मंडी हादसे का शिकार हुए महेंद्र और नितेश का फाइल फोटो।
मुकेश मेहरा, मंडी। सड़क हादसे में काल का ग्रास बने सेना के जवान नितेश और महेंद्र दोनों बेहतरीन खिलाड़ी भी थे। नितेश राज्यस्तरीय फुटबाल प्रतियोगिता और महेंद्र अपनी स्नातक से संबंधित परीक्षा के लिए छुट्टी लेकर घर आए थे। इनकी पारिवारिक पृष्ठ भूमि सेना और पुलिस की है।
नितेश के पिता स्वर्गीय सुरेश पुलिस में थे और चंबा में हुए आतंकी हमले में गोली लगने से वह बलिदान हुए थे। वहीं महेंद्र के पिता स्वर्गीय मोतीराम 5जैक से ही कैप्टन पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
नितेश और महेंद्र दोनों ही बेहतरीन खिलाड़ी भी थे और अपनी बटालियनों में बतौर इंस्ट्रक्टर भी सेवाएं देते थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शांत स्वभाव के थे महेंद्र
महेंद्र के भाई लेखराज ने बताया कि महेंद्र शांत स्वभाव का था, सेना में भर्ती हुए 11 साल हो गए थे। इंटरनेट मीडिया और अन्य गतिविधियों में कम ही भाग लेते थे। सिर्फ स्कीइंग, वालीबाल और पढ़ाई में रुचि थी। स्कीइंग के लिए महेंद्र हाल ही में यूएसए भी जाकर आए थे।
फुटबाल व स्कीइंग का दीवाना था नितेश
वहीं नितेश के दोस्त आयुष मंगला, अभिषेक, पंकित ने बताया कि नितेश फुटबाल व स्कीइंग का दीवाना था। हाल ही में संपन्न हुए राज्यस्तरीय फुटबाल प्रतियोगिता में नाहन में खेलकर ही घर आया था। वो ऐसा दोस्त था जो हर मुसीबत पर अपने दोस्तों का साथ देने के लिए खड़ा रहता था।
पहले मैदान आऊंगा फिर घर जाऊंगा
नितेश के दोस्त अभिषेक ने बताया कि नितेश जब छुट्टी पर घर आया था तो उसने अपने दोस्तों को फोन कर कहा कि मैदान आ जाओ। मैं पहले खेलूंगा, उसके बाद घर जाऊंगा। खेल के लिए उसकी दीवानगी अलग ही तरह की थी।
मंडी में बाइक खड़ी कर शादी के लिए निकल गया था महेंद्र
वहीं महेंद्र के दोस्त ने बताया कि उसने शाम को डीसी कार्यालय के पास बाइक खड़ी की और उसके बाद शादी के लिए गया। क्या पता था कि वह उसके साथ उसकी आखिरी मुलाकात है।
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दोनों घर में कमाने वाले थे अकेले
नितेश और महेंद्र के घर में कमाने वाले वही थे। नितेश के घर में उनकी मां व पत्नी और बेटा हैं। उनका सहारा छिन गया है। वहीं महेंद्र के घर में भी यही स्थिति है। महेंद्र का एक छोटा भाई है, जो पढ़ाई कर रहा है। इनकी मौत की खबर सुनते ही परिवार में चीखों पुकार है। महेंद्र की पत्नी बेहोश हो गई, वहीं नितेश की मां व पत्नी को स्वजन ने मुश्किल से संभाला। नितेश के स्वजन टारना से उनके पैतृक गांव बलद्वाड़ा चले गए। देर शाम को सेना के ट्रकों के जरिये उनकी पार्थिव देह को घर तक पहुंचाया गया।
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