Maa Durga Puja, Durga Ashtami 2025: कब है दुर्गा अष्टमी? नोट करें शुभ मुहूर्त; आज महासप्तमी पर करें मां कालरात्रि की पूजा_deltin51

deltin33 2025-9-29 12:06:14 views 1261
  Maa Durga Puja, Durga Ashtami 2025: दुर्गा अष्टमी शुभ मुहूर्त सोमवार दोपहर 12:37 बजे से मंगलवार दोपहर 1:54 बजे तक।





संवाद सहयोगी, भागलपुर। Maa Durga Puja, Durga Ashtami 2025 शारदीय नवरात्र की छटा से पूरा शहर आस्था और भक्ति में सराबोर हो उठा है। देवी मंदिरों में सुबह-शाम दुर्गासप्तशती के पाठ, शंख-घंटों की गूंज और भजन-कीर्तन से वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया है। हर मोहल्ले, हर पूजा मंडप और लगभग हर घर में देवी गीतों की स्वर लहरियां गूंज रही हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

रविवार को छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की गई, वहीं सोमवार को मां कालरात्रि की पूजा होगी। तिलकामांझी महावीर मंदिर के पंडित आनंद झा के अनुसार कालरात्रि की पूजा से भक्तों को हर भय से मुक्ति मिलती है और जीवन से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।


आज खुलेंगे मां दुर्गा के पट, मंदिरों में उमड़ेगी भीड़

सोमवार को शहर के दुर्गामंदिरों के पट खुलते ही दर्शनार्थियों की लंबी कतार लगने लगेगी। कालीबाड़ी मानिक सरकार, मशाकचक दुर्गाबाड़ी, बरारी दुर्गामंदिर, आदमपुर दुर्गामंदिर, मोहद्दीनगर, मिरजानहाट क्लबगंज, मुंदीचक गढ़ैया, मंदरोजा, लहेरीटोला और मानिकपुर समेत शहर के 51 से अधिक स्थानों पर देवी दुर्गा के भव्य पट खोल दिए जाएंगे।


षष्ठी पर बंगाली समाज ने रखा विशेष व्रत

कालीबाड़ी पूजा कमेटी के बिलास कुमार बागची ने बताया कि रविवार को बंगाली समाज की महिलाओं ने संतान की दीर्घायु के लिए परंपरागत षष्ठी व्रत किया। सोमवार को महासप्तमी पर केला बहू स्नान होगा। इसमें केला का पौधा, अपराजिता डाल, बेल की लकड़ी, अशोक की डाल और धान का गुच्छा सजाकर उसे साड़ी-सिंदूर पहनाया जाता है और गाजे-बाजे के साथ गंगा स्नान कराया जाता है। तत्पश्चात उसे गणेश जी के समीप रखा जाता है। बंगाली समाज इसे गणेश की पत्नी का स्वरूप मानकर पूजा किया जाता है।


महाअष्टमी, महानवमी और महादशमी का शुभ मुहूर्त, पूजा और बलि की परंपरा (Durga Ashtami 2025 kab hai)

मिथिला पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि सोमवार दोपहर 12:37 बजे प्रारंभ होकर मंगलवार दोपहर 1:54 बजे तक रहेगी। महाष्टमी का व्रत मंगलवार को किया जायेगा। नवमी बलि बुधवार 1 अक्टूबर को की जाएगी। नवरात्रि का समापन भी इसी दिन पूजन हवन दोपहर 2:46 बजे तक होगा। विजया दशमी गुरुवार 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी।


दुर्गा पूजा में सांस्कृतिक उत्सव भी चरम पर

मोहद्दीनगर में डांडिया नृत्य कार्यक्रम आयोजित किया गया, वहीं मशाकचक दुर्गाबाड़ी में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में सैकड़ों बच्चों ने भाग लिया। शाम होते ही गजल-भजन संध्या से पूरा परिसर गूंज उठा। बूढ़ानाथ मंदिर में शहनाई वादन, कई दुर्गामंदिरों में संध्या आरती और महिला समूहों द्वारा सामूहिक आरती वंदन हो रहा है।


पालकी में सवार होकर कोला बो के रूप में पधारेंगी मां दुर्गा

बंगाली परिवार अपनी अनूठी देवी अराधना के लिए जाना जाता है। सातवीं को महाशय ड्योढ़ी एवं सुजापुर दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा का आगमन होने जा रहा है। वहीं रविवार को दोनों जगह में मेढ़ पर मेढ़ चढ़ाया गया। इसके बाद देर शाम से पूजा पाठ आरंभ कर दिया गया है। महाशय परिवार में मां दुर्गा का आगमन पालकी में होने वाला है। मां को नव पत्रिका के रूप में पालकी पर बैठा कर ढ़ोल शंख की ध्वनि के साथ लाया जाएगा।rajouri-crime,Rajouri news, illegal wood smuggling, Rajouri police action, Sunderbani area, timber smuggling case, truck seized, arrests in Rajouri,FIR registered 2025,Jammu and Kashmir news   



