पर्यावरण की चिंता न जमीन की फिक्र, खेतों में धान की पराली जला रहे किसान। जागरण  
 
  
 
  
 
जागरण संवाददाता, जेवर। धान की कटाई का मौसम शुरू हो गया है। अगली फसल की तैयारी में कुछ किसानों ने अपने खेतों में धान की पराली जलाना शुरू कर दिया है। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, बल्कि उपजाऊ भूमि को भी नुकसान पहुँच रहा है। सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि खेतों में पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद, कुछ किसान अभी भी पराली जला रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
धान की फसल काटने और उसे हटाने के बाद, किसान अक्सर अपने खेतों में पराली जला देते हैं। इससे हवा में धुआँ फैलता है, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ता है और पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुँचता है। खेतों में पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित होती है, जिससे भविष्य की फसलों की पैदावार पर असर पड़ता है।  
 
  
 
पर्यावरण और मिट्टी को होने वाले नुकसान को देखते हुए, प्रशासन ने किसानों को अपने खेतों में पराली न जलाने की चेतावनी दी है। प्रशासन की चेतावनी के बावजूद, जेवर के थोरा गाँव के किसान धान की कटाई के बाद बची पराली के बड़े-बड़े ढेरों में आग लगाते देखे गए, जिससे शाम होते ही पूरा इलाका अंधेरे में डूब गया। हालांकि, चेतावनियों का पालन न करने वालों पर पराली जलाने के लिए जुर्माना, एफआईआर और अन्य कठोर कार्रवाई की जा सकती है।  
 
  
खेतों में पराली का प्रबंधन कैसे करें  
 
धान की कटाई के बाद, किसानों को अगली फसल के लिए अपने खेतों की सिंचाई करनी चाहिए। खेतों में पानी और नमी बनाए रखने से पराली 15 दिनों के भीतर सड़ जाएगी और प्राकृतिक खाद में बदल जाएगी।  
 
इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होगा, जिससे अगली फसल के लिए कम लागत में अच्छी उपज मिलेगी। हार्वेस्टर से कटाई के बाद, पराली को खेत में जोता जा सकता है। किसान खेतों में पानी देकर और यूरिया का छिड़काव करके भी पराली को सड़ा सकते हैं। |