शकील अख्तर
मुख्य सवाल कि सौ साल में किया क्या? नफरत के अलावा और क्या उपलब्धि है? जिन सरदार पटेल का नाम संघ और भाजपा भी सबसे ज्यादा लेते हैं उन्होंने 80 साल पहले उस समय के संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर को उनके पत्र के जवाब में लिखा था कि-हिन्दुओं का संगठन करना उनकी सहायता करना एक बात है, मगर मुसलमानों पर अत्याचार करना बिल्कु ल दूसरी बात।
संघ को पहली बार बाहर आते हुए 1977 में देखा। लोकसभा चुनाव जीत जाने के बाद और फिर मध्य प्रदेश में विधानसभा भी जीत जाने पर। अचानक मालूम पड़ने लगा कि यह संघ के हैं और वह भी केन्द्र और राज्य दोनों जगह सत्ता में आने के बाद अपनी पहचान छुपाना बंद की। इससे पहले जनसंघ के नेता, कार्यकर्ता के तौर पर जो लोग होते हंै वही अपनी सार्वजनिक पहचान रखते थे। बाकी संघ के प्रचारक या अन्य लोग अपनी किसी राजनीतिक या सामाजिक पहचान को उजागर नहीं करते थे। गुप्त संगठन। हर पार्टी में थे और सभी पार्टी के बड़े नेताओं के खास। नेहरू, सरदार पटेल, इन्दिरा जी इन्हें समझते थे मगर बाकी लोग इनके द्वारा की गई प्रशंसा और व्यक्तिगत सहायता से प्रसन्न हो जाते थे।
संघ प्रमुख देवरस ने 1975 में इन्दिरा जी को चि_ी लिखी थी कि उच्चतम न्यायालय के पांचों न्यायाधीशों द्वारा सर्वसम्मति से आपका चुनाव वैध ठहराया, इसके लिए आपका हार्दिक अभिनंदन। इसी पत्र में 10 नवंबर 1975 में उन्होंने लिखा कि जयप्रकाश के आन्दोलन से संघ का कोई संबंध नहीं है।
77 से पहले संघ ऐसी ही बातें करता था। आम लोगों को अंदाजा नहीं था कि उसका असली उद्देश्य क्या है। वैसे तो हमें और बहुत सारे लोगों को आज भी आश्चर्य होता है कि इसका उद्देश्य क्या है? और अब जब वह सौ साल पूरे कर रहा है 77 के बाद कई बार सत्ता आ गया तो और भी आश्चर्य होता है कि इन सौ सालों में इसने नफ़रत फैलाने और अफवाहों को माऊथ टू माऊथ फैलाने से बढ़ाकर व्हाट्सएप पर फैलाने के अलावा किया क्या?
सौ साल पूरे होने पर इसकी समीक्षा कौन करेगा? प्रधानमंत्री मोदी को 11 साल हो गए हैं। और वे नेहरू से ज्यादा समय तक रहने का जश्न मना चुके हैं मगर क्या इन 11 सालों में देश मजबूत हुआ है? विदेशों में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ी है? संघ को खुद से सवाल करने होंगे और आपस में ही एक दूसरे को समझाना होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि 11 साल पहले तक खुद उसकी ताकत जो थी वह आज बची है कि नहीं। वाजपेयी जैसे नेता से वह टकरा जाती थी। आडवानी का अध्यक्ष पद छीन लिया था। मगर मोदी के सामने क्या उसकी कोई हैसियत बची है?
खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि 75 का होने पर बाजू हटना है। मतलब गद्दी छोड़ना है। मगर मोदी 75 के हो गए शानदार वर्षगांठ मनी। और पहलगाम के आतंकवादी हमले, ट्रंप के धमकी देकर सीज फायर करवाने, उसके बाद भी टैरिफ के नाम पर पचास प्रतिशत जुर्माना लगाने, वीजा फीस सौ गुनी तक बढ़ाने, दवाईयों पर सौ प्रतिशत टैरिफ लगाने मतलब भारत को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ने और फिर पाकिस्तान के साथ एक के बाद एक तीन क्रिकेट मैच खेलने के बाद भी संघ में उनका रूतबा कम नहीं हुआ। और वे प्रखर राष्ट्रवादी बने हुए आराम से अपनी कुर्सी पर बैठे हुए हैं।
यह संघ की कमजोरी है या मोदी की ताकत? अपनी शताब्दी मनाते हुए संघ चाहे बोले नहीं अंदर अंदर ही अंदर सोचेगी जरूर।
सौ साल में सोचने का सवाल यह भी है कि क्या वास्तव में वह मोदी के बिना खत्म हो जाएगी। जैसा कि भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि बिना मोदी के संघ और भाजपा कुछ भी नहीं हैं। इन्हें मोदी की जरूरत है, मोदी को इनकी नहीं। लोकसभा में 150 सीटें भी नहीं मिलेंगी।
इसके बाद क्या बचता है? निशिकांत दुबे से संघ और भाजपा में से किसी के पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई। न प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि क्या बोल रहे हो! सबने इस स्थापना को स्वीकार कर लिया। इसी माहौल में संघ की सौ वीं सालगिरह मन रही है। क्या कोई बहुत ज्यादा उत्साह का वातावरण देखने को मिल रहा है? अपनी सरकार, फिर भी जश्न फीका! इससे तो मोदी की 75 वीं वर्षगांठ पर कई दिनों पहले से ज्यादा जश्न का माहौल दिखना शुरू हो गया था। और 75 वें जन्मदिन पर जोश दिखाया भी खूब।