देवाशीष बनर्जी कहते है नव पत्रिका सोमवार सुबह मां का प्रतिक मान कर मंदिर परिसर में लाया जाएगा। मान, अशाेक, आम का पत्ता, धान की बाली , केला का छाल, बेल, तेल , तिल, द्रव्य को मिला कर नवपत्रिका बनाया जाएगा। जिसके बाद चंपा नदी के बंगाली घाट पर मंत्र उच्चारण के साथ देवी का इसमें आहवान किया जाएगा। पूजा पाठ के बाद इसे पालकी में मंदिर लाया जाएगा।

पूरे रास्ते भक्त अपने अपने घर के आगे कलश रखेंगे और शंख बजा कर देवी का स्वागत करेंगे। मंदिर परिसर में आने के बाद मां का द्वार पूजा होगा। फिर इसे मंदिर में स्थापित कर दिया जाएगा। वहीं मां के इस रूप को कोला बो के रूप में जाना जाता है। वहीं सुजापुर दुर्गा मंदिर में भी देवी को वैदिक मंत्रोउच्चाण के साथ मंदिर में लाया जाएगा। जिसके बाद देवी के आर्शीवाद के रूप में कौड़ी उछाली जाएगी।  


नीलकंठ उड़ाने की परंपरा

महाशय परिवार के अरविंद घोष कहते हैं कि दशमी के दिन नीलकंठ पक्षी को मंदिर परिसर से उड़ाने की प्रथा थी। इसके लिए हमारा परिवार महीनों आसपास के जंगलों में भटकता रहता था। एक-एक कर आधा दर्जन से ज्यादा पक्षी हमारे पूर्वज पकड़ कर लाते थे। दस दिन तक पक्षियों को पाला जाता था और फिर दशमी के दिन उन्हें उड़ाया जाता था। मान्यता है कि दशमी के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ माना जाता है। ताकि सभी लोग इसे देख सकें, यह परंपरा थी।



जब सरकार ने पक्षियों को कैद करने पर रोक लगा दी। इस नियम का पालन हमने किया। परिणामस्वरूप नीलकंठ को कैद करने की परंपरा बंद कर दी गई है। वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता देवाशीष बनर्जी कहते हैं कि अब बली प्रथा भी यहां बंद कर दी गई है। पहले यहाँ बली देने के लिए लोगों की कतार लगती थी। अब पशु की बली के बदले यहां कद्दू की बली दी जाती है। इसके पीछे भी कानून है। हालांकि, पूजा में मुख्य फोकस वैदिक रीति-रिवाज से करने पर ही रहता है।  


मां दुर्गा की प्रतिमा को वेदी पर किया गया स्थापित

कहलगांव में बंग्ला पद्धति से पूजित होने वाली मां दुर्गा की प्रतिमा को देर रात बेदी पर स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा पूजन की गई।अन्य जगहों की प्रतिमा सोमवार के सुबह बेदी पर स्थापित की जाएगी।दुर्गा मंदिरों और घरों में हो रही दुर्गा सप्तशती पाठ से शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में भक्ति का माहौल बना हुआ है। रविवार को माता के षष्टम स्वरूप कात्यायनी की पूजा-अर्चना की। सुबह शाम मंदिरों में पूजा एवं आरती करने के लिए भीड़ लग रही है। कहलगांव शहर के पूरब बंगाली टोला और किला दुर्गा स्थान में बेदी पर स्थापना के साथ मां दुर्गा के प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा पूजन संपन्न हुआ।



अनादीपुर गांव के मंदिर में सोमवार की सुबह प्रतिमा को बेदी पर स्थापित की जाएगी ।सभी जगहों में मेला सज चुका है।मेला में भीड़ भी लगने लगी है।कहलगांव नगर में काजीपुरा,राजघाट, नाथलोक,किला दुर्गा स्थान,पूरब टोला में ग्रामीण इलाकों में अनादीपुर,बटेश्वर स्थान,नंदगोला, परशुरामचक,भोला टोला, रानीदियारा पुनर्वास स्थल, बरोहिया ,शिवनारायणपुर,मथुरापुर संथाली टोला,सौर, धनौरा,श्यामपुर, भद्रेश्वर स्थान, केरिया,टिकलुगंज,जागेश्वरपुर,नंदलालपुर,लक्ष्मीपुर बभनियां,त्रिमोहन आदि जगहों में प्रतिमा स्थापित की जा रही है।  

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