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निठारी कांड की तहकीकात: कैसे टूट गई सबूतों की चेन? देश का सबसे बड़ा फोरेंसिक फेलियर

cy520520 2025-11-19 01:10:07 views 85

  

निठारी हत्या कांड: मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली सभी केस में बरी (फोटो- जागरण ग्राफिक्स)



नोएडा...दिल्ली से सटा यह शहर औद्योगिक नगरी और कॉस्मोपोलिटन होने के सपनों के बीच झूल रहा है। जिंदगी यहां लगातार रफ्तार भरती रहती है...हर चौराहे, सड़क पर लोगों का रेला...सब भाग रहे हैं जिंदगी की रेस में...आगे निकलने की होड़ में...पैसा कमाने की होड़ में...परिवार पालने की जद्दोजहद में...सपनों की नगरी में कुछ दुःस्वप्न रेशम में पैबंद की तरह लग गए हैं, जिसमें से एक तो बिल्कुल हालिया केस है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

निठारी कांड...जहां मोहिंदर पंढेर की कोठी के पास नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिले तो दिल्ली से लेकर देहरादून तक...कोलकाता से कानपुर तक सब कांप गए। बच्चों का निर्मम हत्यारा कौन हो सकता है। किसने यह निर्ममता की होगी? पुलिस आती है...जांच होती है...टीवी चैनलों के कैमरे हर बात कैप्चर करने को होड़ करने लगते हैं...पंढेर के साथ उसके नौकर सुरेंदर कोली का नाम सामने आता है...गिरफ्तारी होती है। लोगों को लगता है कि पुलिस ने तेज काम किया। अपराधी पकड़े गए। मामला अदालत पहुंचता है और जैसा कि भारत में सामान्य सा हो चला है, केस घिसटता रहता है।

दोनों आरोपियों को सजा होती है-फांसी की, लेकिन पहले पंढेर और फिर अब कोली दोषमुक्त...तो फिर बड़ा सवाल कि बच्चों को किसने मारा...पुलिस ने जो जांच जोरशोर से शुरू की थी...वही कोर्ट में फुस्स हो जाती है...सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस के साक्ष्यों और जांच पर कड़ी टिप्पणियां की हैं, लेकिन क्या केवल यही काफी है मारे गए बच्चों के माता-पिता के आंसू पोंछने के लिए...क्या कभी कातिल पकड़ा जाएगा या निठारी भी आरुषि कांड बनकर रह जाएगा...

गुरप्रीत चीमा, नई दिल्ली। \“जेल से बाहर आ गया सुरेंद्र कोली..., अरे वही कोली जो निठारी कांड में पंढेर का सहआरोपी था, वो तो 18 साल से ग्रेटर नोएडा की लुक्सर जेल में बंद था।\“ ऐसी चर्चाएं इस समय दिल्ली से सटे नोएडा के उच्चवर्गीय क्षेत्र सेक्टर 31 के पास लगते निठारी गांव की गलियों में हो रही हैं। एक चर्चा ये भी कि मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली दोनों बाहर आ गए तो फिर 2006 में सीरियल मर्डर केस निठारी कांड का दोषी कौन है?

सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच- मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने इस केस में फैसला सुनाते हुए चेन ऑफ कस्टडी और एविडेंस में काफी ज्यादा कमी बताई। SC की बेंच ने फैसला सुनाते वक्त जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए।  

इन तमाम बड़ी बातों को जानने के लिए दैनिक जागरण की टीम ने निठारी गांव पहुंचकर तहकीकात कर इस पूरे केस को गहनता से समझने की कोशिश की।

तहकीकात के एपिसोड- 2 में समझेंगे कि कैसे इतने बड़े भयावह और खौफनाक कांड में सबूतों की श्रृंखला टूटी, 2006 से 2007 के बीच इतना बड़ा फोरेंसिक फेलियर क्यों रहा, साथ ही जानेंगे कि अब देश में DNA, ऑटोप्सी, क्राइम सीन प्रिजर्वेशन कितना बदल चुका?
निठारी कांड का खुलासा कैसे हुआ?

निठारी हत्याकांड का खुलासा 2006 में 29 दिसंबर को हुआ, जब नोएडा के निठारी गांव से बिजनेसमैन मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिले थे। पुलिस को कुछ दिन पहले इस बात की शिकायत मिली कि पिछले 7-8 महीने से इस इलाके के बच्चे गायब हो रहे हैं। हालांकि, इस बात को गंभीरता से नहीं लिया गया। सेक्टर 31 से लगते इस गांव में संभवतः मजदूरी या दिहाड़ी का काम करके यहां के लोग गुजर-बसर करते हैं। जो बच्चे गायब हो रहे थे वे इसी तबके से आते थे।

  

  

निठारी कांड की वो खौफनाक कोठी D-5, जहां 2006 में दर्जनों बच्चों के कंकाल मिले थे। (फोटो- जागरण)

इसी दौरान एक 16 साल की पायल नाम की एक लड़की गायब होती है, पुलिस की कोई कार्रवाई न होने पर उसके पिता कुछ पैसे जुटाकर मामले में वकील करते हैं और पुलिस इस मामले में जांच शुरू कर देती है। जांच के दौरान जब पुलिस सेक्टर 31 में स्थित डी-5 कोठी जोकि पंढेर की कोठी थी, यहां पहंची है। पुलिस ने यहां से करीब 16 मानव खोपड़ियां, कंकाल के अवशेष व कपड़ों की कई कतरन बरामद कीं। इसके बाद कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया जाता है। उस समय सीबीआई की जांच में कई खुलासे हुए और कोली को \“नरभक्षक\“, सीरियल किलर इत्यादि नाम दिए गए थे।
निठारी केस में फोरेंसिक फेलियर क्यों रहा?

