कानपुर के प्रसिद्ध मां दुर्गा के देवी मंदिर।
जागरण संवाददाता, कानपुर। Kanpur News: कानपुर में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है जिनकी मान्यता दूर-दूर तक फैली है। यहां पर नवरात्र में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। किसी की सूनी झोली भरती है तो किसी के रोग दूर हो जाते हैं। हर एक मंदिर में विराजमान माता की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं। बारा देवी मंदिर में 12 बहनों के साथ मां विराजमान हैं तो कुष्मांडा माता जमीन से निकली हैं। जानें कानपुर के ऐसे ही प्रसिद्ध मंदिरों और वहां पर विराजमान मां के बारे में....। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
बारा देवी मंदिर
बारा देवी मंदिर में 12 देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं। इसे सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। इसकी स्थापना के संबंध में कई तरह की किवदंतियां प्रचलित हैं। इसमें 12 बहनों द्वारा तपोबल से देवी रूप धारण करने की एक कहानी लोकप्रिय है। मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है। खासकर नवरात्र में भक्त मन्नतें मांगते हैं और मनोकामना पूरी होने पर चुनरी खोलने के लिए पहुंचते हैं।
इतिहास
यह मंदिर लगभग 1700 वर्ष पुराना बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पिता से अनबन के बाद 12 बहनें घर से निकलकर यहां आकर रहने लगी थीं। बाद में अपने तपोबल से सभी पत्थर की बन गई थीं। तब से यह मंदिर पूजा जाने लगा। वहीं, उनके श्राप से उनके पिता भी पत्थर के हो गए थे। इसी मंदिर के चलते इलाके का नाम भी बारा देवी पड़ गया।
मान्यता
मंदिर की सबसे खास बात यह है कि भक्त अपनी मनोकामना मानकर यहां चुनरी बांधते हैं। मनोकामना पूरी होने के बाद उसे खोलने के लिए भी पहुंचते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त मां का शृंगार भी कराते हैं। यूं तो पूरे वर्ष यहां भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन नवरात्र में भक्तों की संख्या काफी बढ़ जाती है।
मंदिर जाने का मार्ग
मंदिर जाने के लिए चार प्रमुख द्वार हैं, जो पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के नाम से जाने जाते हैं। यहां दर्शन के लिए कानपुर देहात, हमीरपुर, औरैया, झांसी, फतेहपुर, उन्नाव समेत आसपास के जिलों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। सेंट्रल रेलवे स्टेशन से मंदिर आने के लिए आटो, ई-रिक्शा और बस से बारा देवी चौराहा पहुंचना होगा। वहां से चंद कदम की दूरी पर मां का मंदिर है।
यहां आने वाले हर भक्त की मां मनोकामना पूरी करती हैं। खासकर ऐसी महिलाएं, जिन्हें संतान नहीं होती है, वह यहां आकर मां से मन्नत मांगती हैं। नवरात्र के मौके पर यहां बड़ी संख्या में लोग बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए भी आते हैं।
-रूपम शर्मा, अध्यक्ष बारादेवी मंदिर ट्रस्ट
पंथा माता मंदिर बिठूर
पंथा देवी का मंदिर का इतिहास सतयुग काल से है। यहां भक्त चुनरी और नारियल का भोग लगाते हैं। आसपास क्षेत्र या कस्बे में किसी के यहां कोई शुभ कार्य शादी, उपनयन व मुंडन संस्कार होते हैं तो सबसे पहले निमंत्रण पंथा माता को दिया जाता है। ऐसा करने से दांपत्य जीवन सुखी रहता है। घर में यदि कोई बहू आती है तो सबसे पहले मां पंथा देवी के दर्शन कराए जाते हैं। इसके बाद में गृह प्रवेश होता है।
इतिहास
