस समय संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर ने लिखा था: 'हम संविधान को कभी स्वीकार नहीं कर सकते। क्योंकि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। मनुस्मृति ही दुनिया में प्रशंसित है। 1949 में।'  




  
यहां इस विरोधाभास को रेखांकित करना भी जरूरी है कि आज उसी प्रतिक्रियावादी सोच के लोग दावा कर रहे हैं कि संविधान अम्बेडकर ने नहीं वीएन राव ने लिखा था। तो अगर राव ने लिखा था जिसे वे ब्राह्मण होने के  कारण स्वीकृति और सम्मान दे रहे हैं तो फिर संघ ने इसका विरोध क्यों किया था?  
मूल समस्या अम्बेडकर के दलित होने से है। बीजेपी आरएसएस के लोग यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि कोई दलित इतना विद्वान हो सकता है कि वह संविधान लिखे। आज भी जो सारा आन्दोलन आरक्षण के खिलाफ होता है उसमें यही कहा जाता है कि इसके द्वारा आए हुए लोग अयोग्य होते हैं।  

  
यह झूठ नफरती विचार फैलाए तो हमेशा से जा रहे हैं मगर पहले इसका असर उतना होता नहीं था। मगर अब जब से इनकी सरकार आई है नफरत का असर दिखने लगा है। और अब तो इतना विस्फोटक हो गया है कि अपनी काबिलियत मेहनत से चीफ जस्टिस आफ इंडिया बने बीआर गवई का अपमान करने के लिए उन पर जूता फेंका जाता है। और कोई पछतावा नहीं, माफी नहीं बल्कि उसे उचित ठहराया जाता है। जूते फेंकने वाले के इंटरव्यू धड़ाधड़ हो रहे हैं। मीडिया उन्हें हीरो की तरह पेश कर रहा है। उत्साहित भक्त ट्रोल और धमकियां दे रहे हैं कि दूसरे जजों के साथ ऐसा होगा। सड़क पर होगा।  

  
डर का माहौल है। सुप्रीम कोर्ट के किसी जज, किसी हाई कोर्ट की हिम्मत नहीं पड़ रही कि जूता मारने वाले के खिलाफ कुछ बोल सके। और आप पक्का मानिए अगर वह कोर्ट में चला गया कि बार कौंसिंल ने उसके वकालत करने पर कैसे रोक लगाई है या बार एसोसिएशन ने उसे कैसे निष्कासित किया है तो उसे तुरंत राहत मिल जाएगी। हो सकता है कोई कोर्ट जस्टिस गवई पर ही टिप्पणी करने की गलती उनकी थी।  
  
कुछ भी हो सकता है। जो चाहते थे वह माहौल बना लिया। पहले मुस्लिम के खिलाफ बनाया। मुस्लिम होना ही गुनाह हो गया। उससे जुड़ी हर चीज पर सवाल खड़े कर दिए। खुद प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री स्तर पर। इसके बाद क्या बचता है?   

मगर विरोध केवल भारत के मुस्लिम का। भारत के बाहर के मुस्लिम का नहीं। अभी आपने तालिबान सरकार का प्रकरण देखा। इस तालिबान के खिलाफ देश में कितना प्रोपेगंडा चलाया गया। भाजपा से लेकर गोदी मीडिया तक सबने।   
  
उद्देश्य उनका विरोध नहीं था। असली मकसद था उनके बहाने भारत के मुसलमानों को बदनाम करना। किसी भी दाढ़ी वाले को देखते ही खासतौर से नौजवान को उसे तालिबानी कहने लगते थे। मगर अब जब तालिबानी आए तो उन्हें गार्ड आफ आनर दिया गया।  

  
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री की दिल्ली में हुई प्रेस कान्फ्रेंस में केवल पुरुष पत्रकार जाएंगे इस पर मोदी सरकार को कोई आपत्ति नहीं हुई। उल्टा जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसमें महिला पत्रकारों को नहीं जाने दिए जाने का सवाल उठाया तो विदेश मंत्री एस जयशंकर गोदी मीडिया और भक्तों, ट्रोलों वाला यह बचकाना तर्क देने लगे कि अपने दूतावास में वे किसे बुलाएं किसे नहीं यह उनका अधिकार है। एकदम गलत।  

  
भारत में भारत के किसी से भेदभाव नहीं होगा का कानून लागू होगा। कल शनिवार को हमने इसके बहुत सारे उदाहरण दिए हैं ट्वीटर फेसबुक पर उन्हें नहीं दोहराएंगे। एक नया उदाहरण। ज्यादातर देशों में जाति का कान्सेप्ट नहीं है तो जातिगत आधार पर भेदभाव का सवाल ही नहीं। लेकिन हमारे यहां एससी एसटी (अत्याचार निवारण) कानून है। अब अगर किसी विदेशी दूतावास के अंदर किसी के साथ जातिगत भेदभाव होता है तो दूतावास इस आधार पर नहीं बच सकता कि यह तो हमारे यहां अंदर हुआ है। करने वाला और पीड़ित दोनों भारतीय होंगे तो करने वाला भारतीय उस देश की आड़ में बच नहीं पाएगा।  

  
बड़ा कानून, प्रिंसिपल लॉ हर जगह लागू होता है। महिला के साथ भारत में कोई भी कहीं भी भेदभाव नहीं कर सकता। और साफ कर दें। क्योंकि खुद उन विदेश मंत्री ने कहा है जो भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के हैं। सर्वोच्च पद विदेश सचिव रह चुके हैं। सारे कानून मालूम हैं। यह भी कि कोई भी विदेशी जब भारत में है तो उस पर क्रिमिनल और सिविल सभी मामलों में भारतीय कानून लागू होंगे।  
  
एक अनपढ़ दौर आया है कुछ भी बोल दो। नेता बोलते हैं तो वह विदेश मंत्री जयशंकर भी विदेश सेवा से आए हैं, कुछ भी बोल देते हैं। उद्देश्य एक ही है तालिबान को खुश करना। आखिर एकमात्र दोस्त है। कभी ऐसा पाकिस्तान के साथ होता था। भारत से युद्ध में उसके साथ केवल एक ही देश खड़ा होता था। अमेरिका। आज मोदी जी ने हमारी वह हालत कर दी है कि हमारे साथ अभी पाकिस्तान के साथ संघर्ष में केवल एक ही देश था। यही अफगानिस्तान की तालिबान सरकार।  

  
देश हर मोर्चे पर पीछे जा रहा है। बस केवल नफरत में बढ़ रहा है। मुस्लिम से दलित, दलित से पिछड़ा आदिवासी और उसके बाद बचे कितने? जो बचे हैं सब एक दूसरे के खिलाफ।  
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)







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