कैंसर को हरा चुके 6000 बच्चों पर चल रहा अध्ययन। जागरण
मुहम्मद रईस, नई दिल्ली। बाल कैंसर के मामलों में बच्चों के ठीक होने की दर एम्स के बाल रोग विभाग में 80 प्रतिशत तक है। सही जांच और उचित उपचार से बच्चा पूरी तरह ठीक हो सकता है। हालांकि, उसे लंबे समय तक चिकित्सीय फॉलोअप की जरूरत रहती है, ताकि 10-15 वर्ष के बाद भी दुष्प्रभाव नजर आने पर उसका समुचित उपचार किया जा सके। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
एम्स की अगुआई में देश के 30 से अधिक संस्थानों में पंजीकृत छह हजार से अधिक कैंसर सर्वाइवर बच्चों पर अध्ययन किया जा रहा है, ताकि स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव के अनुसार, उपचार की स्वदेशी गाइडलाइन तय की जा सके। इससे जहां कैंसर से ठीक होने की दर में वृद्धि संभव होगी, वहीं उपचार के उपरांत बच्चों को सामान्य और गुणवत्तापूर्ण जीवन की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
एम्स की बाल रोग विशेषज्ञ व आंकोलाजिस्ट डॉ. रचना सेठ ने बताया कि अभी तक की गाइडलाइन के लिए हम विदेशी अध्ययनों पर ही आश्रित हैं।
डा. रचना के मुताबिक, कैंसर जैसी बीमारी को मात दे चुके बच्चों के स्वास्थ्य पर लंबे समय तक निगरानी की जरूरत रहती है, क्योंकि इनमें किसी दूसरे प्रकार के कैंसर होने का जोखिम बना रहता है। साथ ही हड्डियों, रेटिना, प्रजनन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। फॉलोअप होते रहने पर समय से इन विकारों की पहचान के साथ ही समुचित निदान किया जा सकता है।dehradun-city-general,Uttarakhand News, Uttarakhand Hindi News, Uttarakhand Hindi News, uksssc news, uksssc news,,uksssc exam paper leak,uttarakhand recruitment exam,uksssc recruitment 2025,uttarakhand job vacancies,government job exam,paper leak investigation,uttarakhand exam security,uksssc exam update,uttarakhand news
एम्स के बाल चिकित्सा आन्कोलाजी विभाग में प्रतिवर्ष 450 से 500 तक नए केस आते हैं। इनमें ज्यादातर मरीज उत्तर प्रदेश और बिहार के होते हैं। 75 से 80 प्रतिशत तक बच्चे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। बच्चों में ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, रेटिनोब्लास्टोमा और सेंट्रल नर्वस सिस्टम (सीएनएस) ट्यूमर के केस सबसे अधिक आ रहे हैं।
वहीं, न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म्स ट्यूमर, साफ्ट टिश्यू सारकोमा और हड्डियों के कैंसर के मामले भी सामने आ रहे हैं। वर्ष 2016 में एम्स ने कैंसर सर्वाइवर रजिस्ट्री की शुरुआत की थी। इससे अब तक दो हजार से अधिक बच्चे जुड़ चुके हैं। वहीं देशभर के 30 से अधिक संस्थानों को मिलाकर यह आंकड़ा लगभग 6000 के आसपास है।
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बाल चिकित्सा आन्कोलाजी के डा. आदित्य व डा. जगदीश मीणा ने बताया कि जेल आधारित कूलिंग कैंप जैसी डिवाइस पर भी काम चल रहा है, जो कीमोथेरेपी के दौरान सिर को ठंडा रखकर बालों को झड़ने से बचाने में सक्षम है। वहीं डा. प्रशांत के निर्देशन में रेटिनोब्लास्टोमा में प्रभावी दवा को लेकर भी अध्ययन हो रहा है, जिसके नतीजे जल्द सामने आएंगे। |