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जीवन जीने की नई राह दिखाते हैं गीता के ये खास श्लोक, मानसिक तनाव से भी मिलता है छुटकारा

LHC0088 2025-11-13 01:10:40 views 46

  

गीता जयंती का धार्मिक महत्व



धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल अगहन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर गीता जयंती मनाई जाती है। इस साल 01 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती है। आसान शब्दों में कहें तो मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती मनाई जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  

सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में अगहन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन भगवान कृष्ण ने अपने परम शिष्य अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता का ज्ञान दिया था। इस उपदेश के चलते धनुर्धर अर्जुन के विचार में बदलाव आया था। इसके बाद अर्जुन ने युद्ध में हिस्सा लिया था।

पवित्र ग्रंथ \“गीता\“ जीवन जीने का मुख्य आधार है। व्यक्ति अपने जीवन में गीता को आत्मसात कर सफल हो सकता है। इस शास्त्र को पढ़ने से व्यक्ति को मानसिक तनाव से भी मुक्ति मिलती है। अगर आप भी अपने जीवन में विषम परिस्थिति से गुजर रहे हैं, तो गीता का अध्ययन अवश्य करें। गीता के ये श्लोक जीवन जीने की नई राह दिखाते हैं। आइए जानते हैं-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।

भगवान श्रीकृष्ण पवित्र ग्रंथ गीता के दूसरे अध्याय के 47 वें श्लोक में अपने परम शिष्य अर्जुन से कहते हैं-हे कौंतेय! तुम कर्म करने के भागी हो, इसके लिए तुम्हें केवल कर्म करना चाहिए। फल की चिंता के बिना तुम हमेशा कर्म करो। श्रम के अनुरूप तुम्हें अवश्य ही फल मिलेगा। इसके लिए व्यक्ति विशेष को अपने जीवन में कर्मशील रहना चाहिए।

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

भगवान श्रीकृष्ण गीता के तीसरे अध्याय के 63 वें श्लोक में कहते हैं कि व्यक्ति को क्रोध करने से बचना चाहिए। क्रोध करने से व्यक्ति सही फैसले लेने में असफल रहता है। साथ ही स्मरण शक्ति भी क्षीण यानी कमजोर हो जाती है। इसके लिए विषम परिस्थिति में व्यक्ति को क्रोध करने से बचना चाहिए। क्रोध करने से व्यक्ति स्वयं का समय और धन नष्ट करता है।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

भगवान श्रीकृष्ण गीता के दूसरे अध्याय के 23वें श्लोक में धनुर्धर अर्जुन से कहते हैं- हे पार्थ! श्रेष्ठ व्यक्ति जो कर्म करता है, उसका लोग अनुसरण करते हैं। इसके लिए व्यक्ति को हर परिस्थिति में अच्छे कर्म करने चाहिए। इससे आदर्श प्रस्तुत होता है।

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

बांके बिहारी कृष्ण कन्हैया गीता उपदेश में अर्जुन से कहते हैं- ईश्वर भक्ति, योग और साधन करने वाले मनुष्य अपनी इन्द्रियों पर संयम रख ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। ऐसे लोग जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति करते हैं। इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य को परम शांति मिलती है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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