पति की शहादत के बाद पहनी वर्दी, बेटियों के लिए बनीं प्रेरणा मेजर प्रिया सेमवाल।
सुकांत ममगाईं, जागरण देहरादून। जिंदगी ने जब सबसे बड़ा घाव दिया, तब उन्होंने हार मानने के बजाय हिम्मत को हथियार बनाया। पति की शहादत का दर्द उन्हें तोड़ नहीं पाया, बल्कि उसी दर्द ने उन्हें लोहे-सा मजबूत बना दिया। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की बेटी मेजर प्रिया सेमवाल की। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मेजर प्रिया सेमवाल भारतीय सेना की वह प्रेरणादायक महिला अधिकारी हैं, जिन्होंने जमीन से लेकर समंदर और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों तक भारत का नाम रोशन किया है। वह देश की पहली ऐसी वीर नारी हैं, जिन्हें सेना में स्थायी कमीशन प्राप्त हुआ। यही नहीं वह लेबनान-इजराइल की चरम युद्ध स्थिति में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का भी हिस्सा रही हैं।
पति की शहादत ने दिया जीवन को नया मोड़
धोरण खास निवासी प्रिया बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहीं। उन्होंने गणित में एमएससी, बीएड और बाद में बीटेक की पढ़ाई की। वर्ष 2006 में उनकी शादी नायक अमित शर्मा से हुई। उनकी एक बेटी ख्वाहिश भी है। साल 2012 में अरुणाचल प्रदेश में आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान उनके पति शहीद हो गए।
यह क्षण किसी भी महिला के लिए तोड़ देने वाला हो सकता था, लेकिन प्रिया ने दुख को अपनी ताकत में बदलने का फैसला किया। उन्होंने ठान लिया कि जिस वर्दी के लिए उनके पति ने प्राण न्यौछावर किए, उसे वे खुद पहनेंगी।
कठिन प्रशिक्षण और चयन प्रक्रिया के बाद 2014 में प्रिया ने चैन्नई स्थित आफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) से पास होकर भारतीय सेना की इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग (ईएमई) कोर में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त किया। वे भारत की पहली महिला बनीं जो किसी शहीद नान-कमिशन्ड आफिसर की पत्नी होते हुए सेना में अधिकारी बनीं। यह उपलब्धि उनके साहस और निश्चय की मिसाल है।child marriage Assam,Assam child marriage decline,child marriage statistics India,Himanta Biswa Sarma,Tipping Point to Zero report,India Child Protection,Just Rights for Children,UN General Assembly,child marriage reduction
समंदर पर साहस की परीक्षा
मेजर प्रिया ने साबित किया कि उनकी वीरता सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं। वर्ष 2022 में वे भारतीय सेना की पहली आल-वूमेन सेलबोट एक्सपीडिशन टीम का हिस्सा बनीं।
टीम ने भारतीय नौसेना की नौका आइएनएसवी बुलबुल पर सवार होकर गोवा, कारवार, मुंबई और कोच्चि तक लगभग 900 नाटिकल मील (1,667 किलोमीटर) की कठिन समुद्री यात्रा पूरी की। इस दौरान उन्होंने टीम का नेतृत्व, सुरक्षा और प्रबंधन भी संभाला और साबित किया कि महिलाएं हर चुनौती का सामना कर सकती हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का रहीं हिस्सा
मेजर प्रिया का साहस अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा। वे लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का हिस्सा रहीं, जहां उन्होंने इजरायल-लेबनान सीमा की तनावपूर्ण स्थिति में शांति स्थापना में योगदान दिया। उनका कार्य भारतीय महिला अधिकारियों की क्षमता और नेतृत्व को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करने वाला रहा।
भारतीय सेना में लंबे समय तक महिला अफसरों को केवल शार्ट सर्विस कमीशन तक ही सीमित रखा गया था। मेजर प्रिया सेमवाल पहली वीर नारी हैं, जिन्हें स्थायी कमीशन प्राप्त हुआ। उत्तराखंड की पहली महिला अफसर होने का गौरव भी उन्हें हासिल है।
देश की बेटियों के लिए प्रेरणा
मेजर प्रिया का जीवन साहस, संघर्ष और उपलब्धियों से भरा हुआ है। उन्होंने यह साबित किया कि बेटियां किसी भी कठिनाई से हार नहीं मानतीं। एक मां, पत्नी और सैनिक के रूप में उन्होंने हर भूमिका को पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाया।
आज वे उत्तराखंड और पूरे भारत की बेटियों के लिए प्रेरणा की मिसाल हैं। उनकी कहानी हर उस परिवार और हर उस बेटी के लिए उदाहरण है, जो बड़े सपने देखने व उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखती है। इसी को देखते हुए उन्हें राज्य के प्रतिष्ठित तीलू रौतेली सम्मान से नवाजा जा चुका है।
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