पंथा देवी का मंदिर मैनावती मार्ग बिठूर के मैनावती नगर में स्थित है। मंदिर में भक्तों की असीम अनुकंपा है। इस देवी को पथिकेश्वरी देवी के रूप में जाना जाता था। मां की पूजा करने से जिंदगी के पथ में कोई कभी रुकावट नहीं आती है। बाद में भक्त इन्हे पंथा देवी कहने लगे। इस मंदिर में बाजीराव पेशवा द्वितीय भी पूजा करते थे। बिठूर वासी देवी मां को कुल देवी के रूप में मानते है। शादी के पहले मातृ पूजन की शुरुआत यहीं से करते हैं।
यह है मान्यता
पंथा मां को एक गुड़हल का पुष्प, नारियल व चुनरी चढ़ाने से मां सभी की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यह आदि शक्ति पीठ है। क्षेत्र में माता के बिना निमंत्रण दिए कोई कार्य नहीं किया जाता है। शिवराजपुर के बंदी माता घाट से जल भरकर मां के दरबार में जल अर्पित किया जाता है। मंदिर के पास खोखो माता की मूर्ति है। इनसे स्वास्थ्य लाभ की कामना की जाती है। बीमारी ठीक होने के बाद सवा किलो अनाज मां को चढ़ाया जाता है।
मंदिर जाने का मार्ग
उन्नाव, कन्नौज, लखनऊ, बिल्हौर से आने वाले भक्त राम धाम चौराहे से 500 मीटर की दूरी चलकर यहां पहुंच सकते हैं। कानपुर व कल्याणपुर से आने वाले भक्त मैनावती मार्ग से बिठूर आ सकते हैं।
मां के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से मां का पूजन दर्शन करते हैं, मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। भक्तों ने मां के दरबार का सुंदरीकरण कराया है। यहां नवरात्र पर विशेष पूजन होता है।
-रामशंकर सैनी, पुजारी
श्री आदि शक्ति दुर्गा माता मंदिर
शक्ति स्वरूपा श्री आदिशक्ति दुर्गा माता का मंदिर शारदा नगर में स्थित है। मंदिर में मां श्री आदिशक्ति दुर्गा के साथ राधा कृष्ण, राम दरबार, भीम शंकर महादेव, दास हनुमान, शालिग्राम और शनि देव भगवान विराजमान हैं। मंदिर में कीर्तन भजन व हवन पूजन नियमित रूप से चलता रहता है। नवरात्र में मां के दर्शन करने के लिए यहां भक्तों की भीड़ लगती है। कहा जाता है कि मां हर किसी की मनोकामना पूरी करती हैं।Varanasi News,Varanasi Latest News,Varanasi News in Hindi,Varanasi Samachar,GST Utsav,Varanasi traders,Swadeshi goods,Vocal for Local,Varuna Kshetra Vyapar Mandal,Somnath Vishwakarma,GST छूट,भारतीय अर्थव्यवस्था,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,स्वदेशी वस्तुएं,GST Utsav,Varanasi traders,Swadeshi goods,Vocal for Local,Varuna Kshetra Vyapar Mandal,Somnath Vishwakarma,GST छूट,भारतीय अर्थव्यवस्था,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,स्वदेशी वस्तुएं, वाराणसी टाप न्यूज, Varanasi top news, Varanasi latest news, Varanasi
इतिहास
मंदिर के पुजारी नरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि शारदा नगर क्षेत्र में 33 वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण कराया गया था। मंदिर में एक ही प्रांगण में सभी देवी देवता विराजमान है। राजस्थानी शिल्प कला में बना यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर की मूर्तियां संगमरमर से बनी हुई है जो विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
ये है मान्यता
मां श्री आदिशक्ति अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। मां के समक्ष श्रीफल व चुनरी अर्पित कर मांगी गई हर मुराद पूर्ण होती है और मां धन-धान्य से अपने भक्तों की झोली भरती है। सच्चे मन से जो भी माता की पूजा करता है उसके मनोरथ अवश्य सिद्ध होते हैं। क्षेत्र में किसी के यहां विवाह, मुंडन व कोई शुभ कार्य होता तो सर्वप्रथम वह मां को निमंत्रण अर्पित करता है और मां उसका कार्य सफल बनाती हैं।
