आदिवासी संगठनों संग तकरार नहीं चाहते कुड़मी संगठन
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड, बंगाल और ओडिशा में फैले कुड़मी समुदाय की लंबे समय से चली आ रही आदिवासी दर्जा की मांग अब एक नई मोड़ ले रही है। कुड़मी संगठनों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे आदिवासी संगठनों के साथ किसी भी तरह का टकराव नहीं चाहते। ऐतिहासिक दावों पर आधारित उनकी मांग को आगे बढ़ाने के लिए वे समन्वय की राह तलाश रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
प्रमुख नेता मंथन में जुटे हैं, ताकि दोनों समुदायों के बीच सद्भाव बना रहे।कुड़मी संगठनों का आंदोलन 1950 से पहले के दर्जे को बहाल करने का है, जब उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा प्राप्त था।
हाल के दिनों में राज्य की राजधानी रांची समेत हजारीबाग, गिरिडीह, जमशेदपुर, बोकारो समेत अन्य स्थानों पर रेल रोको प्रदर्शन हुए, जहां ट्रेनें रुकीं और यात्रियों को परेशानी हुई, लेकिन अब चिंता यह है कि आदिवासी संगठनों का विरोध समानांतर टकराव पैदा कर सकता है।prayagraj-crime,UPSESSB Prayagraj,education board recruitment,fake appointment scam,vigilance investigation,Uttar Pradesh education news,DIOS fraud,secondary education board,Up-Top,uttar-pradesh-top,Prayagraj News,Prayagraj Latest News,Prayagraj News in Hindi,Prayagraj Samachar,प्रयागराज समाचार,Uttar Pradesh news
कुड़मी संगठनों का कहना है कि उनका संघर्ष ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित है, न कि किसी के हक पर डाका डालने का। संगठन आगे की रणनीति पर मंथन कर रहे हैं। 20 सितंबर को शुरू हुए रेल रोको आंदोलन ने 55 से अधिक ट्रेनों को प्रभावित किया था।
आदिवासी संगठनों से समन्वय का प्रयास
कुड़मी और आदिवासी समुदाय सदियों से मिलजुल कर रहते आए हैं। कुड़मी संगठनों की तरफ से आदिवासी संगठनों से संवाद की कोशिश तेज हुई है। उनका संदेश साफ है कि राजनीतिक मांग से दोनों समुदायों के बीच खटास नहीं बढ़नी चाहिए। किसी का हक मारना हमारा उद्देश्य नहीं।
झारखंड सरकार ने 2004 में कुड़मियों को एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन आदिवासी संगठन इसे राजनीतिक साजिश बता रहे हैं। कुड़मी नेता शीतल ओहदार का कहना है कि हम शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे हैं। दोनों समुदायों का भाईचारा हमारी ताकत है।
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