यहां गांधी के शताब्दी समारोह 1969 और कांग्रेस के सौ साल 1985 का ज़िक्र करने से कोई फायदा नहीं। जिन्होंने देखा होगा उन्हें मालूम होगा कि वे कितने स्वत:स्फूर्त गौरवशाली आयोजन थे। संघ का भी हो सकता था अगर सरकार किसी और की होती तो। संघ को कोई टकराव का डर नहीं होता। आज तो लगता है कि जिस संघ ने मोदी को बनाया उसी से वह सबसे ज्यादा डरती है।
खैर! मुख्य सवाल कि सौ साल में किया क्या? नफरत के अलावा और क्या उपलब्धि है? जिन सरदार पटेल का नाम संघ और भाजपा भी सबसे ज्यादा लेते हैं उन्होंने 80 साल पहले उस समय के संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर को उनके पत्र के जवाब में लिखा था कि-हिन्दुओं का संगठन करना उनकी सहायता करना एक बात है, मगर मुसलमानों पर अत्याचार करना बिल्कु ल दूसरी बात। विष भरे भाषण, सभ्यता शिष्टता का ख्याल न करना बिल्कुल अलग बात। अस्वीकार्य। गांधी की हत्या इसी जहर को फैलाने के कारण हुई। और उस पर यह कि आरएसएस वालों ने हर्ष प्रकट किया। मिठाइयां बांटी। यह सब अपने 19 नवंबर 1948 के पत्र में सरदार पटेल गृहमंत्री भारत सरकार ने खुद लिखा। और उसके बाद अंत में गोलवलकर को सलाह दी कि कांग्रेस के साथ मिलकर ही आप देशप्रेम का काम कर सकते हैं। उससे अलग होकर या विरोध करके नहीं।
मगर संघ ने आधी बात मानी पूरी नहीं। पूरी यह नहीं मानी विष भरे भाषण बंद करने, सांप्रदायिक जहर न फैलाने की। और आधी यह मान ली कि कांग्रेस में अपने कुछ लोग घुसाने की। कांग्रेस में आधे लोग संघ के हैं। और यह बात खुद राहुल गांधी ने स्वीकार की है। गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आधे कांग्रेसी भाजपा और संघ से मिले हुए हैं। यह संघ के लिए बड़ा सर्टिफिकेट है सफलता का। सौ साल पर मोदी द्वारा मुंह दिखाई तारीफ करने से ज्यादा सच्चाई वाला।
खैर यह एक सफलता है आरएसएस की। कि हर पार्टी में या तो उसके लोग हैं या हर पार्टी ने कभी न कभी उसका साथ दिया है। यह वही उसकी गुप्त कार्यप्रणाली है जो हमने ऊपर लिखी कि 77 में सत्ता आने से पहले तक कोई अपनी पहचान सामने आने नहीं देता था। बाद में भी संघ हर पार्टी खासतौर से कांग्रेस में अपने स्लीपर सेल घुसाए रखता है। समाजवादी इसीलिए खतम हो गए कि वहां संघ की घुसपैठ ज्यादा बढ़ गई थी। कांग्रेस में खुद राहुल ही कह रहे हैं कि पचास प्रतिशत! सावधान राहुल को खुद हो जाना चाहिए। पचास प्रतिशत से ज्यादा हो जाने पर मालिकाना हक हो जाता है। कंपनियों के अधिग्रहण का सारा खेल पचास प्रतिशत पर ही होता है।
बहरहाल इस सफलता पर आरएसएस खुश हो सकती है। दूसरे जो विष भरे भाषण सरदार पटेल ने कहे थे उनके अब हर नेता के मुंह से निकलने पर। मुसलमानों पर अत्याचार की जो बात कही थी वह अब सरकारों द्वारा करने पर। और किस पर खुश होंगे? सौ वीं सालगिरह पर!
राष्ट्रवाद जो सबसे प्रमुख बताया जाता था वह पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने से शायद और ज्यादा मजबूत हुआ होगा। चीन द्वारा गलवान में हमारे 20 जवान शहीद करने और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा न कोई घुसा है और न कोई है कि क्लीन चिट देने से भी उसे बल मिला होगा। और अमेरिका द्वारा तो रोज अपमान करने भारतीय महिला तक के हथकड़ी-बेड़ी लगाकर वापस भारत भेजने से तो देश की मजबूती दुनिया भर में पहुंच गई होगी।
मोदी कहते हैं कांग्रेस सवा सौ साल की बुढ़िया! यही वह नफरत की पुड़िया है जो सौ साल से चटाई जा रही है। सरदार पटेल ने यही कहा था कि इनके सारे भाषण साप्रंदायिक विष से भरे होते हैं।
बस वही विष और बढ़ गया। हिन्दू-मुसलमान से बहुत आगे पहुंच गया है। जातियों में आपस में नफरत और विभाजन किस स्तर पर पहुंच गया है यह देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में देखा जा सकता है। वहां खुलेआम टारगेट तो मुसलमानों को किया जा रहा है मगर अंदर ही अंदर सवर्ण जातियों में ठाकुर ब्राह्मण में भयानक तनाव है। यह सब नया डेवेलपमेंट है। दलित पिछड़ों के बाद सबसे ऊपर माने जाने वाली सवर्ण जातियों में विभाजन और नफरत का बढ़ना शायद सौ साल की ऐसी सबसे विरल उपलब्धि है जिसके बारे में तो किसी ने नहीं सोचा था। मगर सरदार पटेल ने कहा था कि विष से विष ही बढ़ेगा। और वही बढ़ रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

Deshbandhu Desk
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