डेढ़ साल बाद भी विधवा महिला को नहीं मिली आर्थिक सहायता। फोटो जागरण
संवाद सूत्र, वारिसलीगंज (नवादा)। जिय बिनु देह, नदी बिनु वारी, वैसे ही नाथ पुरुष बिनु नारी तुलसी दास रचित रामायण का यह चौपाई मकनपुर गांव के सामाजिक कार्यकर्ता नीरज की विधवा पत्नी उगंती पर सटीक बैठती है।
डेढ़ वर्ष पहले बालू लदे ट्रैक्टर की चपेट में आकर असमय काल के गाल में समा चुके सामाजिक कार्यकर्ता एवं बिहार नाई समाज के प्रखंड इकाई वारिसलीगंज के युवा अध्यक्ष नीरज ठाकुर की मौत के बाद उसके परिवार तंगहाली जीवन जीने को विवश हैं। हंसता-खेलता परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
घर का एकमात्र कमाऊ युवा सैलून चलाकर परिवार का जीविकोपार्जन करता था। पुत्र की मौत से बूढ़ी विधवा मां सहित नीरज की पत्नी के समक्ष बिना पुरुष के नारी की जो दशा होती है, उसी पीड़ा से दोनों सास-बहू को गुजरना पड़ रहा है। अपने मिलनसार स्वभाव के कारण नीरज सभी समुदायों के लोगों के बीच प्रिय था।
उसकी आसमयिक मौत से परिवार के सामने रोजी-रोटी की समस्या है। घर में 76 वर्ष की वृद्धा विधवा मां तथा विधवा हुई युवा पत्नी के पास कमाई का कोई जरिया नहीं है। सैलून बंद हो चुका है।
नाई समाज के मुख्य कार्यकर्ता डॉ. कमलेश शर्मा ने अपने वादे के मुताबिक, अपने निजी स्कूल में नीरज के तीनों बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं, जबकि घटना के डेढ़ वर्ष से अधिक समय बीतने को है, अभी तक नीरज की विधवा को सरकारी स्तर से महज पारिवारिक लाभ के तहत बीडीओ द्वारा 20 हजार रुपये मिले हैं, जबकि आंगनबाड़ी में सहायिका की नौकरी मिलने की आस अभी तक विधवा ने लगा रखी है।
जैसे-तैसे परिवार के दो विधवा सहित छह सदस्यों का भोजन, कपड़ा, दवा एवं अन्य सामानों की जरूरतें पूरी हो रही हैं। पीड़ित विधवा ने जागरण प्रतिनिधि को बताया कि कोई भी आफत-विपत को झेलने में हम दोनों विधवा को काफी परेशानी होती है।
घटना के समय बीडीओ द्वारा आंगनबाड़ी में नौकरी दिलवाने की बात कही गई, जबकि आपदा विभाग से मिलने वाली राशि भी अभी तक नहीं मिल सकी है। तीनों बच्चों की पढ़ाई निशुल्क संस्कार पब्लिक स्कूल के निदेशक कमलेश शर्मा करवा रहे हैं।
मकनपुर ग्रामीण 35 वर्षीय नीरज का जीवन अभाव से शुरू हुआ था। बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया था। जब होश संभाला तब सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ सैलून चला कर जीविकोपार्जन करने लगा। |