मंदिर जाने का मार्ग
बिल्हौर से कल्याणपुर से आने वाले भक्त गुरुदेव चौराहा से शारदा नगर पहुंचकर यहां विराजमान मां श्री आदिशक्ति दुर्गा का दर्शन करते हैं। वहीं रामदेवी की ओर से आने वाले भक्त गुरुदेव चौराहा से मां के दरबार पहुंच सकते हैं। गुरुदेव चौराहा से मां आदिशक्ति दुर्गा के दरबार तक पहुंचा जा सकता है।
मां के मंदिर में नवरात्र का पर्व बहुत उत्साह और आस्था से मनाया जाता है। देवी मां का मनोहारी स्वरूप हर भक्त को आकर्षित करता है। भक्त देवी मां को नारियल और चुनरी अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं। मां सबके मन की कामनाओं को पूर्ण करती हैं।
-बीना सक्सेना, सेविका
कूष्मांडा देवी मंदिर
घाटमपुर स्थित कूष्मांडा देवी का मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। यहां वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है। इतिहासकारों के मुताबिक मंदिर की नींव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी। उन्हीं के नाम पर नगर का नाम घाटमपुर पड़ा। वहीं, 1890 में चंदीदीन भुर्जी नाम के एक व्यवसायी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
इतिहास
इतिहास के जानकार बताते हैं कि मराठा शैली में बने मंदिर में स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से 10वीं शताब्दी के मध्य की हैं। भदरस गांव के एक कवि उम्मेदराय खरे ने वर्ष 1783 में फारसी में ऐश आफ्जा नाम की पांडुलिपि लिखी थी, जिसमें माता कूष्मांडा और भदरस की माता भद्रकाली का वर्णन किया है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि करीब एक हजार साल पहले कुड़हा नाम का ग्वाला यहां गाय चराता था। उसकी गाय एक जगह पर अपना दूध गिरा देती थी। जब उस जगह की खोदाई हुई तो मां की पिंडी निकली। कूष्मांडा देवी को कुड़हा देवी भी कहा जाता है। माता की पिंड रूपी मूर्ति में चढ़ाये गए जल को लेकर मान्यता है कि यदि आंखों पर लगाया जाए तो अनेक रोग दूर हो सकते हैं। इस मंदिर में माता पिंडी के रूप में विराजित हैं। यह लेटी हुई मुद्रा में प्रतीत होती हैं।
मंदिर जाने का मार्ग
कानपुर से आने वाले भक्त नौबस्ता बाईपास से कानपुर-सागर हाईवे होते हुए सीधे मंदिर पहुंच सकते हैं। नौबस्ता से 35 किलोमीटर दूर मंदिर हाइवे के किनारे पर स्थित है।
माता के दर्शन के लिए नवरात्र में करीब 50 हजार श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंचते हैं। चतुर्थ दिन भव्य दीपदान का आयोजन होता है। मां अपने हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं।
-लल्लू सैनी, अध्यक्ष, कूष्मांडा देवी (कुढ़हा देवी) माली सेवा समिति
जंगली देवी मंदिर किदवई नगर
किदवई नगर के एम ब्लाक स्थित श्री जंगली देवी मंदिर में जगत जननी मां दुर्गा की प्रतिमा विराजमान है। मां की प्रतिमा 2.45 क्विंटल चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। नवरात्र के दिनों में मां के बदलते स्वरूपों की छटा देखने के लिए भक्त यहां पहुंचते हैं।
इतिहास
मंदिर करीब 1400 वर्ष पुराना है। इस मंदिर का इतिहास अभिलेखों में दर्ज है। मो. बकर के मकान की नींव की खोदाई के दौरान ताम्रपत्र मिला था, जिसमें उर्दू से लिखा हुआ था। मकान में लगे नीम के पेड़ की खोह में मां की प्रतिमा विराजमान थी। वर्ष 1979 में आए तूफान में नीम का पेड़ गिर गया था। इसके बाद लोगों ने चंदा करके भव्य मंदिर का निर्माण कराया। यहां 45 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है।
