सरकार ने PFC, REC, IREDA को रिनीवेबल परियोजनाओं की स्थिति की साझा, क्या होगा फायदा?

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सरकार ने PFC REC IREDA को रिनीवेबल परियोजनाओं की स्थिति की साझा (फाइल फोटो)



जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने इस बात को खारिज किया है कि उसकी तरफ से नवीकरणीय परियोजनाओं या इन परियोजनाओं से जुड़े उपकरण निर्माण उद्योग को लोन नहीं देने के लिए भारत के वित्तीय संस्थानों को कोई मशविरा दिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

रविवार को एमएनआरई ने इस बारे में स्पष्ट किया कि इस बारे में चलाई जा ही खबरें जो देश में रिनीवेबल परियोजनाओं में जरूरत से ज्यादा क्षमता होने के संदर्भ में छपी हैं, पूरी तरह से गलत है। लेकिन मंत्रालय ने वित्तीय सेवा देने वाले विभागों और पीएफसी, आरईसी तथा आईआरईडीए जैसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को सौर पीवी विनिर्माण क्षेत्र में देश में स्थापित की जाने वाली विनिर्माण क्षमताओं की स्थिति साझा की है, ताकि वो इन परियोजनाओं से जुड़े लोन आदि का मूल्यांकन संतुलित तरीके से कर सकें।
योजना की गई लागू

एमएनआरई ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत सरकार सौर पीवी मैन्यूफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता हासिल करने और भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख वैश्विक केंद्र बनाने को लेकर प्रतिबद्ध है। इस लक्ष्य को समर्थन देने के लिए ही उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना लागू की गई है।

साथ ही भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को दूसरे प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। इन प्रोत्साहनों से ही सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता जो 2014 में मात्र 2300 मेगावाट थी वब अब 1.22 लाख मेगावाट हो गई है। मंत्रालय ने कहा कि वह सेक्टर के सभी पक्षों के साथ मिल कर काम करता र हेगा कि भारतीय सौर ऊर्जा सेक्टर को प्रतिस्प‌र्द्धी और भविष्य के लिए तैयार किया जा सके।

मंत्रालय की तरफ से उक्त स्पष्टीकरण के बावजूद वस्तुस्थिति कुछ अलग है। वित्तीय संस्थानों में रिनीवेबल सेक्टर को लेकर कुछ ¨चताएं पैदा हुई हैं। अफवाह की जड़ ऑल इंडिया सोलर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एआइएसआइए) की तरफ से नवंबर, 2025 में एमएनआरई को लिखा गया एक पत्र है जिसमें सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता में तेजी से विस्तार से गंभीर ओवरकैपेसिटी पैदा होने की चेतावनी दी गई थी।
मेमोरैंडम किया जारी

एसोसिएशन ने बताया कि भारत की मॉड्यूल क्षमता देश की वार्षिक जरूरत से लगभग चार गुना हो चुकी है। जिससे निवेश के फंसने और कीमतों पर दबाव का खतरा है। इससे सतर्क होते हुए एमएनआरई ने 4 दिसंबर को एक ऑफिस मेमोरैंडम जारी किया।

इसमें वित्तीय सेवा विभाग और एनबीएफसी (जैसे पीएफसी, आरईसी, आईआरईडीए) को सौर पीवी विनिर्माण के विभिन्न चरणों (मॉड्यूल, सेल, इंगॉट-वेफर, पॉलीसिलिकॉन आदि) में वर्तमान क्षमताओं की स्थिति साझा की गई। मंत्रालय ने सलाह दी कि नई परियोजनाओं के वित्तपोषण संबंधी मूल्यांकन में सतर्कता बरती जाए और फंडिंग को सेल, वेफर और पॉलीसिलिकॉन जैसे अपस्ट्रीम सेक्टर की तरफ मोड़ा जाए।

भारत ने 2030 तक रिनीवेबल सेक्टर से पांच लाख मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य रखा है। 31 अक्टूबर 2025 तक गैर-जीवाश्म स्त्रोतों से स्थापित क्षमता लगभग 2.59 लाख मेगावाट है, जिसमें वित्तीय वर्ष 2025-26 के अक्टूबर तक 31.2 गीगावाट जोड़ा गया।
कितने पैसों की थी जरूरत?

लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश की आवश्यकता है। वर्ष 2023 के एक अध्ययन के मुताबिक सौर, पवन समेत सभी रिनीवेबल सेक्टर में तीन लाख मेगावाट बिजली क्षमता जोड़ने के लिए 500 अरब डॉलर की जरूरत थी।

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