स्क्रीन टाइम बिगाड़ रहा किशोर स्वास्थ्य, पाठ्यक्रम में \“\“फिजियोथेरेपी\“\“ जोड़ने की सलाह  
 
  
 
  
 
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। उकड़ू या पालथी मारकर बैठना हो या नंगे पांव चलना, ये आदतें बच्चों के शरीर को शुरू से ही लचीला बनाकर रखती थीं। आधुनिक समय में ये आदतें छूटती जा रही हैं। बच्चे हों या किशोर, झुककर घंटों मोबाइल या टैबलेट चला रहे हैं। क्लासरूम में भी छह से सात घंटे बैठना और शारीरिक व्यायाम न के बराबर होने से पाॅस्चर और मस्कुलोस्केलेटल (मांसपेशी और हड्डी) समस्याएं आ रही हैं। हालांकि, फिजियोथेरेपी के माध्यम से इन विकारों को ठीक करने के साथ ही बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। एम्स की टीम ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सहयोग से दिल्ली के दो प्राइवेट स्कूलों के छात्रों पर दो वर्ष तक अध्ययन करने के बाद ये सुझाव दिए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
  
 
एम्स की टीम ने अक्टूबर 2023 से 15-18 वर्ष की आयु के कुल 380 किशोरों के स्वास्थ्य और दिनचर्या पर नजर रखी। अध्ययन में कई तरह की पास्चर और मस्कुलोस्केलेटल समस्याएं मिलीं। इनमें आगे की ओर झुक जाना, गर्दन और कंधे में दर्द, पीठ के निचले हिस्से में तकलीफ, इलियोटिबियल बैंड में जकड़न, सपाट पैर और हैमस्ट्रिंग का कड़ापन प्रमुख रहे। पारंपरिक आदतें मसलन भोजन के लिए उकड़ू या पालथी मारकर बैठना, नंगे पैर चलना, खेल गतिविधि से पहले स्ट्रेचिंग शरीर को लचीला बनाती हैं।  
 
  
 
ऐसे में जिन किशोरों में पाॅस्चर और मस्कुलोस्केलेटल (मांसपेशी और हड्डी) समस्याएं मिलीं, उन्हें 12 सप्ताह तक फिजियोथेरेपी कराई गई। इसके अगले 24 सप्ताह तक सभी की निगरानी की गई। फिजियोथेरेपी से न केवल उनकी मांसपेशियों और हड्डियों से जुड़ी समस्याएं कम हुईं, बल्कि पास्चर में भी सुधार पाया गया।  
 
विशेषज्ञों के मुताबिक, स्कूलों में फिजियोथेरेपी को शामिल करने से किशोरों के स्वास्थ्य में बदलाव लाया जा सकता है। टीम ने खेलों के दौरान उचित प्रशिक्षण सुनिश्चित करने, चोटों से बचाव और जीवनभर स्वस्थ आदतें बनाने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में फिजियोथेरेपी को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने की सलाह दी है।  
 
  
 
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