मंदिर जाने का मार्ग
शहर और आसपास के जिलों के भक्तों को सबसे पहले किदवई नगर चौराहा पहुंचना होगा। वहां से कुछ ही दूर पर मां का मंदिर है। लखनऊ, प्रयागराज, इटावा, कन्नौज, उन्नाव, झांसी, कानपुर देहात और औरैया से आने वाले भक्त सेंट्रल रेलवे स्टेशन से होते हुए किदवई नगर चौराहा पहुंचते हैं। सेंट्रल रेलवे स्टेशन से आटो, बस और ई-रिक्शा के जरिए मां के दरबार तक पहुंचा जा सकता है।
ये है मान्यता
श्री जंगली देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष मायादेवी ने बताया कि मां की प्रतिमा दिन में तीन बार स्वरूप बदलती है। शयन आरती के वक्त मां का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई देता है। मान्यता है कि यहां ईंट चढ़ाने से मां हर कामना पूरी कर देती हैं।
नवरात्र के दौरान मां की प्रतिमा और गर्भगृह को फूलों से सजाया जाता है। हर घंटे पर भव्य शृंगार होता है। इसके अलावा खीर और विशेष प्रकार के पकवानों का भोग भी लगाया जाता है। प्रतिदिन कन्या भोज के साथ ही छठवें दिन खजाना वितरण किया जाता है।
-विजय पांडेय, प्रधान पुरोहित, श्री जंगली देवी मंदिर ट्रस्ट
राहु माता मंदिर
राहु माता का मंदिर 250 से ज्यादा वर्ष पुराना है। यहां भक्त चुनरी और नारियल का भोग लगाते हैं। आसपास के गांवों में किसी के यहां कोई शुभ कार्य शादी, उपनयन संस्कार, मुंडन संस्कार होते हैं तो सबसे पहले निमंत्रण मां को दिया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से दांपत्य जीवन सुखी रहता है। राहु माता का मंदिर मंधना-टिकरा मार्ग स्थित बहलोलपुर में है। नवरात्र में सुबह से देर रात तक भक्तों की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ती है। पूर्वज बताते हैं यह मंदिर जहां स्थित है, वहां पहले रास्ता था। मां की मूर्ति एक चरवाहे को राह में मिली थी। इसके चलते मां का नाम राहु माता पड़ा। पहले यहां छोटी सी मठिया बनी थी जो अब विशाल मंदिर में परिवर्तित हो चुकी है। यहां प्रतिवर्ष प्रदेश स्तर के कलाकार रामलीला और माता रानी का जागरण करते हैं। आसपास क्षेत्र के हजारों दर्शक पहुंचते हैं।
कालाबाड़ी मंदिर चकेरी
लाला बंगला के हरजिंदर नगर स्थित श्री श्री चकेरी कालीबाड़ी मंदिर में मां करुणामयी स्वरूप में विराजमान हैं। कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर की तर्ज पर बनाए गए इस प्राचीन मंदिर में मां का शृंगार पूजन बंगाली विधि-विधान से किया जाता है। नवरात्र के दिनों में मां के दर्शन और बंगाली पूजन की छटा देखने के लिए भक्त यहां पहुंचते हैं। मंदिर की स्थापना वर्ष 1964 में की गई थी। कहा जाता है कि स्वप्न में मां के दर्शन आने के बाद मंदिर की स्थापना का प्रण बंगाली समाज ने लिया था। इसके बाद मां के करुणामयी स्वरूप की प्रतिमा राजस्थान के किशनगढ़ से विशेष कोठी पत्थर से बनवाई गई। फिर यहां पर विराजमान की गई। श्री श्री चकेरी कालीबाड़ी मंदिर समिति के संयुक्त सचिव दीपांकर भट्टाचार्या ने बताया कि दरबार में स्थापित मां की मूर्ति में एक तेज नजर आता है। इस कारण हर पहर मां का चेहरा बदलता हुआ प्रतीत होता है। मां को पुष्पाजंलि अर्पित करने से भक्तों की हर मुराद पूरी होती हैं। नवरात्र भर मां के दर्शन के लिए भक्तों की लाइन लगी रहती है, लेकिन बंगाली समाज की पूजा बोधन पूजन से शुरू होती है।
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