मतांतरण विरोधी कानून पर राजस्थान सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में लागू मतांतरण विरोधी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सोमवार को प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस आफ इंडिया द्वारा दायर याचिका को राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2025, के प्रविधानों की वैधता को चुनौती देनेवाली अलग-अलग लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से 2025 के अधिनियम को \“\“अधिकार से परे और असंवैधानिक\“\“ घोषित करने का आग्रह किया है।
राजस्थान मतांतरण विरोधी कानून के सख्त नियम
राजस्थान कानून में धोखे से सामूहिक मतांतरण के लिए 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रविधान है, जबकि धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन के लिए सात से 14 साल तक की जेल की सजा का प्रविधान है।
इसके अलावा धोखे से नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और विकलांग व्यक्तियों का मतांतरण कराने पर 10 से 20 साल की जेल की सजा और कम से कम 10 लाख रुपये का जुर्माना होगा। कई राज्यों के कानूनों को दी गई है चुनौती सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने कई राज्यों से उनके मतांतरण विरोधी कानूनों पर रोक लगाने की मांग वाली अलग-अलग याचिकाओं पर उनका रुख पूछा था।
कई राज्यों के मतांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ दायर हैं याचिकाएं
कोर्ट ने तब स्पष्ट किया था कि जवाब दाखिल होने के बाद वह ऐसे कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की प्रार्थना पर विचार करेगी। उस समय, पीठ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक सहित कई राज्यों द्वारा लागू किए गए मतांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही थी। |