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दिल्ली की रामलीलाओं में झलकती है पीढ़ियों की संस्कृति, 100 साल से जारी परंपराओं का संगम_deltin51

Chikheang 2025-9-29 04:36:18 views 1135

  परंपराओं की थाती पर पीढ़ियों का समर्पण पुरानी दिल्ली की रामलीलाएं





नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। दिल्ली को देश में रामलीलाओं की राजधानी बनाने में परंपराओं को जीते पीढ़ियों का महत्वपूर्ण योगदान है। 70 से 100 वर्ष पुरानी रामलीलाओं के मंचन में आरंभ से अब तक चार से पांच पीढ़ियां जुड़ी हुई हैं। इसके साथ ही परंपराएं, मान्यताएं तथा समर्पण भी वैसा ही है। रामलीलाओं का माहौल ऐसा कि जिसे जीने के लिए दूर से पुराने लोग चांदनी चौक खिंचे चले आते हैं। यहीं मिजाज बाकि, दुनियां को भी पसंद आती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें


अस्त्र-शस्त्र का भी परंपरागत प्रयोग

किसी रामलीला में दशकों बाद भी आज भी बग्घी पर राम दरबार की सवारी निकलती है तो 70 वर्ष पुराने सोने चांदी के आभूषण, सिंहासन और अस्त्र-शस्त्र का अब भी परंपरागत तरीके से प्रयोग होता है। उसी तरह प्याऊ (निजी बैठने का स्थल) में परिवार, दोस्तों के साथ चांदनी चौक के जायकों के साथ रामलीला देखी जाती है तो विवाह के रिश्ते भी तय किए जाते हैं। समय के साथ जरूर रामलीलाओं का मंचन आधुनिक और भव्य हुआ है, लेकिन परंपराएं और पीढ़ियों का नाता वैसे ही बना हुआ है।


पीढ़ियों से जुड़ाव की कहानियां

अब बात लालकिला मैदान में मंचित होने वाली श्रीधार्मिक लीला कमेटी की, जिसके मंचन का यह 102वां साल है। इसमें श्रीधर गुप्ता बाड़ा मंत्री हैं, जबकि, उनके पिता धीरजधर गुप्ता महासचिव। पीढ़ियों का नाता यहीं तक नहीं है। श्रीधर गुप्ता के दादा बंशीधर गुप्ता भी आयोजन समिति से जुड़े रहे जबकि बंशीधर गुप्ता के पिता परमेश्वरी दास ने जीवन पर्यंत रामलीला की सेवा की। वैसे, इस रामलीला के संस्थापक सदस्यों में परमेश्वरी दास के पिता लाला पद्मचंद गुप्ता भी रहे हैं। तो रामलीलाओं के आंगन में ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो पीढ़ियों से जुड़ाव की कहानियां बड़े चाव से बताते हैं।


आदरपूर्वक आमंत्रण बांटा जाता

श्री धार्मिक के प्रवक्ता रवि जैन बताते हैं कि यह केवल मंचन और मनोरंजन नहीं है, बल्कि अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़े रहना है। अच्छी बात है कि इसे उसी तरह से निभाई जा रही है। आज भी रामलीलाओं के आयोजन के लिए आरंभकाल से आज तक दुकान-दुकान सहयोग राशि ली जाती है। आज प्रायोजक के दौर में साथ ही आदरपूर्वक आमंत्रण बांटा जाता है।nainital-common-man-issues,Nainital news,Indian Army Lieutenant,soldiers widow,CDS exam,military training,Neeraj Bhandari,Indian army,officer training academy,motivation,Indian army officer,uttarakhand news   
50 वर्ष से निकल रहा बग्घी पर रामदरबार

श्रीधार्मिक रामलीला में करीब 50 वर्ष पुरानी आलिशान बग्घी है, जिसपर प्रभु राम, माता सीता, भाई लक्ष्मण व भक्त हनुमान को बैठाकर रामलीला परिसर में घुमाया जाता है। ऐसी ही बग्घी नवश्री धार्मिक लीला कमेटी में भी है, जिसे खिंचने के लिए प्रतिदिन 10-12 लोग लगते हैं। इसे सालभर संभालकर रखा जाता है। रामलीला शुरू होने के दो माह पहले उसकी मरम्मत और रंगरोगन होती है। नवश्री धार्मिक के आयोजन से 40 वर्ष से जुड़े उप प्रधान सुशील गोयल बताते हैं कि इस बग्घी की मरम्मत के लिए प्रत्येक वर्ष मेरठ से विशेष तौर पर कारीगर बुलाए जाते हैं। वह कहते हैं कि आज प्रायोजक के दौर में आवश्यक नहीं है कि पुरानी दिल्ली के लोगाें से आर्थिक सहयोग लिया जाए। लेकिन यह भी पीढ़ियों से चली आ रही है। यह जुड़ाव खास है।


छह किलो चांदी से बना सिंहासन

रामलीला में असली सोने के पानी चढ़े चांदी के मुकुटों तथा चांदी के सिंहासन का इस्तेमाल मंचन में किया जाता है। एक मुकुट का वजन ढाई किलो का है। जबकि, एक-एक सिंहासन में छह किलो चांदी प्रयुक्त किया गया है। इसी तरह, हथियार और वस्त्र भी असली है। न किराए पर लिया जाता है, न खरीदा जाता है, बल्कि मरम्मत कराकर दशकों से इस्तेमाल हो रहा है।
ठहाकों और आत्मीयता से भरे होते हैं प्याऊ

श्रीधार्मिक लीला में चांदनी चौक के व्यापारी वर्ग का जुड़ाव खास है। इसके लिए प्याऊ विशिष्ट हो जाता है। प्याऊ एक प्रकार का वातानुकूलित अस्थाई परिसर है, जिसमें बैठने के लिए कमरे, निजी चाट पकौड़ी के स्टाल और छत होती है, जिसपर चांदनी चौक के स्वाद के साथ रामलीला का आनन्द उठाना मौके को खास बनाता है। इसके लिए बकायदा रामलीला समिति से जमीन किराये पर ली जाती है तथा उसपर लाखों रुपये खर्च कर अस्थाई ढांचा खड़ा किया जाता है। विशेष बात कि इसमें दिल्ली के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों तथा विदेशी मेहमान बुलाए जाते हैं। उनका आथित्य होता है। विवाह योग्य युवक-युवतियों तथा परिवार का परिचय भी किया जाता है। इससे नई रिश्तों की शुरुआत होती है।


पुरानी दिल्ली के व्यंजनों का स्वाद अद्भूत

कई परिवार रामलीला इसलिए भी आते हैं कि यहां प्रभु राम के संदेशों को आत्मसात करने के साथ पुरानी दिल्ली के दशकों पुराने जायकों का स्वाद मिल जाता है। जो वैसे ही हैं, थोड़ा चटख मसालों के साथ चटपटा स्वाद तो मीठा भी दिल को तर करने वाला।

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