सुरेंद्र कोली, जिसे सीबीआई कोर्ट ने 13 बार मौत की सजा सुनाई थी और देश के सबसे खौफनाक मामलों में से एक निठारी हत्याकांड में दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब सभी सजाओं को पलट के रख दिया। कोर्ट ने इस मामले में सख्त टिप्पणी की और फोरेंसिक फेलियर होने की बात कही। इस केस में सबसे बड़ी कड़ी ये रही कि अपराधी की पहचान कनूनी रूप से प्रमाणित ही न हो पाई। कोर्ट ने इस पूरे मामले में जो एक बड़ी बात कही वो ये कि प्रमाण का विकल्प संदेह से परे नहीं हो सकता।

फोरेंसिक फेलियर को लेकर पीठ ने तीन बड़ी बातें कहीं।

  • पहली- जांच एजेंसियों की लापरवाही और देरी ने तथ्यों की खोज प्रक्रिया को कमजोर किया, इससे वो सभी रास्ते बंद हो गए जिससे असली अपराधी की पहचान हो सकती थी।
  • दूसरी- सीबीआई और फोरेंसिक टीम ने घटनास्थल को खोदने से पहले सुरक्षित नहीं किया। यहां तक कि कथित खुलासे को उसी समय दर्ज नहीं किया गया। रिमांड कागजात में जो विवरण थे वो भी विरोधाभासी थे।
  • तीसरी- कई वैज्ञानिक अवसर गंवा दिए गए, डीएनए और पोस्टमॉर्टम मटेरियल अदालत में समय पर जमा नहीं हुआ। साथ ही घर की तलाशी में भी कोई ऐसा सबूत नहीं मिल पाया, जिसे फॉरेंसिक तौर पर कथित घटनाओं जोड़ा जा सके।
  
2006 में गायब हुई ज्योति के पिता झब्बू लाल, पीड़ित (फोटो- जागरण

किसी भी क्राइम सीन में फोरेंसिक जांच कैसे अहम होती है?


फोरेंसिक जांच किसी भी अपराध स्थल की न सिर्फ सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है बल्कि कई मामलों में न्याय का आधार बनती है।

देवराज सिंह, सेवानिवृत्त फोरेंसिक एक्सपर्ट बताते हैं-

आपराधिक मामलों में कई बार ऐसा देखा गया है कि गवाह अपने बयानों से पलट जाते हैं, ऐसी स्थिति में फोरेंसिक जांच रिपोर्ट ही मामले को कन्विक्शन तक पहुंचाती है। दरअसल, (DNA, फिंगरप्रिंट, बलिस्टिक, ब्लड स्पैटर, टॉक्सिकोलॉजी आदि) पूरी तरह वैज्ञानिक और ऑब्जेक्टिव होते हैं, जिन्हें कोर्ट में चुनौती देना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा कई बार फोरेंसिक साक्ष्य गलत संदिग्ध को बाहर कर देते हैं और निर्दोष व्यक्ति को फंसने से बचाते हैं।
DNA, ऑटोप्सी, क्राइम सीन प्रिजर्वेशन में अब पिछले 20 वर्षों में कितना बदलाव हुआ?

पिछले 20 साल में टेक्नोलॉजी के मामले में काफी बदलाव हुए हैं। सेवानिवृत्त फोरेंसिक एक्सपर्ट देवराज सिंह बताते हैं कि डीएनए टेस्ट पिछले 20 साल के भीतर देश में आया और दिल्ली-नोएडा में इसे आए हुए करीब 10 साल हुए हैं। लेकिन अब तकनीक आगे बढ़ी और जांच मशीनों द्वारा कम समय में होती हैं। यदि किसी मामले में कोर्ट को गवाह नहीं मिल रहा है तो वहां फोरेंसिक रिपोर्ट ही अपराध को साबित करने में समक्ष है यानी की आरोपी गुनाहगार है या नहीं फोरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर तय किया जाता है।

पहले वीडियो को कोर्ट साक्ष्य नहीं मानती थी लेकिन आज के समय में सीसीटीवी आने के बाद वीडियो भी कोर्ट में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत होते हैं और कोर्ट इनका संज्ञान लेती है। फुट प्रिंट, फिंगर प्रिंट, ऑटोप्सी बेलेस्टिक रिपोर्ट, डीएनए समेत अन्य जांच रिपोर्ट कोर्ट में मान्य होती हैं और ट्रायल में मददगार साबित होती हैं।
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